एमसीडी में नए परिसीमन से बदले समीकरण, उम्मीदवारों की बढ़ी चुनौती

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 13-11-2022
एमसीडी में नए परिसीमन से बदले समीकरण, उम्मीदवारों की बढ़ी चुनौती
एमसीडी में नए परिसीमन से बदले समीकरण, उम्मीदवारों की बढ़ी चुनौती

 

नई दिल्ली. दिल्ली में एमसीडी चुनाव के लिए चार दिसंबर को मतदान होगा और सात दिसबंर को नतीजों का एलान होगा. मगर इस बार दिल्ली की एमसीडी बदली हुई होगी. वजह है कि इस बार का दिल्ली नगर निगम चुनाव नए परिसीमन के अनुसार होगा. इसमें ना सिर्फ तीन नगर निगमों को एक बना दिया गया है बल्कि सीटों की संख्या भी कम कर दी गयी है. ऐसे में ये चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं बल्कि उम्मीदवारों के लिए भी बड़ी चुनौती लेकर आया है.

परिसीमन से क्या क्या बदला

इस साल मई में केंद्र सरकार ने उत्तरी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम को मिलाकर एक कर दिया है. इसका मतलब अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा. वहीं पहले के मुकाबले इनकी शक्तियां भी ज्यादा होंगी. अब एक ही मेयर पूरे दिल्ली की जिम्मेदारी संभालेगा. इसके अलावा परिसीमन बदलने के साथ-साथ वाडरें की संख्या भी कम कर दी गई है.

पहले उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में 104-104 पार्षद की सीटें थीं, जबकि पूर्वी दिल्ली में 64 सीटें हुआ करती थीं. पहले तीनों नगर निगम की मिलाकर कुल 272 सीटें थीं, मगर अब नए परिसीमन के बाद ये घटकर 250 रह गईं हैं.

वार्ड और मतदाताओं की संख्या में भी बदलाव

दिल्ली में नए परिसीमन के चलते कई वार्ड में बदलाव भी हुए हैं. दिल्ली की 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 22 के भूगोल को बदल दिया गया है. यहां मौजूद कुछ वाडरें का क्षेत्र बढ़ गया है, तो कुछ के घट गए हैं. इसी तरह मतदाताओं की संख्या में भी बदलाव हुआ है. कुछ वार्ड में मतदाताओं की संख्या घटी है, जबकि कई में बढ़ गई है.

इसी के चलते दिल्ली में अब सबसे बड़ा वार्ड मयूर विहार फेज-1 हो गया है. वहीं त्रिलोकपुरी और संगम विहार दूसरे और तीसरे नंबर पर है. चांदनी चौक का वार्ड परिसीमन के बाद अब सबसे छोटा हो गया है. खास बात ये है कि 250 वाडरें में 42 सीटें एससी कोटे के तहत आरक्षित हैं. ऐसे में नए परिसीमन ने जातीय समीकरण को भी बदल दिया है.

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की चुनौती बढ़ी

नए परिसीमन से कई वाडरें के अस्तित्व समाप्त हो गए, तो वहीं जो वार्ड बचे हैं, उनकी भौगोलिक स्तिथि में भी बदलाव हो गया है. यही वजह है कि कई वर्तमान पार्षदों के सामने ये संकट खड़ा हो गया है कि वे किस वार्ड से अपनी दावेदारी पेश करें.

कई पार्षद तो पड़ोस के वार्ड से टिकट के लिए अपनी दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में उनके ही दल के उस वार्ड के वर्तमान पार्षद को यह दावेदारी हजम नहीं हो रही है. यही वजह है कि सभी पार्टियां इस चुनौती से निपटने में लगी हैं. ताकि पार्टी में किसी तरह की आंतरिक कलह पर लगाम लगाई जा सके.

15 साल से है भाजपा का कब्जा, अब आप की भी कुर्सी पर नजर

पिछले 15 साल से तीनों एमसीडी पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. पिछले चुनाव 2017 में नॉर्थ दिल्ली में भाजपा ने 64 वाडरें पर जीत हासिल की थी. आम आदमी पार्टी को 21 और कांग्रेस को 16 वाडरें में जीत मिली थी. इसी तरह साउथ दिल्ली में भाजपा को 70, आप को 16 और कांग्रेस को 12 वाडरें पर जीत मिली थी. वहीं ईस्ट दिल्ली के 47 वार्ड में भाजपा, 12 में आप और तीन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया था. अब इस बार आम आदमी पार्टी की नजर एमसीडी की सत्ता हथियाने पर है. इसके लिए अरविंद केजरीवाल जोर शोर से मैदान में उतर चुके हैं.

हर दल कर रहा है अपनी अपनी जीत के दावे

एमसीडी चुनाव को लेकर राजनीतिक दल कमर कसकर मैदान में उतर चुके हैं. भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस चुनाव की घोषणा के बाद से ही तैयारी में जुट गये हैं. इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी में देखा जा रहा है. हर दल अपनी अपनी जीत के दावे कर रहा है.

बीजेपी ने फिर से अपनी जीत का दावा किया है तो वहीं आप भी प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस का भी कहना है कि उनकी पार्टी पिछले एक साल से एमसीडी चुनाव की तैयारी कर रही है. ऐसे में नए परिसीमन के बाद एमसीडी की सत्ता पर काबिज होना किसी पार्टी के लिए आसान नहीं होने वाला.