शाहताज खान / पुणे
भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम और भाईचारा हमारे देश की पहचान है. भारत के लोग किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों, वे अन्य धर्मों का आदर-सम्मान करना जानते हैं. पुणे में एक अनोखी मिसाल मिलती है. घोरपड़ी गांव की अहले सुन्नत जामा मस्जिद की खिड़की से जब बाहर देखते हैं, तो सामने भव्य काशी विश्वेश्वर मन्दिर नजर आता है. इस जामा मस्जिद और मन्दिर के बीचएक दीवार है, जो मस्जिद की उन चार दीवारों में से एक है, जिस पर मसजिद की छत टिकी हुई है. इस दीवार पर मौजूद सभी खिड़कियां मंदिर के आंगन में खुलती हैं.
हाजी अब्दुल कादिर बताते हैं कि यह मस्जिद तकरीबन 125 वर्ष पुरानी है. इसकी हालत काफी खराब थी. इसलिए 1989 में इसे दोबारा बनाया गया. उसी दौरान जब मस्जिद की तामीर का काम चल रहा था, तभी इस मंदिर को भी बनाया गया. 1992 में यह मन्दिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया.
मन्दिर के पुजारी हरीश जोशी आगे कहते हैं, “यहां आवाजें टकराती नहीं, बल्कि एक दूसरे का आदर करती हैं. जब अजान होती है और नमाज का समय हो, तो हम आरती की आवाज को बहुत कम रखते हैं, ताकि नमाज में कोई विघ्न न हो. वैसे ऐसा बहुत कम होता है, जब नमाज और आरती का समय एक ही हो.”
हरीश जोशी ने बताया कि कि हमें आज तक कोई समस्या नहीं आई है, क्योंकि हम सभी एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं का पूर्ण सम्मान करते हैं और ध्यान रखते हैं कि किसी भी तरह की कोई समस्या उत्पन्न न हो.
पुजारी हरीश जोशी की बात की पुष्टि करते हुए मसजिद के इमाम मौलाना इरफान का कहना है कि लॉक डॉउन की वजह से मस्जिद और मन्दिर फिलहाल बन्द हैं और यहां पर खामोशी है. लेकिन आम दिनों में भी नमाज के समय भी ऐसी ही खामोशी होती है. सब लोग खयाल रखते हैं कि नमाज में कोई खलल न पड़े. इमाम साहब यह भी बताते हैं कि उन्हें कभी भी मन्दिर के पुजारी जी को आवाज धीमी करने के लिए नहीं कहना पड़ा है.
हम साथ-साथ हैं
संजय कवाड़े हंसते हुए कहते हैं कि हमारा पूरा घोरपडी गांव ईद, दिवाली, शिवरात्री, मुहर्रम और गणपति उत्सव एक साथ मनाता है. आप गणपति उत्सव के समय हमारे गांव आइए. पंडाल में आपको शीरखुरमा खाने को मिलेगा. वह याद करते हुए बताते हैं कि जब लोग मन्दिर-मस्जिद के नाम पर लड़ रहे थे, तब हम सब मिलकर मस्जिद की बगल में यह मन्दिर बना रहे थे. जो हमारी एकता और भाईचारे की जीती जागती मिसाल है.
हमारा देश भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और संपरदायो का एक संगम स्थल की भांति है. यहां सभी धर्मों और संपरदायों के लोग मिल जुल कर रहते हैं. सलीम खान कहते हैं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना.... हर मजहब दूसरे मजहब का एहतराम करना सिखाता है. इसकी खूबसूरत मिसाल हमारे गांव के यह मन्दिर मस्जिद हैं, जिनके बीच किसी दीवार के लिए कोई जगह नहीं है.
एक मजबूत समाज के लिए एकता और शान्ति की सब से ज्यादा आवश्यकता होती है. घोरपड़ी गांव के जाहिद मर्चेंट ने बशीर बद्र का यह शेर पढ़ते हुए अपनी बात रखी, ‘सात संदूकों में भर कर दफन कर दो नफरतें, आज इंसान को मोहब्बत की जरूरत है बहुत.’ अंत में केवल यही कहा जा सकता है कि कोई भी मजहब तोड़ने का नहीं, बल्कि जोड़ने का काम करता है. अपने रब से भी और धरती पर इंसानों से भी.