साौहार्द की बातः नमाज छोड़कर कराया अंतिम संस्कार

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
रात में मुस्लिम युवकों ने किया हिंदू का दाह संस्कार
रात में मुस्लिम युवकों ने किया हिंदू का दाह संस्कार

 

प्रतिभा रमन

2 मई को शाम 7.30 बजे रोजा की इफ्तारी कर रहे आठ मुस्लिम युवकों को किसी की मदद के लिए तुरंत पहुंचने को कॉल आया. उन्होंने तुरंत नमाज की योजना मुल्तवी कर दी और कर्नाटक के कोप्पल में एक हिंदू व्यक्ति के अंतिम संस्कार में सहायता करने के लिए पहुंच गए.

जमात-ए-इस्लामी हिंद की सोशल विंग ह्यूमैनिटेरियन रिलीफ सोसाइटी (एचआरएस) है और इसके जिला प्रमुख खलील उदेवू हैं. बागलकोट में हिंदू परिवार के एक व्यक्ति द्वारा उनसे संपर्क किया गया. खलील इस आपातकाल में भाग लेने के लिए सैयद हिदायत अली और अन्य स्वयंसेवकों को ले गए.

जब वे विकास नगर में 80 वर्षीय विट्ठल राव महेंद्रकर के निवास पर पहुँचे, तो उन्होंने उन्हें मृत अवस्था में देखा. वे कोरोना के शिकार हो गए थे. दुर्भाग्य से, उनका बेटा भी अस्पताल में कोविड-19 से जूझ रहा है. घर में सिर्फ विट्ठल राव की पत्नी, बहू और पोते थे. दावणगेरे के उनके दामाद रघु अकेले रिश्तेदार थे, जिन्होंने मदद के लिए कदम बढ़ाया.

खलील ने बताया, “यह एक दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य था. विठ्ठल राव की पत्नी भी वृद्ध हैं. हमने अपने दस्ताने, सैनिटाइजर और मास्क को इकट्ठा किया, ताकि मदद कर सकें. हमने एंबुलेंस की व्यवस्था की और चिता को स्थापित करने के लिए जलाऊ लकड़ी की व्यवस्था की.”

उन्होंने शव को श्मशान घाट तक पहुंचाया और सुनिश्चित किया कि अंतिम संस्कार बिना किसी परेशानी के किया जाए, श्मशान घाट पर कार्यकर्ताओं ने भी मदद की. दामाद रघु ने अंतिम संस्कार के लिए चिता जलाई.

खलील बताते हैं, “जब हम रघु से मिले, तो वे थोड़ा संकोच कर रहे थे. यह स्वाभाविक है. वे नहीं जानते थे कि हम मुस्लिम होने के बावजूद मदद कर सकते हैं. लेकिन वे जल्द ही हमारे साथ सहज हो गए.”

इस्लाम के मुख्य उपदेशों में से एक आपातकाल में मदद करने पर जोर दिया गया है. उन्होंने कहा, “हमने धर्म को कभी मानवता के रास्ते पर नहीं आने दिया.” हर कोई किसी भी धर्म में बुरा नहीं है. मुझे सिखाया गया है कि अगर हम मानवता के लिए ध्यान नहीं देते हैं, तो हम मुस्लिम नहीं हैं. हिन्दू हो या मुसलमान, हमारा अच्छा दिल होना चाहिए. खलील ने कहा कि यह सब मायने रखता है.

स्वयंसेवकों ने अनुष्ठान पूरा किया और उस दिन 10.30 बजे अपनी नमाज के लिए वापस आ पाए. रघु के साथ-साथ विठ्ठल राव की पत्नी भी बहुत आभारी थी.

स्वयंसेवक हिदायत ने बताया, “हमने घर पर बच्चों के लिए कुछ बिस्किट के पैकेट की भी व्यवस्था की. जब हम मदद करके खुश थे. हालांकि हम एम्बुलेंस ड्राइवर के व्यवहार से दुखी थे, जो सिर्फ 2 किमी की यात्रा के लिए 12,000 रुपये की मांग कर रहा था. 

घड़ियाँ बेचने वाली दुकान का प्रबंधन करते हुए हिदायत को अब 6-7 साल हो गए हैं. वह और उनकी स्वयंसेवकों की टीम आपातकाल में लोगों की मदद करती है. आपदाओं के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करने से लेकर लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने तक हर प्रकार की मदद की.