कश्मीर में रही शांति, ‘कश्मीर डे’ का अब कोई मतलब नहीं

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 05-02-2021
बर्फ की फुहार का लुत्फ उठाती हुईं कश्मीरी बच्चियां. ‘कश्मीर डे’ पर जन जीवन सामान्य रहा.
बर्फ की फुहार का लुत्फ उठाती हुईं कश्मीरी बच्चियां. ‘कश्मीर डे’ पर जन जीवन सामान्य रहा.

 

 

श्रीनगर.  पाकिस्तानी एजेंसियों द्वारा हर साल पांच फरवरी को कथित ‘कश्मीर डे’ मनाया जाता है, लेकिन जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हट जाने के बाद ‘कश्मीर डे’ का अब कोई मतलब नहीं रह गया है.  पाकिस्तानी एजेंसियों की तमाम कोशिशों बाद भी अब लोग ऐसी किन्हीं भी कोशिशों से कोई सरोकार रखने को तैयार नहीं, जो उन्हें नए कश्मीर में विकास के अवसर मुहैया करवाने में अवरोध पैदा करती हों.  इसलिए इस बार ‘कश्मीर डे’ पर कोई अप्रिय घटना देखने को नहीं मिली.  

जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति और इसके केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद, इस बार जम्मू-कश्मीर ‘कश्मीर डे’ से अप्रभावित रहा, जिसे 1990 में किया गया था.  

पाकिस्तान में 1990 में पहली बार नवाज शरीफ के आह्वान पर कश्मीर दिवस मनाया गया था, जो उस समय पंजाब के विपक्षी नेता और मुख्यमंत्री थे.

शरीफ ने 1990 में देशव्यापी हड़ताल की अपील की थी और लोगों से तथाकथित कश्मीर आंदोलन की सफलता के लिए प्रार्थना की थी.  इसके बाद, 5 फरवरी को पाकिस्तान में छुट्टी के रूप में घोषित किया गया था.

लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त रहे

हर साल इस घटना के कारण रक्तपात, हड़ताल और मारपीट होती रही है, लेकिन इस बार किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णायक कदम के बाद, इस बार कश्मीर में लोगों ने तथाकथित ‘कश्मीर डे’ में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और पाकिस्तान में इस दिन लोगों ने क्या किया और क्या नहीं किया, इसे जानने की जेहमत उठाए बिना अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त रहे.  

अलगाववादी मायूस हैं

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि बंदूक तानने वाले आतंकवादियों, पत्थरबाजों, अलगाववादियों और अन्य ऐसे लोग इस दिन सामान्य जन-जीवन बाधित करते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें मायूसी हाथ लगी है.  

अलगाववादी नेता फीके पड़े

कश्मीर में इस दिन हुर्रियत का हौव्वा खड़ा करे वाले सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारुक, जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक जैसे पाकिस्तान के हमदर्दों के भी खास बयान देखने को नहीं मिले.

एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि दो साल पहले तक ये अलगाववादी नेता, कश्मीर के लोगों के प्रति समर्थन जताने के लिए पाकिस्तान का आभार व्यक्त करने के बयान जारी करने के ढर्रे पर चलते थे.  

5अगस्त, 2019 को नई दिल्ली के एक साहसिक कदम ने यह सुनिश्चित कर दिया कि इन अलगाववादी नेताओं ने अपना प्रभाव खो दिया है और न ही उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कश्मीर में किसी को बाकी छोड़ा गया है.

कश्मीर में सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने वाले और नौजवानों को तथाकथित जिहाद की ओर धकेलने वाले ऐसे मुख्य खिलाड़ी अब खाली हाथ हो गए हैं और दूसरे काम-धंधे करके अपने परिवार का दाल-दलिया चलाने को मजबूर हो गए हैं, क्योंकि सरकार ने उनके फंडिंग चैनलों को ध्वस्त कर दिया है.  

अब कश्मीरियों का ध्यान सिर्फ विकास पर

खास बात यह है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जो घटनाक्रम हुए हैं, वे इस बात के संकेत हैं कि कश्मीरियों में बदलाव आया है और उन्होंने पाकिस्तान के साथ उनके जुड़ाव की निरर्थकता का अहसास किया है.

जमीनी स्थिति बदल गई है

जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद, जमीनी स्थिति बदल गई है.  सुरक्षा बलों ने शीर्ष आतंकवादी कमांडरों और उनके सहयोगियों का सफाया कर दिया है.

कई नई परियोजनाएं शुरू

इसके अलावा कुछ लोगों के बीच एक विचार यह भी है कि मनोज कुमार सिन्हा के जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में कार्यभार संभालने के बाद चीजें बहुत तेज गति से बढ़ने लगीं और जिसके परिणाम स्पष्ट हैं.  पिछले कई वर्षों से जो विकास कार्य अधर में थे, वे अब पूरे होने वाले हैं और कई नई परियोजनाओं की नींव पहले ही रखी जा चुकी है.  यहां तक कि कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि जम्मू-कश्मीर में नियमित आपूर्ति में कोई बाधा न हो.  

पाकिस्तानी एजेंटों को यह हजम नहीं

एक स्थानीय निवासी अब्बास डार ने कहा, ”पाकिस्तान में बैठे लोग और कश्मीर में उनके एजेंट को यह पचाना मुश्किल हो रहा है कि ‘नए जम्मू और कश्मीर’ में लोगों ने उन नेताओं को छोड़ दिया है जो अलगाववाद और देशद्रोह का प्रचार करते थे. “

हालांकि पाकिस्तान सीमा पार से ऑपरेट होने वाले फेसबुक अकाउंट, ट्विटर हैंडल और व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मुसीबतें खड़ी करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है.  लेकिन वर्तमान में यह दिखने लगा है कि अब कश्मीरी लोग पाकिस्तानी सोशल मीडिया के झांसे में आने वाले नहीं हैं.  

पाकिस्तानी नाटक ने खोया चार्म

कश्मीर के लोगों को यह अहसास हो चला है कि उन्हें बदली हुई परिस्थितियों में ढलना होगा और विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनना होगा.  पाकिस्तान में जुलूस निकालने, विरोध-प्रदर्शन करने और 5 फरवरी को अन्य काम करने जैसे कार्यक्रमों का अब उनके लिए कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि वे इस तथ्य से अवगत हैं कि यह नाटक का एक हिस्सा भी है, जिसे पाकिस्तान हर साल खेलता है.  इसलिए पाकिस्तान की बेहतरी इसी में है कि वह अपनी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करे और कश्मीर में विकास की नई हवाएं आने दे.