हैदराबाद. आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं काउन्सिल के संस्थापक और चेयरमैन सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती ने कहा कि इस्लाम मजहबी रवादारी की तालीम देता है, हमें इन तालीमों को अपनाना चाहिए, ताकि हम अपने मुल्क में कौमी-एकता की एक मिसाल कायम कर सकें, क्योंकि अनेकता में एकता ही इस मुल्क की शान है. हमारा वकार (गौरव), हमारा मुल्क सरजमी-ए-हिन्दुस्तान है. आज हिन्दुस्तान में मजहबी दावेदारी को दबाते हुए इंतेहा पसन्द सोच ने उसे हाईजैक कर लिया है और मजहब के नाम पर इस तरह की दरार पैदा की जा रही है कि हमें अंधेरे में ले जाया जा रहा है. इस तरह की इंतेहापसन्द (अतिवादी विचारधाराओं) ताकतों से लड़ने के लिये सूफी लोगों को और सूफिज्म को आगे आना होगा.
यहां के होटेल ताज बंजारा में आयोजित सूफी सज्जादानशीं काउन्सिलके एक कार्यक्रम में सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सभी प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशीनों (आध्यात्मिक प्रमुखों) को सम्बोधित कर रहे थे.
सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती ने कहा कि आज के दौर में ऑल इण्डिया सूफी सजादानशीं काउंसिल (एआईएसएससी) का मकसद मौजूदा दौर में सूफिज्म की अहमियत और इसमें रवादारी को बनाए रखना है, क्योंकि इस्लामी तारीख के हर दौर में दूसरे मजहबों के लोगों के साथ रवादारी का पूरा ख्याल रखा है. इस्लाम में गैर-मुस्लिमों के साथ भी इंसाफ और इज्जत से पेश आने पर जोर दिया गया है और खासकर ऐसे गैर मुस्लिमों के साथ, जो मुसलमानों के साथ अमन से रहते है. यही बात हमें आज के दौर में भी अपनाने की जरूरत है, ताकि मजहबी दंगों को रोका जा सके.
उन्होंने कहा कि तारीख गवाह है कि इस्लामी सूफी खयालात ने हमेशा अमन और मोहब्बत के रास्ते को अपनाते हुए इस मुल्क की एकता और सलामती की हिफाजत की और दुनिया में जिन-जिन मुल्कों में सूफी गये हैं, उन्होंने उन मुल्कों में मोहब्बत और अमन का परचम लहराया है.
होटेल ताज बंजारा में आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं काउन्सिल की बैठक
चिश्ती ने कहा कि हमें सूफिज्म को वापस से इस मुल्क में आम फहम करना है, क्यों कि सूफिजम एक नजरिया नहीं, बल्कि अमन और मोहब्बत के साथ जिन्दगी जीने का एक रास्ता है, एक सोच है. इसने मुख्तलिफ नजरिये के बीच की खाई को खत्म करने की कोशिश की है और इसी वजह से इस निजाम को हिंदु-मुस्लिम एकता की एक मजबूत बुनियाद के रूप में देखा जाता है, जिसकी इस वक्त मुल्क को बहुत जरूरत है.
मौजूदा हिन्दुस्तानी सियासी हालात में मजहबी रिवायतों में और खासकर हिंदू-मुसलमानों की अमन व आपसी समझ, मोहब्बत, भाईचारे के नजरिये पर दुबारा सोचने की जरूरत है, ताकि इस मुल्क की जम्हूरियत (लोकतंत्र) ठीक से काम कर पाए और इस देश में अमन और सुकून बना रहे.
सूफी रवायत (परम्परा) के बारे में उन्होंने कहा कि इसका दायरा पूरे हिन्दुस्तान में है. इसके नुमाइंदे (संतों) और स्कॉलरों (विद्वानों) ने हमेशा इंतेहाईपसंदगी की मुखालिफत की है, चाहे वो मुस्लिम उलमा हों या किसी दूसरे मजहब के स्कॉलर हों. इस्लामिक रिवायत में, सूफी इस्लाम यह उम्मीद करता है कि तमाम मजहबों के लोगों को खासकर मुसलमानों को हमेशा मजहबी इख्तेलाफ (साम्प्रदायिक मतभेदों) को छोड़ कर इंसानी फला और मुल्क की बेहतरी को सबसे आगे रखना चाहिए और इस्लाम का अमन का पैगाम पूरी दुनिया में फैलाना चाहिए.
कुरआन व हदीस की हकीकी बातें समझायें
काउंसिल के सदस्यों से उन्होंने कहा कि आज के दौर में हमारी ऑल इण्डिया सूफी सजादानशीं काउंसिल की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मुल्क के मुसलमानों में अमन बहाल करने और उन्हें उम्दा बनाने के लिए काम करे. उन्हें बुनियाद परस्ती और इंतेहापसंदगी को फैलने से रोकने के लिये काम करे और कुरआन व हदीस की हकीकी (वास्तविक) और मुस्तन्द बातों को समझायें, क्योंकि इंतेहाई पसंदी और एसी सोच न केवल मुसलमानों को समाजी तौर पर दागदार बनाती हैं, बल्कि अमन और भाईचारे के इस खूबसूरत मजहब इस्लाम को भी बदनाम करती है. उन्होंने कहा, “लहू मुल्क की मिट्टी का, दोनों की रगों में बहता है, हिन्दू-मुस्लिम दोनों के दिलों में ‘तिरंगा’रहता है.”
चिश्ती ने कहा कि इस्लाम में जान बचाना लाजिमी है. जब कोई वबा आ जाये, तो इस्लाम ने मुकाबला करने की हिदायत दी है. कोरोना एक मोहलिक वबा है, जिससे इंसानी जानों को खतरा है. एक इंसान की जान को बचाना पूरी इंसानियत की जान बचाना है. हर शख्स इस अंदेशा और खौफ में मुक्तला है कि कहीं ये वबा उसके घर तक न पहुंच जाये. वबा को रोकने और एहतियाती इब्तामात से मुतालिब अफवाहों का बाजार गर्म है.
काउंसिल के चेयरमैन चिश्ती ने बताया कि सोशल मीडिया पर गैर जिम्मेदाराना और खौफो-हिराज फैलाने वाले बयानात को फैलाया जा रहा है. गलत मालूमात के सबब इंसान खतरे से बचने और दूसरों को बचाने के मुनासिब इक्दामाद नहीं कर सकता. इसलिये जरूरी है कि इस तरह के खतरे से निपटने के लिये दुरुस्त मालूमात हों और शउर बेदार किया जाये. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस जिसे कोविड-19 भी कहा जाता है, इससे बचने के लिये वैक्सीन का इंस्तेमाल दुनिया भर के उलमा-एकराम व मशाइख-ए-उज्जाम ने शरई एतबार से भी जायज करार दिया है. वबाई सूरत-ए-हाल को सामने रखते हुए हिफाजती और एतिहाती तदाबिर के तहत वैक्सीन लेने से न सिर्फ खुद के साथ दूसरों की जान बजाना लाजिम है. वैक्सीन से मुतल्लिक अवाम में जो गुमराहकुन बातें फैलाई जा रही हैं, उसके बारे में सिर्फ अहले-इल्म और माहिरीन से ही रूजुअ करें.