शाहताज खान /पुणे
पुणे के मुस्लिम पंडित गुलाम दस्तगीर बिराजदार नहीं रहे. उनका 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया.पंडित गुलाम दस्तगीर बिरजदार सोलापुर के अक्कलकोट ताल्लुका के मूल निवासी थे. वह वाराणसी के विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान के सचिव और महाराष्ट्र संस्कृत भाषा की टेक्सट बुक समिति के अध्यक्ष रहे.
जब तक जीवित रहे संस्कृत को आगे बढ़ाने का काम किया. अलग अलग जगहों पर संस्कृत की शिक्षा दी. बीएचयू में इस पर व्याख्यान दिया. उनका कहना था कि किसी ने मुझ से आज तक नहीं कहा कि मुसलमानों होकर संस्कृत नहीं पढ़ा सकते या इसे क्यों आगे बढ़ाना चाहते हो ?
उनका कहना था कि संस्कृत के विद्वानों ने हमेशा उनके कार्यों पर उनकी हौंसलाअफजाई की.पंडित बिरजदार घोषित पंडित थे.उन्हें पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायण से प्रशस्ति पत्र मिला था. वह देश के उन कुछ मुस्लिम संस्कृत विद्वानों में थे जिन्होंने परिपाटी बदलते हुए संस्कृत का प्रशिक्षण दिया.
पंडित बिरजदार ने अपने तीनों बच्चों के विवाह का कार्ड भी संस्कृत में छपवाया था. उन्होंने 2019 में एक तब सुर्खियां बटोरीं, जब अपनी तीसरी पीढ़ी की लगन पत्रिका संस्कृत भाषा में छपवाई.
पंडित बिरजदार परिवार द्वारा जाति, धर्म से परे संस्कृत भाषा के प्रचार, प्रसार के लिए उठाए गए कदम सराहनीय रहे हैं.
पंडित जी खुद को संस्कृत के मामूली प्रचारक मानते थे. सेवानिवृत्त होने के बाद देश भर में घूम घूम कर सभा-सेमिनारों में संस्कृत और सर्वधर्म समंभव का प्रचार किया करते थे.
पंडित गुलाम दस्तगीर ने कुरान शरीफ का संस्कृत में अनुवाद भी किया है. हिंदी ,मराठी,कन्नड़ ,उर्दू ,अरबी और अंग्रेजी के विद्वान् और अमर चित्र कथा के संस्कृत रूपांतरकार -पंडित गुलाम दस्तगीर बिरजदार अपने धर्म से कर्म से जाने जाते रहेंगे.