भारत छोड़ो आंदोलनः मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को मिटाना असंभव

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 10-08-2021
भारत छोड़ो आंदोलनः मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को मिटाना असंभव
भारत छोड़ो आंदोलनः मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को मिटाना असंभव

 

आवाज द वाॅयस / भोपाल

भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर भोपाल में जमीयत उलेमा के तत्वावधान में कोड-19का पालन करते हुए एक संक्षिप्त समारोह आयोजित किया गया. कार्यक्रम में जमीयत उलेमा नेताओं के अलावा भोपाल के बुद्धिजीवी भी शामिल हुए.

कार्यक्रम में जहां स्वतंत्रता आंदोलन और मुस्लिम मुजाहिदीन के बलिदानों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया, वहीं स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को भूलने के लिए सरकारों के प्रति नाराजगी जताई गई.

मध्य प्रदेश जमीयत उलेमा के अध्यक्ष हाजी मोहम्मद हारून का कहना है कि भारत से ब्रिटिश से पूर्ण स्वतंत्रता का नारा सबसे पहले जमीयत उलेमा ने गढ़ा था, जिसे बाद में कांग्रेस के सदस्यों ने अपने मिशन में शामिल कर लिया.

1857 से 1947तक के भारत की आजादी के इतिहास पर नजर डालें तो मुस्लिम मुजाहिदीन आजादी के गौरवशाली कारनामों से अलंकृत हैं. 1857में 55,000से अधिक धार्मिक विद्वानों ने बलिदान दिया.

मुस्लिम मुजाहिदीन को आजादी के इतिहास के पन्नों से कभी नहीं मिटाया जा सकता. सरकारें न केवल अपने कार्यों से भारत के प्रबुद्ध इतिहास को कलंकित कर रही हैं, बल्कि इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा. इस तरह से भारत की साझी विरासत को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे प्रमुख भूमिका निभा रही उर्दू भाषा को एक खास वर्ग से जोड़कर नुकसान पहुंचाया जा रहा है. इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. जमीयत उलेमा-ए-मुजाहिदीन स्वतंत्रता के उज्ज्वल इतिहास और उर्दू अधिकारों पर एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेगा, ताकि नई पीढ़ी अपने पूर्ववर्तियों के बलिदानों से अवगत हो सके.

कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए मुफ्ती मुहम्मद रफी ने कहा कि अगर आज हमारे पूर्वजों के इतिहास को भुलाया जा रहा है, तो इसके लिए काफी हद तक हमारी लापरवाही जिम्मेदार है.

हम सभी कामों की अपेक्षा दूसरों से करते हैं, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि हम स्वयं अपने स्वतंत्रता सेनानियों को कितना याद करते हैं. इसे दूसरों पर छोड़ देते हैं.पूरी तरह से मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे स्कूल भी समीचीनता के अधीन हैं. यहां भी, स्वतंत्रता दिवस समारोह में, मुस्लिम मुजाहिदीन आजादी के अन्य लोगों की सेवाओं पर प्रकाश डाला गया है.