आशा खोसा
पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के मुजफ्फराबाद में जब सुमिया सादाफ की परवरिश हो रही थीं, तो उन्हें अक्सर कहा जाता था कि एक दिन उसकी किसी से शादी होगी और फिर वह पति के साथ अपने ’असली घर’ चली जाएगी.
वर्षों बाद, जब उसका नसीब उसे लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के पार दो भागों में बंटे उत्तरी कश्मीर के कूपवाड़ा स्थित ’घर’ में लाया, उसने सोचा कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं. लेकिन उसे पता नहीं था कि उसका जीवन कश्मीर पर भारत-पाक की तनातनी में फंस जाएगा.
अब्दुल मजीद की दुल्हन बनकर सुमिया उत्तरी कश्मीर आ गई. जबकि मजीद को उसके स्कूली दिनों में ही वहां प्रभावी ’मुस्लिम जांबाज फोर्स’ ग्रुप के उग्रवादी के तौर पर प्रशिक्षण के लिए पीओके ले जाया गया था.
उसे मुजफ्फराबाद में आईएसआई द्वारा कथित संचालित शस्त्र प्रशिक्षण और मजहबी शिविर में भेज दिया गया था.
माजिद ने ’आवाज द वॉयस’ को बताया, ’जल्दी ही मेरी रुचि खत्म हो गई और फिर भी एक शरणार्थी के रूप में वहां रहता रहा.’
उसने स्वीकार किया कि उसे अपनी आजीविका चलाने के लिए पांच हजार रुपए का स्टाईफंड और अन्य मदद मिलती थी.
उसने स्थानीय यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की, सुमिया से शादी की और अब दोनों के चार बच्चे हैं.
एक दशक पहले, मजीद और सुमिया उत्तरी कश्मीर के बत्तरगाम चले गए.
मजीद कहते हैं, ’मेरी पत्नी की सोच और थी. हम खैरात लेने के बजाय अपना जीवन शुरू करना चाहते थे. पत्नी ने अपना काम-धंधा शुरू करने का निर्णय किया.’
यह आश्चर्य नहीं है कि इस दंपति का अपना डेयरी फार्म है, जिसमें रोजाना 150 लीटर दुग्ध उत्पादन होता है और एक मुर्गीपालन फार्म भी है.
अब यह दंपति इस इलाके में स्वयं सहायता और उद्योग के लिए रोल मॉडल बन गया है, जिसके पास कभी कम आर्थिक अवसर थे.
सुमिया अब आस-पास की महिलाओं से मिलकर उन्हें सरकारी योजनाओं के अवसर प्राप्त करने में मदद करती है.
सुमिया ने आवाज द वॉयस को फोन पर बताया, ’सचमुच, पिछले घर मुजफ्फराबाद में, हमने कभी किसी सरकारी योजना के बारे में नहीं सुना और यहां लोग इन योजनाओं की बहुतायत के बारे में नहीं जानते.’
अब सुमिया सरकारी योजना ’उम्मीद’ के तहत विभिन्न स्वयं सहायता समूहों की नेतृत्व और निगरानी कर रही हैं.
वह प्रशासन द्वारा तृणमूल उद्यमियों के साथ डिजिटल मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने के लिए चुनी गई थीं.
सार्वजनिक जीवन में रुचि के चलते सुमिया ने बत्तरगाम से डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल का चुनाव लड़ा.
सुमिया अपनी पशुशाला में मवेशियों के साथ
उन्होंने कहा, ’मैंने सोचा कि डीडीसी चुनाव में जीतने के बाद, मैं सरकारी योजनाओं के मामले में महिलाओं और गरीब लोगों की मदद कर पाने के लिए बेहतर स्थिति में रहूंगी.’
उन्होंने कहा, ’सरकारी योजनाओं की खामियां यह हैं कि लोग या तो उन्हें जानते नहीं हैं या फिर अधिकारी योजनाओं के लिए रिश्वत मांगते हैं.’
उन्हें अब ग्रामोद्योग की सरकारी योजना के तहत गौशाला और पोल्ट्री फार्म का शैड बनाने के लिए तीन लाख रुपए मिलने वाले हैं. उन्होंने कहा, ’उन्होंने हर लाख पर 10 प्रतिशत कट मांगा और रिश्वत मेरी किताब में नहीं है.’
अब उनका लोगों की सेवा का सपना दो पड़ोसियों के संबंधों की उलझन में फंस गया है. जब उसके क्षेत्र की मतगणना चल रहा थी, अचानक पीठासीन अधिकारी ने उसे रुकवा दिया. प्रशासन ने सुमिया के बारे में कानूनी अड़चन महसूस की कि वह भारतीय नहीं है.
सुमिया से पूछा कि उन्होंने भारतीय नागरिकता के बारे में आवेदन क्यों नहीं किया, जो उसे पूरे कश्मीर में परमानेंट रेजीडेंट सर्टिफिकेट (पीआरसी) के तहत अधिकृत करती. पीआरसी जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिए है. फिर भी इसमें यह शर्त है कि धारक भारतीय नागरिक हो. जबकि सुमिया पीओके की नागरिक है. इसलिए उसे पाकिस्तानी पासपोर्ट धारक माना जाता है. उसे अविभाजित कश्मीर का भी विषय नहीं माना जाता है.
इस पर सुमिया कहती हैं, ’हम लड़कियों को कहा जाता है कि पति का घर ही तुम्हारा घर है. इसलिए मैं शादी के हिसाब से भारतीय हूं.’
हालांकि सरकारें समाज की परंपराओं से नहीं चलतीं. सुमिया की नागरिकता के सवाल ने अब उन लगभग 400 पाकिस्तानी महिलाओं की समस्या पर फोकस कर दिया है, जो विभिन्न पुनर्वास योजनाओं के तहत पूर्व आतंकियों की पत्नियों के तौर पर कश्मीर पहुंची.
चूंकि उनकी नागरिकता की स्थिति स्पष्ट नहीं है और उनके पास यात्रा दस्तावेज नहीं हैं. इसलिए ये महिलाएं पाकिस्तान में अपने परिवारों से मिलने जाने के लिए यात्रा दस्तावेज की मांग कर रही हैं.
मजीद की तरह जो पूर्व आतंकी बिना दस्तावेज पाकिस्तान में फंसे थे, उनमें ज्यादातर वाघा बार्डर, दिल्ली एयरपोर्ट और एलओसी के दो बस रूटों के जरिए अपने परिवारों के पास लौट आए हैं. हालांकि सुमिया का पति नेपाल बार्डर के जरिए आया था. इसके बावजूद, वापस आने वाले इन लोगों की पत्नियों और बच्चों को भारत में रहने की इजाजत है, लेकिन उनकी नागरिकता पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है.
जम्मू-कश्मीर सरकार की पुनर्वास नीति कहती है, ’उनसे लॉ ऑफ द लैंड (स्थानीय कानून) के हिसाब से बर्ताव किया जाएगा.’
बत्तरगाम के अलावा, दूसरे क्षेत्र हाजीन में भी पुनर्मतदान की उम्मीद की जा रही है, क्योंकि वहां भी एक प्रत्याशी पाकिस्तानी मूल की महिला पाई गई है.