वाराणसी. भगवान शिव के पसंदीदा वाद्य यंत्र 'डमरू' की वादन और मंत्र जाप के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परिसर का औपचारिक रूप से उद्घाटन करने से पहले प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर (केवीटी) में 'अभिषेक' किया. प्रधानमंत्री ललिता घाट से चले, जहां उन्होंने गंगा में पवित्र स्नान किया था, एक 'कलश' में नदी के पानी को लेकर मंदिर गए.
मंदिर में 'पूजा' के बाद, प्रधानमंत्री ने 'कर्मयोगियों' (श्रमिकों) पर पंखुड़ियों की बौछार की, जिन्होंने समय पर परियोजना को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की थी.
उन्होंने उनके साथ फोटो खिंचवाई और मंदिर परिसर में एक पौधा भी लगाया.
प्रधानमंत्री का यह ड्रीम प्रोजेक्ट 339 करोड़ रुपये की लागत से 30 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा हुआ.
काशी विश्वनाथ मंदिर अपने नए अवतार में अब मंदिर से गंगा नदी का एक निर्बाध ²श्य प्रस्तुत करता है.
20-25 फीट चौड़ा गलियारा गंगा पर ललिता घाट को मंदिर परिसर में मंदिर चौक से जोड़ता है.
भक्त पवित्र नदी में डुबकी लगा सकते हैं और वहां से ही मंदिर में भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं.
मंदिर का अब एक विशाल प्रांगण के साथ अपना एक क्षेत्र है.
कम ही लोग इस तथ्य से अवगत हैं कि राजा रणजीत सिंह और औसनगंज के राजा, राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह जैसे कई राजाओं ने मंदिर के लिए दान दिया था.
राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह ने मंदिर के गर्भगृह के चांदी के दरवाजे दान में दिए.
इतिहासकारों के अनुसार, काशी विश्वनाथ मंदिर को पहली बार 1194 में तोड़ा गया था और 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह के शासनकाल के दौरान फिर से हमला किया गया था.