कश्मीर में तापमान बढ़ने से राहत, लेकिन किसानों में नई महामारी की आफत

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 18-02-2021
कश्मीर के पेड़ों की छालों के नीचे लगने वाले घुमंतू कीट-पतंगों के अंडे
कश्मीर के पेड़ों की छालों के नीचे लगने वाले घुमंतू कीट-पतंगों के अंडे

 

 

फिरोज अहमद

कारगिल-लद्दाख में वर्ष 2021की शुरुआत एक भली खबर के साथ हुई है कि सरकार ने घोषणा की है कि कारगिल के रास्ते लेह से श्रीनगर को जोड़ने वाले सामरिक महत्व के एनएच 1डी हाईवे की बर्फ को साफ कर दिया गया है और यातायात जल्द ही फिर से शुरू होने की उम्मीद है. सड़क की जल्दी सफाई का श्रेय सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की टीमों, विशेष रूप से प्रोजेक्ट विजयक के असाधारण प्रयासों को जाता है. इसके अलावा, 2020-2021की सर्दियों में जलवायु परिवर्तन और बर्फबारी में कमी को भी कुछ श्रेय जाता है.

लेकिन, बर्फबारी और सर्दियों में कमी किसानों और कृषि पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिए चिंता का कारण बन गई है. इस बात की भयावह आशंका है कि तापमान में अचानक वृद्धि से कृषि और बागवानी क्षेत्र के गंभीर परिणाम होंगे.

कारगिल के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मेहदी अखोने को डर है कि इन परिवर्तनों से कीड़ों की विभिन्न समस्याओं में वृद्धि होगी.

उन्होंने कहा कि अतीत में, तापमान शून्य से 30डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता था, जिससे फल और वन पेड़ों के विभिन्न कीटों की प्राकृतिक मृत्यु हो जाती है. विभिन्न कीटों के कारण फलों की फसल (सेब) के वन वृक्षों (विलो) को बहुत नुकसान पहुंचता है, जो क्रमशः लद्दाख के निचले और ऊपरी इलाकों में पाए जाते हैं.

डॉ. मेहदी अखोने ने किसानों और सामान्य ग्रामीणों को आगे आने की सलाह दी और सेब के पेड़ के तने में सेब के पेड़ की छाल और आस-पास उगने वाले अन्य पेड़ों को हटाने के लिए कहा है.

उन्होंने किसानों से कहा कि पेड़ों की छालों के नीचे मौजूद कॉटनी कोकून को नष्ट करें, जो वसंत की शुरुआत के बाद वयस्क कोकून में विकसित हो जाते हैं.

उन्होंने जिप्सी कीट (घुमंतू कीड़े) के प्रबंधन के लिए किसानों से कहा कि इलाके में घूमें और जहां विलो (ब्रोकचांग) पेड़ बढ़ता है, वहां पेड़ के तने की छाल पर आई दरारों को जांचें. यदि वहां अंडे हों, तो साबुन के पानी में अंडों को भिगोने के बाद वहां से निकाल दें.

उन्होंने कहा कि इस एडवाइजरी का सख्ती से पालन करके हम बिना किसी पर्यावरणीय खतरे के 4-5साल की छोटी अवधि में ही इन कीटों से अपने जिले को मुक्त कर सकते हैं.

उन्होंने चेतावनी दी कि लोगों को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि इन कीटों से व्यापक नुकसान हो सकता है, जिससे कृषि और बागवानी क्षेत्रों का पतन हो सकता है.