तलाक-ए-हसन मामलाः दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की दी छूट

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-08-2022
तलाक-ए-हसन मामलाः  दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की दी छूट
तलाक-ए-हसन मामलाः दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की दी छूट

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को तलाक-ए-हसन से संबंधित एक मामले में याचिकाकर्ता के वकील को इसी तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में शामिल होने की स्वतंत्रता दी.हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने मामले में निर्देश लेने की छूट दी. कोर्ट ने कहा, इसी तरह का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, आप वहां की कार्यवाही में शामिल हो सकते है.

याचिकाकर्ता के वकील मोहन एस और शुभम झा ने कहा कि याचिकाकर्ता दोनों मामलों में अलग है.पीठ ने कहा, याचिकाकर्ता अलग हो सकता है, लेकिन मुद्दा एक ही है. आप वहां शामिल हो सकते हैं. हालांकि हम आपको सलाह नहीं दे सकते.

अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 12जनवरी 2023के लिए सूचीबद्ध किया है.सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने मौखिक रूप से हस्तक्षेप करते हुए कहा, मौजूदा याचिका कॉपी-पेस्ट का काम है और कोर्ट के समय की बर्बादी है. उन्होंने केंद्र सरकार को पार्टी बनाए बिना तलाक-ए-हसन को चुनौती दी.

उन्होंने कहा कि बेनजीर हीना का एक और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और वह सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील हैं.याचिकाकर्ता ने नोटिस (याचिकाकर्ता के पति द्वारा जारी तलाक का नोटिस) को अमान्य घोषित करने का निर्देश मांगा है, क्योंकि यह एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक है, मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 21, 25और मानव नागरिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों के विपरीत है.

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की अवकाश पीठ ने 22 जून को रजिया नाज द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसका मामला 18अगस्त (आज) को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया.याचिकाकर्ता ने अपने पति शहंशाह आलम खान द्वारा दिए गए 2जून के नोटिस को चुनौती दी है.याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की शादी गोवा के पणजी निवासी शहंशाह आलम खान से हुई थी.

यह आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता को वैवाहिक घर के साथ माता-पिता के घर पर भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा. याचिकाकर्ता और उसके परिवार ने महंगे उपहारों की उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया है.

याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया है कि उसके और उसके परिवार के खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बचने के लिए, उसके पति ने तलाक-ए-हसन का रास्ता चुना और उसके खिलाफ हर कानूनी कार्रवाई वापस लेने के लिए उसे जबरन वसूली के लिए पहला नोटिस दिया.

याचिका में कहा गया है कि तलाक-ए-हसन न केवल मनमाना, अवैध, निराधार, कानून का दुरुपयोग है, बल्कि एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक अधिनियम भी है. यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25और संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का सीधा उल्लंघन है.

यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ पुलिस में शिकायत और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है. उसके बाद याचिकाकर्ता को तलाक-ए-हसन के तहत नोटिस तामील किया गया.