तेलंगाना के रमैया ने कैसे लगा दिए एक करोड़ पेड़, आइए जानें

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
दरिपल्ली रमैया
दरिपल्ली रमैया

 

गिरिजाशंकर शुक्ला / हैदराबाद

संपूर्ण विश्व की मानवता के लिए पर्यावरण सुरक्षा आज की सबसे बड़ी जरूरत है. पर्यावरण संरक्षण में हरे-भरे वृक्ष आदि काल से हमारे सबसे विश्वसनीय मित्र रहे हैं. सभी धर्मों में प्रकृति के प्रत्येक अवयव के संरक्षण और संवर्धन के निर्देश मिलते हैं. भारतीय संस्कृति में प्रकृति पूजा को केंद्रीय मान्यता है. भारत में पेड़-पौधों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं. पेड़ की तुलना संतान से की गई है.

पर्यावरण संरक्षण में ऐसा ही एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं खम्मम (तेलंगाना) के गांव रेड्डीपल्ली के 75 वर्षीय बुजुर्ग दरिपल्ली रमैया. लोग उनको ट्री मैन कहने लगे हैं. उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से वृक्षों के संरक्षण में समर्पित कर दिया है. एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाकर वह अपनी इस वृक्ष-साधना के लिए केंद्र सरकार से पद्मश्री अवार्ड पा चुके हैं.

वे घूम-घूमकर गुलाब, गुड़हल, पोतल पॉम, सिल्वर यूका, नामबोर, पत्थर चट्टा के पौधे रोपने के साथ ही ग्रामीणों को जागरूक भी कर रहे हैं. ट्री मैन दरिपल्ली रमैया के लिए पौधारोपण उनका जुनून बन चुका है. वह बताते हैं कि जब वे अपना सारा काम-काज छोड़कर इस दिशा में शुरू-शुरू में पहल कर रहे थे, तब लोग उन्हें सनकी-पागल कहकर उनकी खिल्ली उड़ाते थे. जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया, तब लोगों की आंखें खुलीं और रमैया की वृक्ष-साधना का महत्व समझ में आने लगा. अब तो उनको एकेडमी ऑफ यूनिवर्सल ग्लोबल पीस से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है.

ट्री मैन दरिपल्ली रमैया के इस जुनून की अपनी एक अलग व्यथा-कथा है. बचपन में दरिपल्ली अपनी मां के हर काम को बड़े ध्यान से देखा करते थे. मां भी उन्हें पौधारोपण आदि तरह-तरह की सीख दिया करती थीं. दरिपल्ली देखते कि मां कैसे फलों, सब्जियों के बीजों को संभाल कर रखती हैं. वह संस्कार उनके मन पर जड़ें जमा बैठा रहा. इसके बाद उनको पर्यावरण में तेजी से घुलते प्रदूषण के जहर ने अचंभित और क्षुब्ध किया.

बाद में उन्हें पता चला कि इससे निपटने में वृक्ष भी एक कारगर शस्त्र हो सकते हैं. वन माफिया के कारनामों ने उन्हें विचलित किया, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न एकला चलो के अंदाज में वह अपना स्वयं का पौधारोपण अभियान शुरू कर दें. इसके लिए उन्होंने खुद का एक तरीका सोचा. अपने पॉकेट में बीज और साईकिल पर पौधे लादकर वह पौधारोपण के दिग्विजय अभियान पर निकल पड़े.

पौधारोपण के लिए वह साईकिल से दूर-दूर तक यात्राएं करने लगे. इस सफर में उन्हें जहां भी खाली जमीन दिख जाती, पौधे रोपकर वहां से आगे बढ़ जाते. सबसे पहले उन्होंने अपने गांव रेड्डीपल्ली के पूर्व और पश्चिम दिशाओं में चार-चार किलोमीटर दूर तक के इलाके को नीम, बेल, पीपल, कदंब आदि के दो-ढाई हजार पौधे रोपकर हरा-भरा कर डाला. इस दौरान वह सिर्फ पौधारोपण ही नहीं, उनकी देख-भाल रखवाली भी करते रहे. कोई पौधा सूख जाता, तो उसकी जगह वहीं दूसरा पौधा रोप जाते.

वे बताते हैं कि इन पौधों के प्रति उनका वैसा ही अनुराग होता, जैसा मां का अपनी संतान से, किसान का अपनी फसल से अथवा वैज्ञानिक का अपने अनुसंधान से.

यह सब करते-करते आज वह स्वयं में एक वृक्ष-विश्वकोष बन चुके हैं. उनको तरह-तरह की पौध-प्रजातियों एवं उनसे होने वाले लाभ की भी पूरी जानकारी है. वह पेड़-पौधों पर फोकस किताबें पढ़ने के भी शौकीन हैं. आज उनके पास सात-आठ सौ वृक्षों के बीजों का अनूठा संग्रह भी है.

ट्री मैन दरिपल्ली रमैया कितनी महत्वपूर्ण साधना कर रहे हैं, इसे ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले भविष्य के खतरों को जानकर आसानी से समझा जा सकता है. वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग को 21वीं सदी का विश्वयुद्ध से भी बड़ा खतरा बता रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं.

वैज्ञानिक बताते हैं कि ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल सामान्यतः अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है, जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं. ऐसे में इन पौधों को काँच के एक बंद घर में रखा जाता है और काँच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

पौधारोपण ग्लोबल वार्मिंग के महान समाधानों में से एक हो सकता है. सिंथेसिस की प्रक्रिया के दौरान पेड़ न केवल ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो कि ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य स्रोत है. पौधारोपण के लिए मां से संस्कारित दरिपल्ली रमैया जब वक्त के साथ बड़े हुए, स्कूल जाने लगे, पौधों के बीज जुटाने में मां के साथ उनसे छूटने लगा. अब वह स्कूल की किताबों और अपने शिक्षकों से पौधों की उपयोगिता के किस्से जानने-सुनने लगे. तभी उन्होंने ठान लिया था कि वह किसी भी कीमत पर पौधों की रक्षा करेंगे. उन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. कंधे पर थैले में बीच और पौधे लेकर वह जहां-तहां घूमने लगे. बंजर जमीन को पौधों से आबाद करने लगे. चुपचाप एक-अकेले वह ये काम करते गए, बिना किसी की मदद के.

उनके परिचित, दोस्त-मित्र, सगे-संबंधी उनका मजाक बनाया करते. उन्हें पागल कहते, लेकिन उनका जुनून और बढ़ता गया. उन्हें खुद पूरी तरह तसल्ली थी कि वह पूरी मानवता को बचाने का एक महान काम कर रहे हैं. इससे अधिक उन्हें कुछ नहीं जानना था, न किसी की ऊलजुलूल बातों पर वह ध्यान देना जरूरी समझते थे. इसी दौरान उनकी शादी हो गई. पत्नी से भी उनके मिशन को मदद मिलने लगी. शादी की सालगिरह पर पौधारोपण का अनुरंजन भी उनका अनूठा प्रयोग रहा. उनकी उम्र बढ़ती गई और पौधारोपण का शौक भी. दरिपल्ली और कुछ नहीं, बस अपने लगाए हर पौधे को पेड़ बनते देखना चाहते थे. अब तक उनका एकला चलो मिशन 53 साल का हो चुका है. अब वह बूढ़े हो चुके हैं और अब तक एक करोड़ से अधिक पौधे रोपकर उनका मिशन जवान हो गया है.