नाबालिग मुस्लिम लड़की से निकाह है, तो भी पॉक्सो लागू होगाः केरल हाईकोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-11-2022
केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट

 

तिरुवनंतपुरम. केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि मुस्लिम समुदाय के एक नाबालिग के साथ विवाह, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के दायरे से बाहर नहीं है और एक पति जो अपनी नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संपर्क करता है, अधिनियम के तहत उत्तरदायी होगा.

न्यायमूर्ति बच्चू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि यदि एक पक्ष नाबालिग है, तो पॉक्सो के तहत अपराध एक आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए लागू होगा, जिसे एक 16 वर्षीय लड़की से बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जो बाद में उसकी पत्नी बन गई. अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपी ने नाबालिग को अगवा किया और उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए. बाद में 31 वर्षीय ने विचाराधीन लड़की से शादी कर ली.

आरोपी ने तर्क दिया कि उसने कानूनी रूप से लड़की से शादी की थी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यौवन प्राप्त करने के बाद समुदाय की लड़कियों की शादी की अनुमति देता है और उस पर पॉक्सो के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. उसने तर्क दिया कि उसने मार्च 2021 में लड़की से शादी की थी और उन पर लागू व्यक्तिगत कानूनों के तहत उसे अपना कानूनी साथी बनाया था. उन्होंने अपने दावे के समर्थन में हरियाणा, दिल्ली और कर्नाटक उच्च न्यायालयों के पहले के फैसलों का भी हवाला दिया. लेकिन अदालत ने इन दावों से सहमत होने से इनकार कर दिया.

न्यायाधीश ने कहा, “यदि विवाह में से एक पक्ष नाबालिग है, तो विवाह की वैधता के बावजूद या अन्यथा, पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध मान्य होंगे. विद्वान न्यायाधीशों के संबंध में (उल्लेखित अन्य अदालतों से) मैं उन निर्णयों में निर्धारित प्रस्ताव से सहमत होने में असमर्थ हूं कि पॉक्सो के तहत अपराध एक मुस्लिम के नाबालिग से शादी करने के खिलाफ नहीं होगा.”

अदालत ने कहा कि पोक्सो अधिनियम एक विशेष अधिनियम था और सामाजिक सोच में प्राप्त प्रगति और प्रगति के परिणामस्वरूप अधिनियमन हुआ है. यह विशेष कानून बाल शोषण से संबंधित न्यायशास्त्र से उत्पन्न सिद्धांतों के आधार पर अधिनियमित किया गया था. अदालत ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के माध्यम से परिलक्षित विधायी मंशा शादी की आड़ में भी बच्चे के साथ शारीरिक संबंध को प्रतिबंधित करना था. अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘एक बाल विवाह बच्चे के विकास को उसकी पूरी क्षमता से प्रभावित करता है. यह समाज का अभिशाप है.”