एक साल बेमिसालः प्रधान संपादक की कलम से

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 23-01-2022
एक साल बेमिसालः प्रधान संपादक की कलम से
एक साल बेमिसालः प्रधान संपादक की कलम से

 

आवाज विशेष । एक साल बेमिसाल 

प्रधान संपादक की चिट्ठी

प्रिय पाठको,

वाज-द वॉयस ने ठीक एक साल पहले अपनी यात्रा शुरू की थी. इस अल्प अवधि में ही, यह मंच उन तमाम लोगों की आवाज बन गया है, जो समावेशी भारत के विचार में यकीन रखते हैं.

हमें खुशी है कि इतने कम समय में आवाज-द वॉयस ने खुद को एक निष्पक्ष मीडिया संगठन के रूप में स्थापित किया है. यह सब हमारे पाठकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया के कारण हुआ है.

आवाज-द वॉयस को इतना सफल बनाने के लिए हम अपने सभी पाठकों का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं. हर सुबह जब हम अपना मेलबॉक्स खोलते हैं, तो हमें पाठकों के कई मेल मिलते हैं, जो हमारे काम की सराहना करते हैं या जो हमारे मंच से जुड़ना चाहते हैं.

जब हमने यह यात्रा शुरू की थी, तो यह एक मुश्किल काम प्रतीत हो रहा था. हमने जिस तरह की सामग्री पेश करने के बारे में सोचा था, वह अकल्पनीय था और मौजूदा वक्त में अनसुना भी. यह पूरी तरह से पत्रकारिता को देखने का एक नया तरीका था.

जब हमने अपने चारों ओर देखा, तो पाया कि लोग स्टोरीज में व्यस्त थे और ऐसे वाद-विवाद में मुब्तिला थे, जिसने सामाजिक मनोमालिन्य को केवल गहरा ही किया और राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में लोगों के बीच घृणा पैदा की.

इस सोच ने हमें एक नई दृष्टि दी और हमने पत्रकारिता को बिल्कुल अलग नजरिए से देखा. गैर-राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए, हमने इसके उज्ज्वल पक्ष को देखा और अच्छी और सकारात्मक खबरें देने की दिशा में काम किया.

बेहद प्रतिभाशाली पत्रकारों और तकनीशियनों की हमारी टीम ने पत्रकारिता की एक नई शैली बनाने के लिए मुख्यधारा की पत्रकारिता में अपने सभी ज्ञान और दशकों के अनुभव का उपयोग किया, जिसका उद्देश्य गलत धारणाओं को दूर करना और समुदायों के बीच पुल बनाना था.

हम अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से कई लोगों को न्याय दिलाने में सफल रहे. ऐसी ही एक मिसाल है कि जब हमने एक मशहूकर लेखक की दुर्दशा के बारे में खबर चलाई, तो राजस्थान के मुख्यमंत्री का कार्यालय उनकी आर्थिक सहायता के लिए आगे बढ़ा.

ऐसा ही एक दूसरा उदाहरण हैदराबाद से रहा, जब हमारी खबर के बाद 1971 के एक सिपाही की मदद के लिए भारतीय सेना आगे आई. हमने उस योद्धा की बुरे वक्त से जूझने की खबर चलाई थी. उन्हें हाल ही में भारतीय सेना के एक कार्यक्रम में आमंत्रित भी किया गया था.

मुस्लिम समाज से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों में हमारे हस्तक्षेप ने सार्थक विमर्श के बीज बोए. हमने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया, जैसे समुदाय के बीच कोविड टीकाकरण का डर दूर करना, मदरसों में शिक्षा का आधुनिकीकरण और मुस्लिम महिला सशक्तिकरण.

हमने 23 जनवरी 2021 को अपने अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू संस्करण एक साथ शुरू किए थे. बाद में, हमने अपना असमिया संस्करण भी 1 नवंबर 2021 को शुरू किया. बहुत जल्द हम अन्य भाषाओं में भी अपने और अधिक संस्करण शुरू करने जा रहे हैं.

यह सब हमारे उदार संरक्षकों के समर्थन के बिना संभव नहीं होता, जो हमेशा हमारे साथ खड़े रहे हैं. हम अपने प्रमोटरों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं, जो हमारे प्रति बहुत उदार रहे हैं और जिन्होंने पत्रकारिता में इस तरह के प्रयोग में हमारी क्षमताओं पर भरोसा किया है.

हमारे संपादकीय कर्मचारियों की प्रतिबद्धता भी कमाल की है, जिन्होंने इस विचार में अटूट विश्वास दिखाया कि लोगों को जोड़ने के लिए पत्रकारिता का उपयोग किया जा सकता है और यही असली कुंजी भी है. यह केवल इस विश्वास के कारण है कि हमारी टीम हमारे पाठकों के लिए एक बेहतरीन उत्पाद तैयार करने में सक्षम है.

