भोपाल के हकीम सैयद जियाउल हसन यूनानी कॉलेज में संगोष्ठी, चिकित्सा की राय-नए शोध से खुलेंगे संभावनाओं के द्वार

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
भोपाल के हकीम सैयद जियाउल हसन यूनानी कॉलेज में संगोष्ठी, चिकित्सा की राय-नए शोध से खुलेंगे संभावनाओं के द्वार
भोपाल के हकीम सैयद जियाउल हसन यूनानी कॉलेज में संगोष्ठी, चिकित्सा की राय-नए शोध से खुलेंगे संभावनाओं के द्वार

 

गुलाम कादिर /भोपाल 

भोपाल के हकीम सैयद जियाउल हसन यूनानी गर्वमेंट कॉलेज में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई. इस दौरान यूनानी चिकित्सों की समान राय थी कि नए शोध से इसके विकास और संभावनाओं के द्वार खुलेंगे.
 
इसके साथ इसपर चिंता प्रकट की गई कि यूनानी चिकित्सा के प्रभावी प्रयोग से जहां जनता में यूनानी चिकित्सा के प्रति भरोसा बढ़ा है, वहीं जन-जागरूकता के कारण चिकित्सकों को कानूनी और नैतिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है. 
 
हकीम सैयद जियाउल हसन गवर्नमेंट यूनानी कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी में यूनानी चिकित्सा व्यवसाय को रोगियों के उपचार, दवाओं के उपयोग और इसके कानूनी पहलुओं व नैतिक मुद्दों को उजागर करने पर भी चर्चा हुई.
 
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ आयुष विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भाग लिया.चिकित्सा पद्धति में चिकित्सा-कानूनी और नैतिक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई.
 
भोपाल एम्स के निदेशक प्रोफेसर अजय सिंह ने कहा कि हकीम सैयद जिया-उल-हसन राजकीय यूनानी कॉलेज द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला न केवल समय की मांग है, मरीजों के इलाज के लिए चिकित्सकों को भी इसकी जरूरत है.
 
ऐसा करते समय कानूनी पहलुओं से भी अवगत रहें. हमारे नए डॉक्टरों में चिकित्सा नैतिकता है जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे कैसे अपनाना ह. रोगियों और डॉक्टरों के बीच जो त्रुटियां और लापरवाही बढ़ी है, उसे कैसे कम किया जाए इससे बचने के तरीके की जानकारी देने के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है.
 
कानूनी पहलुओं, कोर्ट रूम के चक्कर से बचें और रोगियों को सर्वोत्तम उपचार प्रदान करें. साथ ही इस बात पर भी चर्चा की गई कि यूनानी दवा को कैसे प्रभावी तरीके से जनता तक पहुंचाया जा सकता है ताकि मरीज को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके.
 
 
डॉ. एसएम अब्बास जैदी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अब मरीज चिकित्सकीय लापरवाही को लेकर अपने अधिकारों के प्रति काफी जागरूक हो गया है. यह भी बहुत जरूरी है कि हम मरीज का शोषण न होने दें.
 
उस पर प्रयोग न करें . दूसरी बात यह है कि अगर डॉक्टर को कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं है तो अक्सर देखा गया है कि मरीज कुछ दवाओं के इस्तेमाल को लेकर उसे ब्लैकमेल करने लगता है, इसलिए यह कार्यक्रम डॉक्टर के ज्ञान को बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया है जो समय लेने वाला है. 
 
प्रोफेसर इफ्तिखार अहमद ने  कहा कि भारतीय दंड संहिता 1860 के मुताबिक अगर कोई मरीज आता है और उसकी हालत गंभीर है तो पहले उसकी जान बचाना जरूरी है.
 
यदि वह कोई जानकारी नहीं दे सकता है, तो डॉक्टर के लिए उसकी जान बचाना आवश्यक है. हमारे पास एक शोध प्रोटोकॉल है जिसका पालन किया जाता है और रोगी से नैतिक मंजूरी की आवश्यकता होती है.
 
जब हम शोध करते हैं, रोगी से हमें नैतिक स्वीकृति मिलती है, तब हम जिन दवाओं का उपयोग करते हैं, और यदि आप ग्रीक चिकित्सा के इतिहास को देखें, तो आपको पता चलेगा कि नए शोधों ने उन्नत यूनानी चिकित्सा और नए शोधों को विकसित किया है.
 
यूनानी में विस्तृत शोध के साथ कानूनी और नैतिक पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है.पुणे से आए डॉ अख्तर फारूकी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे एमडी और एमएस दोनों कोर्स चल रहे हैं. बड़ी संख्या में छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
 
वे एथिकल कमेटी की सहमति के बिना शोध में आगे नहीं बढ़ते हैं और अगर कोई मरीज पर ड्रग ट्रायल होता है, फिर एथिकल कमेटी अपनी मंजूरी देती है और फिर काम शुरू होता है.
 
दूसरा यह कि इस समय डॉक्टर के साथ मरीज भी अपने अधिकारों के प्रति काफी जागरूक है. ऐसे में मरीज का इलाज करते समय डॉक्टर को अपने कर्तव्यों के निर्वहन के साथ अधिकारों के बारे में भी जानकारी होना जरूरी है.
 
यह दो दिवसीय सेमिनार चिकित्सकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. कार्यक्रम में प्रो. महमूदा बेगम डॉ. मुहम्मद नसीम खान सहित अन्य विशेषज्ञों ने भी विचार व्यक्त किए.