मुस्लिम युवक ने अस्थि कलश के लिए बनाए बक्से

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-05-2021
अस्थि कलश बॉक्स
अस्थि कलश बॉक्स

 

नई दिल्ली. कोरोना काल ने जहां देश की चिकित्सा प्रणाली की अनेक विसंगतियों को उजागर किया है, वहीं इसने हमारे सांस्कृतिक रिसाव में आपसी सद्भाव और लोगों की सेवा की भावना को जगाने का अवसर भी प्रदान किया है. मरीजों को ऑक्सीजन पहुंचाने से लेकर उनके अंत्येष्टि तक हर स्तर पर लोगों ने अपनी मातृभूमि की मदद की है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के ईमानदार युवा भी आगे आए हैं.

इस संबंध में ताजा उदाहरण गोरखपुर से है, जहां नगर निगम द्वारा अंतिम संस्कार के लिए बनाई गई जगह पर कलश रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी. इस संबंध में जब शिकायतें आने लगीं, तो महापौर और नगर निगम अधिकारियों के निर्देश का पालन करते हुए कहा कि अब कलश के लिए लोहे का बक्सा बनाया जाएगा.

यह सुविधा पूरी तरह से मुफ्त है, क्योंकि कलश बनाने वाले और नगर निगम से मेहनताना लेने से इनकार करने वाले दो ईमानदार लोगों में से एक मुहम्मद फैज हैं.

गौरतलब है कि नगर निगम द्वारा अंतिम संस्कार के लिए तैयार की गई जगह पर रोजाना 40 से 50 कोरोना मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. किंतु अस्थियों के रखरखाव की समस्या पेश आ रही थी. अग्रवाल समाज के कुछ सदस्यों ने इस मुद्दे को लेकर नगर महापौर से अपनी बात रखी थी.

महापौर के निर्देश पर कलश रखने के लिए बॉक्स बनवाए गए हैं.

प्रवर्तन प्रभारी कर्नल सीपी संभव ने बताया कि मुहम्मद फैज और महेंद्र मधेशिया नाम के दो युवकों को इस काम के लिए आदेश दिया. अपनी कड़ी मेहनत और लगन से दोनों आदमियों ने कुछ ही घंटों में लोहे के नौ डिब्बे बनाए.

देश की साम्प्रदायिक सद्भाव की परंपरा की मिसाल पेश करने वाले दो युवकों ने अपनी मेहनत की कीमत नहीं ली और कहा कि ऐसा करने का मौका मिलना हमारा इनाम है.

महापौर ने कहा कि तीन दिन के बाद सभी लोग अस्थि कलश लेते हैं और अपनी मान्यता के अनुसार इसे गंगा या नदियों में प्रवाहित करते हैं.