अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन बंद होः अफगान महिलाएं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
अफगान महिला शरणार्थियों का प्रदर्शन
अफगान महिला शरणार्थियों का प्रदर्शन

 

अमित दीवान / नई दिल्ली

अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अत्याचार और उनके अधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने के लिए अफगान महिला शरणार्थियों ने शनिवार को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर जोरदार प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थी महिलाओं ने हिस्सा लिया. नारे लगाते हुए और कार्यक्रम को कवर कर रहे मीडियाकर्मियों से बात करते हुए प्रतिभागियों की आंखों में आंसू थे.

सबकी कहानी दिल दहला देने वाली थी. उन सभी ने तालिबान को अपने घर में महिलाओं के साथ घोर दुर्व्यवहार और बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का आरोप लगाया.

प्रदर्शनकारियों में से किसी ने अपने पिता और किसी ने अपने भाई को खोया तो कोई स्वयं तालिबानियों या हक्कानियों द्वारा सताई गई थी. अफगानिस्तान में फंसी महिलाओं को लेकर हर कोई चिंतित है और उन्हें अपनी जान, सुरक्षा और अस्तित्व के लिए डर सता रहा है.

प्रदर्शनकारी चाहते थे कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करे, ताकि तालिबान पर हावी होकर उन अफगान महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का हनन रोक सके, जो शिक्षा और आजीविका के अधिकार से वंचित हैं.

अफगान शरणार्थी महिला संघ के बैनर तले आयोजित प्रदर्शन में बच्चों और बुजुर्गों सहित राजधानी के विभिन्न हिस्सों से करोड़ों अफगान महिलाओं ने हिस्सा लिया, जिसमें एनजीओ आवाज-ए-ख्वातीन के साथ सहयोग किया था.

अफगान महिला शरणार्थी संघ की अध्यक्ष शरीफा शाहब ने कहा कि धरना और प्रदर्शन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अफगान महिलाओं की दुर्दशा की ओर आकर्षित करना है.

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प्रदर्शन कर रहीं अफगान महिलाएं


प्रदर्शनकारी ने अपने देश में महिलाओं के अधिकारों की मांग करने वाले नारों के साथ तख्तियां प्रदर्शित कीं और दुनिया से अफगानिस्तान की स्थिति में हस्तक्षेप करने के लिए कहा. तख्तियों में तालिबान शासन के तहत मारे गए अफगान महिला की तस्वीरें भी थीं और उन्होंने बुलंद आवाज में नारेबाजी की.

 

शाहब ने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाएं और बच्चे संकट, हिंसा और मानवाधिकारों के हनन का सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि दुनिया को अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के घोर हनन पर ध्यान देना चाहिए और उत्पीड़ितों को बचाना चाहिए.

प्रदर्शनकारियों ने अफगान महिलाओं के पक्ष में नारे लगाए और अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को समाप्त करने का आह्वान किया.

कई महिलाओं ने कहा कि तालिबान की वापसी ने न केवल उन्हें राष्ट्रविहीन कर दिया है, बल्कि कई अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूर रह रही हैं.

महिलाओं ने अफगानिस्तान में वापस जीवन की चौंकाने वाली वे कहानियां सुनाईं, जिन परिस्थितियों में वे अपने मूल स्थानों को छोड़कर शरणार्थी के रूप में भारत आईं.

दिल्ली के लाजपत नगर, एक अफगान कॉलोनी में रहने वाली खातरा हाशमी ने मध्य अफगान शहर गजनी में एक पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य किया. 7जून, 2020को तालिबान ने उस पर हमला किया था. उन्हें बेरहमी से पीटा गया और उनकें सिर में गंभीर चोट लगी. उसके हमलावरों ने उसे बेहोश कर दिया और वह चार दिनों तक उसी अवस्था में रही. हमलावरों ने उसकी आंख में छुरा घोंप दिया, जिससे वह अंधी हो गई.

इस तरह एक और अफगान महिला जरघोना अफगानिस्तान में जज थीं. तालिबान के हाथों उत्पीड़न से बचने के लिए जरघोना को अपनी मातृभूमि से भागना पड़ा. उन्होंने अपनी सारी सफलता और स्थिति को पीछे छोड़ दिया है. वह अब जीविकोपार्जन के लिए भारत में राजमिस्त्री का काम करती हैं.