पहली पत्नी से तरह समान व्यवहार न करे, तो मुस्लिम महिलाएं तलाक दे सकती हैंः हाईकोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
पहली पत्नी से तरह समान व्यवहार न करे, तो मुस्लिम महिलाएं तलाक दे सकती हैं
पहली पत्नी से तरह समान व्यवहार न करे, तो मुस्लिम महिलाएं तलाक दे सकती हैं

 

केरल उच्च न्यायालय ने शनिवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं को तब तलाक देने का हक है, जब पति ने दोबारा शादी कर ली हो और समान विचार नहीं दे रहा हो या रहने की समान स्थिति प्रदान कर रहा हो. अदालत ने कहा कि कुरान पत्नियों के समान व्यवहार पर जोर देता है. कोर्ट ने कहा कि अगर इसका उल्लंघन होता है, तो महिलाओं को चाहिए कि वे अपने शौह को तलाक दे दें.

अदालत ने ये टिप्पणी थालास्सेरी की एक मूल निवासी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें उसने अपने पति से तलाक की मांग की थी, जिसने दोबारा शादी की है और वह उससे अलग रहता है. थालास्सेरी परिवार अदालत में उसकी याचिका को उच्च न्यायालय के समक्ष मामला लाने के लिए प्रेरित करने के लिए उसे अस्वीकार कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि मुस्लिम तलाक अधिनियम की धारा 2 (8) (एफ) के अनुसार, महिला को तलाक की अनुमति तब दी जानी चाहिए, जब पति के पुनर्विवाह के बाद पहली पत्नी की उपेक्षा की जा रही हो. पति द्वारा याचिकाकर्ता को दो साल से अधिक समय तक संरक्षण नहीं देना तलाक देने के लिए पर्याप्त आधार है.

महिला ने 2019में वापस तलाक के लिए याचिका दायर की थी. वह 2014से अपने पति से अलग रह रही है. पति का दावा है कि इस अवधि के दौरान वह उसे सहायता प्रदान करता रहा है.

हालांकि, अदालत ने पाया कि वे वर्षों से अलग रह रहे थे, यह दर्शाता है कि पहली पत्नी को समान विचार नहीं दिया जाता है. पति भी 2014 के बाद पत्नी के साथ रहने का दावा नहीं करता है. पत्नी के साथ नहीं रहना और अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफलता कुरान की कही गई बातों का उल्लंघन है. पहली पत्नी को हाईकोर्ट ने तलाक दे दिया.