अदालती फैसले के बाद सिद्धारमैया का हिजाब पर बोलना गलत: लिंगायत संत डॉ वीरसोमेश्वर

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
अदालती फैसले के बाद सिद्धारमैया का हिजाब पर बोलना गलत: लिंगायत संत डॉ वीरसोमेश्वर
अदालती फैसले के बाद सिद्धारमैया का हिजाब पर बोलना गलत: लिंगायत संत डॉ वीरसोमेश्वर

 

बेंगलुरू. रामभापुरी मठ के प्रमुख लिंगायत संत डॉ वीरसोमेश्वर शिवाचार्य स्वामीजी ने कहा है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी कर्नाटक के विपक्ष के नेता सिद्धारमैया के लिए अक्सर हिजाब का मुद्दा उठाना गलत है. हाई कोर्ट ने स्कूली बच्चों के लिए यूनिफॉर्म अनिवार्य करने का फैसला सुनाया है. उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले का पालन करना सभी का कर्तव्य है.

 

उन्होंने हिजाब पर टिप्पणी करते हुए स्वामीजी के सिर ढंकने पर सिद्धारमैया के बयान पर भी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, "सिद्धारमैया ने धार्मिक संतों द्वारा पहने जाने वाले कपड़े के बारे में बात की है. यह उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं है. उन्हें माफी मांगनी चाहिए और इस मुद्दे को समाप्त करना चाहिए."

 

धार्मिक संतों द्वारा पहने जाने वाले हेडगियर और हिजाब के बीच कोई संबंध नहीं है. साधुओं द्वारा पहना जाने वाला टोपी भारत का सांस्कृतिक प्रतीक है. स्वामी विवेकानंद ने भी टोपी पहनते थे. उन्होंने कहा कि राज्य में टोपी पहनने की परंपरा है.

 

उन्होंने बताया कि साधुओं ने सिर पर पगड़ी पहनकर धार्मिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार का कार्य हाथ में लिया है.

 

सिद्धारमैया ने वीरशैव-लिंगायत समुदाय को विभाजित करने की कोशिश करने और चुनावों में झटका झेलने के बाद परिणामों के बारे में अच्छी तरह से जानने के बावजूद, हिजाब के बारे में बात करते हुए धार्मिक संतों पर एक बयान दिया है. उन्होंने कहा कि उनके बयान की राज्य भर में निंदा की गई है.

 

विजयपुरा में मनागुली मठ के सांगनाबसव द्रष्टा ने कहा कि वीरशैव और लिंगायत समुदाय को विभाजित करने के प्रयास के बाद सिद्धारमैया को पद छोड़ना पड़ा. अब फिर से उन्होंने धार्मिक संतों के बारे में बात कही है, जो अच्छी बात नहीं है. उन्होंने कहा, "उन्हें इस संबंध में स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए, अन्यथा लोग उन्हें राज्य से बाहर कर देंगे."

 

सिद्धारमैया ने कहा था कि सरकार को मुस्लिम छात्रों को हिजाब पहनने और परीक्षा लिखने की अनुमति देनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि यहां तक कि हिंदू और जैन महिलाओं, धार्मिक संतों ने भी अपने सिर ढंके हुए थे और संतों ने टोपी पहन रखी थी और उनसे पूछताछ नहीं की गई थी.