अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों को ‘विशेष दर्जा’ की मांग का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 06-10-2022
अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों को ‘विशेष दर्जा’ की मांग का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट
अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों को ‘विशेष दर्जा’ की मांग का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट

 

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा प्रशासित शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए महायान थेरवाद वज्रयान बौद्ध धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा दायर एक अपील पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि केवल अल्पसंख्यक द्वारा एक शैक्षणिक संस्थान का प्रशासन अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्रदान नहीं करेगा. इलाहाबाद उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के खिलाफ याचिका पर विचार कर रहा था, जहां राज्य सरकार ने संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मानने से इनकार कर दिया था.

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘इस प्रकार एक संस्थान के लिए उत्तर प्रदेश निजी व्यावसायिक शैक्षिक संस्थान (प्रवेश का विनियमन और निरू शुल्क निर्धारण) अधिनियम, 2006 के अर्थ के भीतर अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, यह न केवल अल्पसंख्यक द्वारा प्रशासित एक संस्थान होना चाहिए, बल्कि इसे अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित भी किया गया होना चाहिए है और इसे राज्य द्वारा भी अधिसूचित किया जाना चाहिए.’’

याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने 2001 में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की और ट्रस्ट के सदस्यों ने बाद में 2015 में बौद्ध धर्म अपना लिया और संस्था का प्रशासन चलाते रहे. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि वह ट्रस्ट के शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानने के राज्य सरकार के फैसले में कोई अवैधता नहीं पाता है, ताकि इसे 2006 के अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सके.

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘तदनुसार, हम 5 अक्टूबर, 2010 और 7 अक्टूबर, 2010 के आदेशों में भी कोई अवैधता नहीं देखते हैं, जिसके तहत महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण ने शुल्क के निर्धारण के उद्देश्य से ट्रस्ट के शैक्षणिक संस्थान से प्रस्ताव मांगा था, शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए अपने एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों का अनुसरण करने वाले छात्रों से.’’