शुरुआत में, हमारे संपादको को अपने स्ट्रिंगर्स और योगदानकर्ताओं को यह भरोसा दिलाने में काफी मुश्किल हुई कि हम सकारात्मक कंटेंट की तलाश में है और हम ऐसी सामग्री नहीं चाहते, जो लोगों को बांटती हो.

यह उन लोगों के लिए हैरतनाक बात थी, क्योंकि कोई भी अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म उनसे ऐसा नहीं कहता था. हमारी जरूरतों के लिहाज से योगदान करने वालों को समान-विचार तक लाने में बड़ी कोशिशें करनी पड़ीं.

जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, हमने महसूस किया कि हमारी तरह की पत्रकारिता के लिए एक बड़ा पाठक वर्ग है. भारतीय संस्कृति, सामाजिक समरसता और बलिदान की हमारी कहानियों को न केवल भारत में, बल्कि कई अन्य देशों में भी पढ़ा जाता है.

भारत, अरब देशों, मध्य-एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोप और अमेरिका में हमारे पर्याप्त पाठक हैं. हमें यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि लिथुआनिया और जंजीबार में भी हमारे पाठक हैं.

गंगा-जमुनी तहजीब यानी हमारी समेकित भारतीय संस्कृति पर आधारित आलेख सांप्रदायिक जहर की पृष्ठभूमि में कहीं खो गए थे, उन्हें हमने प्राथमिकता दी और पूरी दुनिया के पाठकों ने उन्हें सराहा भी. आवाज-द वॉयस की रीडरशिप के आंकड़े खुद अपनी कहानी कहते हैं. एक साल के छोटे से वक्त में, हमने 30 हजार से अधिक स्टोरीज की और 1.30 करोड़ से अधिक व्यूज हासिल किए.

अपने सोशल मीडिया मंचों पर भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया. हमारी फेसबुक रीच 22 लाख से अधिक है, हमने ट्विटर पर 39 लाख इंप्रेशन हासिल किए और हमने एक साल में 2500 से अधिक वीडियोज अपलोड किए. अन्य मीडिया घराने हमारी कहानियों के बारे में हमसे पूछताछ कर रहे हैं. हमारे मंच पर सामग्री पढ़ने के बाद कई मीडिया घरानों ने फॉलोअप स्टोरीज की हैं.

यह देखकर खुशी होती है कि हमारी तरह की स्टोरी को अब मुख्यधारा के मीडिया में भी जगह मिलने लगी है. हम मानते हैं कि यह हमारी प्रमुख उपलब्धियों में से एक है कि हम दूसरों को यह समझाने में सफल रहे कि सकारात्मक कहानियों के लिए भी एक पाठक और दर्शक वर्ग है और हर समय आलोचनात्मक होने की आवश्यकता नहीं है.

आवाज-द वॉयस भारतीय मुस्लिम समाज से संबंधित प्रतिगामी सामग्री के उलट सार्थक और प्रगतिशील सामग्री जुटाने में अग्रणी बन गई है. हमें भारतीय मुसलमानों के उज्जवल पक्ष को पेश करने का गौरव प्राप्त है.

सकारात्मक सामग्री के बीच, हमने विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल करने वाले युवा मुस्लिमों की सफलताओं को उजागर करने वाली हजारों कहानियां तैयार की हैं. हमारी रिपोर्टों में भारतीय मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों को दिखाया गया है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जिन्हें भुला दिया गया और शायद ही हमारे इतिहास में कोई महत्वपूर्ण उल्लेख मिला.

हमारी विकास गाथा इस बात का स्पष्ट संकेतक है कि अधिकांश भारतीय शांतिप्रिय लोग हैं, जो एक अखंड भारत देखना चाहते हैं. एकता में अटूट शक्ति होती है. जैसा कि भारत एक महाशक्ति बनने की राह पर है, उसे साथी भारतीयों के बीच संघर्ष और झगड़ों की बजाय शांति और समृद्धि की आवश्यकता है.

दिलचस्प बात यह है कि हमारी लॉन्चिंग नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर थी. यह एक सोचा-समझा निर्णय था. विचार यह था कि राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के जन्मदिन पर हमारे मंच को शुरू करने से बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता. इस दिन जब हम अपने संस्करणों के एक वर्ष पूरा होने का जश्न मना रहे हैं, उसके साथ हम नेताजी की दूरदृष्टि और समर्पण को सलाम करते हैं.

अंत में, जैसा कि आपमें से बहुत से लोग जानते हैं कि हम एक नॉन-प्राफिट मीडिया संगठन हैं. हम महसूस करते हैं कि मौजूदा राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में हमारे सामने आगे एक कठिन रास्ता है. हम अपने अस्तित्व के लिए आपके निरंतर समर्थन और प्यार की प्रतीक्षा करेंगे.

जय हिन्द !

आतिर खान

(प्रधान संपादक)