अदनान कश्मीर घाटी के युवाओं को सिखा रहे हैं रबाब बजाना

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 27-06-2021
अदनान मंजूर रबाब के साथ
अदनान मंजूर रबाब के साथ

 

आवाज द वाॅयस /श्रीनगर

 जम्मू और कश्मीर में सबसे कम उम्र के रबाब कलाकार अदनान मंजूर ने सोशल मीडिया के माध्यम से घाटी के पारंपरिक संगीत को वैश्विक मंच पर ला खड़ज्ञ किया है और वे घाटी के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं.

मंजूर जब सिर्फ 15 साल के थे, तब उन्होंने पहली बार रबाब बजाना शुरू किया था, जो एक ल्यूट जैसा वाद्य यंत्र था, लेकिन गिटार सीखने के बाद ही वाद्य के प्रति उनका आकर्षण बढ़ गया.

21 साल की उम्र में, मंजूर घाटी में सबसे कम उम्र के और सबसे प्रसिद्ध रबाब वादक बन चुके हैं और सोशल मीडिया पर उनके वीडियो को लाखों बार देखा जा चुका है.

मंजूर ने बताया कि एक कलाकार के तौर पर हर कश्मीरी को संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि यहां कोई प्लेटफॉर्म नहीं है. यही कारण है कि मैंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. मैंने पारंपरिक वाद्ययंत्र को बॉलीवुड संगीत और यहां तक कि धातु संगीत के साथ शामिल किया है.

उन्होंने आगे कहा कि नुसरत फतेह अली खान फेम ‘तुम्हे दिल्लगी’ बंदिश तीन मिलियन से अधिक बार देखी गई है.

उन्होंने बताया कि रबाब को उस गाने के राग के अनुसार ट्यून करने की जरूरत है, जिसे कोई गिटार के विपरीत बजाना चाहता है. यह गिटार की तुलना में बहुत कठिन है.

मंजूर ने बताया, “मुझे उन लोगों से ईमेल और संदेश मिलते हैं, जो रबाब सीखना चाहते हैं. मेरी इच्छा है कि यह परंपरा बनी रहे और अगर मैं इसके लिए प्रेरणा हूं, तो मुझे ऐसा होने में खुशी होगी. मुझे लगता है कि युवाओं के लिए बेहतर है कि वे ड्रग्स के बजाय खेल और संगीत की ओर रुख करें.”

उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने पहले मुंबई और दिल्ली में प्रदर्शन किया था और अन्य परियोजनाएं भी थीं, लेकिन कोरोना महामारी के कारण, सभी प्रोजेक्ट को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. 

वर्तमान रबाब कोऐतिहासिक ग्रंथों में वर्णित रबाब का एक नया संस्करण माना जाता है. काबुली रबाब के रूप में भी जाना जाता है. यह उपकरण अफगानिस्तान का राष्ट्रीय वाद्य यंत्र है, जहां से इसने भारत में अपना रास्ता बनाया और फिर कश्मीर के लोगों द्वारा अपनाया गया.

इसे उपमहाद्वीप में सरोद और सारंगी जैसे अन्य वाद्ययंत्रों का जनक माना जाता है. हालाँकि, इसे पहली बार अपनाने के सदियों बाद, केवल कुछ मुट्ठी भर संगीतकार ही इस वाद्य यंत्र बजाते हैं और परंपरा को जीवित रखना मुश्किल हो रहा है.