अरशद के लिए रावण, ईश्वर और अल्लाह सब एक हैं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 05-10-2022
अरशद के लिए रावण, ईश्वर और अल्लाह सब एक हैं
अरशद के लिए रावण, ईश्वर और अल्लाह सब एक हैं

 

मुरादाबाद. पटेल नगरी के लाइनपार इलाके में 48 साल से एक मुस्लिम परिवार रामलीला के लिए रावण की मूर्ति तैयार कर रहा है. पहले दादा रियाजुद्दीन मूर्तियां बनाते थे, अब यह श्रंखला तीसरी पीढ़ी यानी पौत्र अरशद और आलम तक पहुंच गई है. 48 साल से उनकी टीम लाइन पार रामलीला में 100 फुट का पल्ला तैयार कर रही है.

हालांकि, कोरोना के दौरान मूर्ति की ऊंचाई कम कर दी गई थी. इसके बाद फिर से पुरानी परंपरा जारी हो गई है. कारीगर अरशद ने बताया कि वह हर साल मेरठ से रावण का पुतला बनाने आता है. मैंने यह काम 32 साल पहले अपने दादाजी को देखकर सीखा था. उन्होंने कहा कि उसके बाद मैंने अपने पिता को ऐसा करते देखा. मुरादाबाद, काशीपुर समेत कई जिलों में पुतले तैयार किए गए. वह और उसका छोटा भाई आलम 12 साल से इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं.

कारीगरों का कहना है कि हिंदू या मुस्लिम का ख्याल कभी दिमाग में नहीं आया. हर साल यहां आने वाले कुछ लोगों को यह काफी पसंद आ रहा है. आसपास के कुछ घरों की महिलाएं भी दोपहर में खाना पहुंचाती हैं. मुख्य शिल्पकार अरशद (45) का कहना है कि वह हर बार रावण की मूर्तियां बनाते हैं, लेकिन हर बार अलग डिजाइन का होना एक चुनौती है.

उन्होंने कहा कि कभी-कभी रावण की मूंछों को अलग ही डिजाइन दिया जाता है. पिछले चार वर्षों से आंखें फेरने के लिए एक अलग हथकंडा अपनाया गया है, जिससे मेले में रावण की आकृति सभी को निहारती नजर आ रही है.

कारीगरों ने बताया कि प्रतिमा बनाने में 5000 बांस, 70 किलो कागज और 42 किलो रस्सी का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अलावा डिजाइनर पेपर, पटाखे अलग हैं. अरशद और उनके बड़े भाई नजीर अहमद ने बताया कि 12 साल पहले इस मूर्ति को बनाने में करीब 50 हजार रुपये खर्च हुए थे. अब यह खर्च साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है.

उन्होंने बताया कि पिछले कई वर्षों में मूर्तियों के साथ आतिशबाजी का चलन बढ़ा है. ऐसे में पटाखों समेत एक लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो जाता है. कुंभकरण और मेघनाद के अवतार का चेहरा भी तैयार किया जा रहा है. वह आगे कहते हैं कि हमारे लिए हिंदू और मुसलमान दोनों समान हैं, जैसे अल्लाह हमारे लिए है, वैसे ही ईश्वर हमारे लिए है. यहां काम करने से हमें रोजगार मिलता है, जिससे हमारे घर में चूल्हा जलता है. इसलिए हमें इसकी परवाह नहीं है. रावण का पतलापन बनाना हमारा पुश्तैनी काम है.