राष्ट्रपति चुनावः कैसे कम हो गए उम्मीदवार, कैसे बदले नियम

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
शपथ ग्रहण करते डॉ. जाकिर हुसैन
शपथ ग्रहण करते डॉ. जाकिर हुसैन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

आपने गौर किया होगा कि भारत के आजाद होने के बाद शुरुआती वर्षों में राष्ट्रपति चुनाव में बहुत सारे लोग उम्मीदवार बनते थे. हमने एक स्टोरी की थी जिसमें चौधरी हरिराम नाम के हरियाणा के एक नेता का जिक्र था जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में पहले चार बार उम्मीदवारी पेश की थी. लेकिन 1967 के चुनाव में उन्हें एक भी वोट नहीं मिला था.

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राष्ट्रपति चुनावः 1962 में डॉ. राधाकृष्णन का निर्विरोध निर्वाचन रोकने आए थे हर बार के उम्मीदवार चौधरी हरिराम

हालांकि पिछले दो दशकों से राष्ट्रपति चुनाव में चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच ही होता रहा है लेकिन 1967 में देश में चौथा राष्ट्रपति चुनाव हुआ था और उसमें 17 उम्मीदवार मैदान में उतर गए थे. अगंभीर उम्मीदवारों के उतरने से मामला थोड़ा हल्का लगने लगा था.

असल में, शुरुआती दौर के राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को अपना नामांकन दाखिल करने के लिए दो प्रस्तावक और दो अनुमोदक ही चाहिए होते थे. अब चौधरी हरिराम के मामले में यह हुआ था कि उन्हें शून्य वोट मिले थे. यानी, उनके प्रस्तावकों और अनुमोदकों ने भी उनको वोट नहीं किया था.

बहरहाल, 1967 के राष्ट्रपति चुनाव में देश के इतिहास में सबसे अधिक उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. यह बात दीगर है कि इन 17 में से 9 उम्मीदवारों को शून्य वोट मिले थे. ऐसे में यह जरूरत महसूस की गई कि राष्ट्रपति चुनाव को हंसी-खेल न बनाया जाए और इसकी गरिमा के मद्देनजर सिर्फ गंभीर उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में रहे. 1967 में 4 अन्य प्रत्याशियों को ढाई सौ से भी कम वोट मिले थे. वैसे, 1967 में डॉ. जाकिर हुसैन ने राष्ट्रपति चुनाव जीता था.

डॉ. जाकिर हुसैन का निधन राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही हो गया था और इसलिए दो साल बाद 1969 में ही फिर से राष्ट्रपति चुनाव कराने पड़े. इस बार भी 15 प्रत्याशी मैदान में उतर गए. हालांकि, इनमें से पांच उम्मीदवारों के फिर से शून्य वोट मिले. 1962 और 1967 के इन दो राष्ट्रपति चुनावों ने आगामी चुनावों में राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों की संख्या पर अगंभीर किस्म के लोगों के उतरने पर रोक लगाने के नियमों की शुरुआत कर दी.

1974 में राष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम में बदलाव लाया गया. नए नियमों के मुताबिक, अबराष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए किसी प्रत्याशियों को कम से कम 20 मतदाताओं का समर्थन यानी इनमें 10 प्रस्तावकऔर10 अनुमोदक का होना जरूरी बना दिया गया. इन नियमों के अनुसार, एक मतदाता एक ही प्रत्याशी के नाम का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता था.

आपको ज्ञात होगा कि राष्ट्रपति का चुनाव दोनों सदनों के निर्वाचित सांसद और सभी राज्यों के निर्वाचित विधायक करते हैं. सभी सांसदों और विधायकों को मिलाकर निर्वाचक मंडल बनता है.

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उम्मीदवारों के लिए 20 निर्वाचकों के समर्थन का नियम लाने की वजह से 1974 के राष्ट्रपति चुनाव में केवल 2 ही उम्मीदवार उतरे, लेकिन समय के साथ इस नियम को और कड़ा करना पड़ा.

असल में, इस नियम में इस बदलाव के बाद, 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर साबित हुआ कि अगंभीर उम्मीदवारों को रोकने के लिए बना 20 निर्वाचकों के समर्थन वाला नियम नाकाफी था. आपको ध्यान होगा कि हर बार राष्ट्रपति चुनाव में काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरतीपकड़ खड़े होते थे. 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में चर्चित वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी और धरतीपकड़ दोनों न सिर्फ मैदान में उतरे बल्कि मतदान के चरण तक भी पहुंच गए. हालांकि, धरतीपकड़ जीवन में पंचायत से लेकर लोकसभा और राष्ट्रपति चुनाव तक हर चुनाव में खड़े होते थे और जाहिर है, हारते भी थे और इस बात से उनकी काफी प्रसिद्धि थी.

बहरहाल, 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में चार मुख्य प्रतिद्वंद्वी मतदान के चरण में थे. वकील रामजेठमलानी को कुल 2704 वोट हासिल हुए और धरती पकड़ भी 1135 वोट पा गए. बेशक, इनकी जमानत जब्त हो गई और चुनाव में डॉ. शंकरदयाल शर्मा चुनाव जीते. दूसरे स्थान पर जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल रहे थे.

लेकिन इन चुनावों से एक बार फिर नियमों में बदलाव की जरूरत महसूस हुई. इसलिए 1997 में राष्ट्रपति चुनाव के नियमों के एक बार फिर से परिवर्तन किया गया. नए नियमों के मुताबिक, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अब 20 की बजाए 100 प्रस्तावकों की जरूरत को अनिवार्य बना दिया गया. अब 50 निर्वाचक प्रस्तावक होने जरूरी थे और 50 अनुमोदक. और यही वजह है कि 1997 के बाद से कोई भी उम्मीदवार नामांकन से आगे के चरण में नही पहुंचा है.