मुस्लिम मां नाबालिग बच्चों की अभिभावक नहीं हो सकतीः हाईकोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
मुस्लिम मां नाबालिग बच्चों की अभिभावक नहीं हो सकतीः हाईकोर्ट
मुस्लिम मां नाबालिग बच्चों की अभिभावक नहीं हो सकतीः हाईकोर्ट

 

कोच्चि. केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा है कि वह एक मुस्लिम महिला को अपने नाबालिग बच्चे की संपत्ति का संरक्षक नहीं बना सकती हैए क्योंकि वह सर्वोच्च न्यायालय की मिसालों से बंधी है.

जस्टिस पीण्बीण् सुरेश कुमार और सीएस सुधा ने देखा कि भले ही व्यक्तिगत कानून जो मुस्लिम महिलाओं को अभिभावक होने से रोकता हैए उन्हें अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने का तर्क दिया जा सकता है और इसलिए वे शून्य हो सकते हैंए क्योंकि वे इसकी गहराई में नहीं जा सकतेए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित उदाहरणों से बंधे हैं.

अदालत ने कोझिकोड के सीण् अब्दुल अजीज और एक दर्जन अन्य लोगों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह देखा कि एक विभाजन विलेख में एक मुस्लिम मां ने अपने बेटे की संपत्ति के कानूनी अभिभावक के रूप में काम किया था.

ष्ष्शायरा बानो के मामले में यह माना गया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ.शरीयत की प्रथाओं को भाग. तृतीय में निहित प्रावधानों को संतुष्ट करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है . संविधान के मौलिक अधिकारए अनुच्छेद के संदर्भ मेंए राज्य के कार्यों पर लागू होते हैं.ष्ष्

अदालत ने अपने निर्णय में कहाए ष्ष्यह स्थिति होने के नातेए जैसा कि शरीयत अधिनियम को राज्य का कानून नहीं माना गया हैए इसे संविधान के अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 15 के आधार पर परीक्षण नहीं किया जा सकता हैए जैसा कि अपीलकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया है.ष्ष्

अदालत ने आगे बताया कि चूंकि शीर्ष अदालत के कई फैसले हैंए जो यह मानते हैं कि एक मुस्लिम मां अपने नाबालिग बच्चों की अभिभावक नहीं हो सकती है. उच्च न्यायालय शीर्ष अदालत द्वारा घोषित कानून का पालन करने के लिए बाध्य हैए जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत प्रदान किया गया है.

अदालत ने स्वीकार किया कि यदि उत्तराधिकार और धर्मनिरपेक्ष चरित्र के समान मामलों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, तो संरक्षकता के मामले में भी यही स्थिति होगी.