फकत बनारस में होती है मंदी से उबरने को अगहनी नमाज की दुआ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 04-12-2021
प्रतीकात्मक चित्र
प्रतीकात्मक चित्र

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-वाराणसी

ऐ अल्लाह! हम पर इल्मो-हि़क्मत के दरवाजे़ खोल दे और हम पर अपनी रह़मत नाज़िल फ़रमा. ऐ अ़-ज़मत और बुजुर्गी वाले.

भारतीय मुस्लिम सारी दुनिया में अपनी खास रवायतों के लिए जाने जाते हैं. यहां के मुस्लिम न केवल तीज-त्योहार ज्यादा मनाते हैं, बल्कि उन्होंने स्थानीय संस्कृति को भी आत्मसात किया हुआ है. इसी सिलसिले की एक कड़ी है अगहनी नमाज की दुआ. इस नमाज  की दुआ में इलाके को मंदी से उबारने के लिए खास दुआ की जाती है. यह रवायत पिछले 450 सालों से चली आ रही है.

दुआ अपने लिए मांगना इबादत है, दूसरों के लिए मांगना खिदमत है. इबादत से जन्नत मिलती है और, खिदमत से खुदा मिलता है.

जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 450 साल पहले काशी में भयानक सूखा पड़ा था. अनाज की पैदाइश कम होने के कारण लोग भुखमरी के शिकार हो रहे थे. मुस्लिम जुलाहे भी इन हालात से दो-चार हो रहे थे. हर ओर मंदी छायी हुई थी, तो उनके बनाए हुए कपड़े भी नहीं बिक रहे थे और फाकों की नौबत आ गई.

तब बुजुर्गों के कहने पर यहां के मुस्लिम जुलाहों ने इलाके और मुल्क में कारोबार की बेहतरी और मंदी से उबरने के लिए अगहन यानि मार्गशीर्ष माह में (नवम्बर-दिसम्बर) ईदगाह में इकट्ठे हुए और अगहनी जुमा के दिन नमाज के बाद दुआ की. अल्लाह ने दुआ कबूल की और मंदी छंटने लगी.

उसके बाद से यहां के अन्य मुस्लिम भी अगहनी नमाज की दुआ में शामिल होने लगे और फिर यह रवायत बन गई. तंजीम बाईसी के मुखिया के नेतृत्व में यह नमाज और दुआ की जाती है.

बाईसी तंजीम के सरदार एकरामुद्दीन साहब ने बताया कि यह रवायत हमारे बुजुर्गों के जमाने से चली आ रही है और हम इसे कायम रखे हुए हैं. यह नमाज के बाद खास दुआ मछली मंडी के पास स्थित ईदगाह में की जाती है. इस मौके पर हजारों जुटते हैं और मुल्क और कारोबार की बेहतरी के लिए दुआ मांगते हैं.