कश्मीरी पंडितों का उत्पीड़न: इन्साफ के लिए दिल्ली के जंतर मंतर से फिर उठी आवाज

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
फाइल फोटो
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नई दिल्ली. दिल्ली के जंतर मंतर पर शनिवार को कश्मीरी पंडितों ने एक बार फिर न्याय के लिए आवाज उठाई और अपने विरोध दर्ज कराया. ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा, ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के बैनर तले यह प्रदर्शन हुआ. इस प्रदर्शन में कांग्रेस नेता विवेक तनखा भी शामिल हुए और कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की मांग की.


दरअसल कश्मीर और कश्मीरी पंडित, जब भी इनके बारे में चर्चा होती है तो देश के लाखों करोड़ों लोगों की आंखें नम हो जाती हैं. हाल ही में एक फिल्म द कश्मीर फाइल्स भी सिनेमा घरों में पहुंची हैं जिसके बाद यह मुद्दा एक बार फिर उठा है.

कांग्रेस नेता विवेक तनखा ने बताया कि, जब 32 सालों तक न्याय मिलता नहीं तो प्रदर्शन होगा ही. लाखों लोगों का पलायन हुआ, महिलाओं का रेप हुआ, कई लोगों की मृत्यु हुई और घर जला दिए गए लेकिन क्या किसी को सजा मिली ? कोई वापस जाने की हिम्मत कर रहा है? हम भारतीय होने के बावजूद कश्मीर नहीं जा सकते और न ही सुरक्षित है.

भारत सरकार की उस वक्त भी जिम्मेदारी बनती थी और अब भी जिम्मेदारी बनती है. हम पूरे विश्व में घूमते हैं और यह सोचते रहे कि हम कश्मीर वापस जाएंगे. हम आज इसलिए बैठे हैं कि हमारे साथ न्याय तो करो.

इसके अलावा वैश्विक कश्मीरी पंडित प्रवासी के एनसीआर क्षेत्र के कॉर्डिनेटर काशी ने बताया कि, हमने जंतर मंतर पर अपना प्रदर्शन इसलिए रखा है ताकि हम मांगो को पूरा करा सकें और सरकार तक अपनी आवाज को उठा पाए. हमें प्रवासी का नाम दिया गया है जो हमें नमंजुर है. 32 सालों से कोई हमारा विस्थापन के बारे में कोई चर्चा पार्लियामेंट के अंदर नहीं हुई. कातिलों के ऊपर आज तक कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई है, वह खुलेआम घूम रहे हैं.

कश्मीर के हिंदुओं के विस्थापन का संज्ञान आज तक भारत सरकार ने नहीं लिया है. राज्य सरकारों ने भी हमारे मसलों को दरकिनार किया. कश्मीर में हम हिंदुओं को एक ही जगह पर बसाया जाए और सुरक्षित रहें, साथ ही हमारी राजनीतिक आवाज हो.

1989 में श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के नेता पंडित टीका लाल टपलू की हत्या हुई. इसके कुछ महीनों बाद 1990 में श्रीनगर से छपने वाले एक उर्दू अखबार में हिजबुल मुजाहिदीन ने अपने बयान में हिंदुओं को घाटी छोडने के लिए कहा गया और बढ़ते डर के बाद हिंदूओं ने पलायन करने का फैसला किया, देखते ही देखते कश्मीरी में हिंदुओं के ऊपर अत्याचार भी शुरू हो गया था.

हालांकि 30 सालों से अधिक समय के बाद एक बार फिर अब कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की आवाज उठाई जाने लगी है. जानकारी के अनुसार, जनवरी 1990 में कश्मीर में 75,343 परिवार थे. 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्यादा परिवार घाटी से पलायन कर गए. अनुमानित आंकड़ें के अनुसार 1990 से 2011 के बीच 399 कश्मीरी पंडितों की हत्या की.