विद्वानों ने कहा-समावेशी भावना है उर्दू

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 02-10-2022
विद्वानों ने कहा-समावेशी भावना है उर्दू
विद्वानों ने कहा-समावेशी भावना है उर्दू

 

आवाज द वॉयस /नई दिल्ली

इंडो इस्लामिक हेरिटेज सेंटर (आईआईएचसी) ने 16 उर्दू लेखकों और विद्वानों को भाषा की सेवा के लिए तहजीब-ए-उर्दू पुरस्कार से सम्मानित किया है.शनिवार को दिल्ली के इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में उर्दू एक भारतीय भाषा पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया, जहां केंद्र और राज्यों के नाम पर उर्दू को आश्रय देने का प्रस्ताव पारित किया गया.

संगोष्ठी में बोलते हुए, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक संजय द्विवेदी ने कहा कि उर्दू भारतीय भाषा है. इसमें कोई विवाद नहीं है.
 
उन्होंने कहा,जब भारत एक था, उर्दू अखबारों के ज्यादातर मालिक और संपादक हिंदू थे. इन अखबारों ने आजादी के लिए आवाज उठाई. उन्होंने कहा कि गोपीचंद नारंग ने पश्चिम के ज्ञान को उर्दू में शामिल करके बढ़ाया.
 
अगर व्यापारी उर्दू में पैसा लगा रहे हैं यह साबित करता है कि उर्दू का एक बाजार और भविष्य है.आईआईएचसी के निदेशक प्रोफेसर लियाकत हुसैन मोइनी ने कहा कि सूफियों ने उर्दू को स्थानीय भूमि से जोड़ा और उर्दू साहित्य पर जोर दिया.हजरत अमीर खुसरो ने उर्दू को शक्ति दी.
 
मुंशी नवल किशोर के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता. जब हिंदू कवि नात और हमद लिख रहे थे, तब इकबाल राम पर नज्म लिख रहे थे. यह समावेशी भावना उर्दू की शक्ति है. उर्दू भाषा नहीं संस्कृति है.
 
प्रो अख्तर उल वासे ने दावा किया कि पाकिस्तानियों ने आजादी के बाद विभाजन के परिणामस्वरूप शाह वलीउल्लाह, सर सैयद और उर्दू का अपहरण करने की कोशिश की.भाषा का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन धर्म को भाषा की जरूरत होती ह. भाषा संवाद के लिए होती है, विवाद के लिए नहीं.
 
उन्होंने कहा, मदरसों में पढ़ाई जाने वाली अधिकांश किताबें नवल किशोर जी की देन है. इसी तरह हिंदी में रसखान, रहीम और बिस्मिल्लाह का स्थान नहीं हो सकता. 
 
आईआईएचसी के उप निदेशक शुजात अली कादरी ने कहा कि भौगोलिक हिस्सा जिसे उर्दू की मातृभूमि कहा जाता है, वह विभाजन के बाद भी भारत में रहता है जबकि पाकिस्तान उर्दू पर झूठे दावे करता है.
 
उन्होंने कहा, आज भी पाकिस्तान की 8 फीसदी आबादी ही उर्दू बोलती है, लेकिन राष्ट्रभाषा के आधार पर वह उर्दू पर दावा करती है जो जायज नहीं है.
शुजात अली कादरी ने विद्वानों से भाषा में योगदान देने का आह्वान किया.
 
केंद्र और राज्यों के नाम पर उर्दू को आश्रय देने का प्रस्ताव भी पारित किया गया.भारतीय जनगणना के अनुसार 10 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले सभी राज्यों में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा देने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया.
 
प्रस्ताव में, भारतीय डाक के सभी डाकघर मुख्यालयों में उर्दू अधिकारियों को नियुक्त करने की मांग की गई, जो किसी भी डाक पते को उर्दू में लिखे जाने की स्थिति में उनकी डिलीवरी सुनिश्चित कर सकते हैं.
 
साथ ही उर्दू-बहुल राज्यों में हर जिला स्तर पर उर्दू अधिकारियों को नियुक्त करने की भी मांग की गई. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इसकी व्यवस्था करने की मांग उठाई गई.
 
संगोष्ठी में, एनआईसी के सहयोग से स्वदेशी उर्दू टाइपिंग सॉफ्टवेयर विकसित करने का एक प्रस्ताव भी पारित किया गया. इसी तरह परियोजना के लिए 25 करोड़ रुपये चालू करने की मांग की गई, क्योंकि उर्दू के लगभग सभी फांट पाकिस्तान में विकसित किए गए हैं. एक फॉन्ट के कम से कम 20 लाख रुपए मांगे गए.
 
एक प्रस्ताव में कहा गया कि अजमेर पूरे दक्षिण एशिया का सूफी मुख्यालय है. यहां एक अंतरराष्ट्रीय सूफी केंद्र स्थापित करने की जरूरत है. यह परियोजना संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की जानी चाहिए.
 
इंडो-इस्लामिक हेरिटेज सेंटर इस सूफी मुख्यालय को खोलने के लिए नीतिगत सहयोग देने को तैयार है. जरूरत पड़ने पर इसका प्रोजेक्ट ब्लूप्रिंट भी पेश किया जा सकता है.
 
अन्य प्रस्ताव भी पारित किए गए जैसे भारत सरकार के ऑडियो-विजुअल विभाग द्वारा जारी विज्ञापनों में 5 प्रतिशत विज्ञापन उर्दू समाचार पत्रों, टेलीविजन चौनलों और वेबसाइटों के लिए आरक्षित होने चाहिए और 49 प्रतिशत विज्ञापन जनसंपर्क द्वारा जारी किए जाने चाहिए.