लेह. लेह-लद्दाख की मुस्लिम समन्वय समिति लेह स्थित शाह-ए-हमदान, मसजिद शरीफ में 14वें दलाई लामा के सम्मान में दोपहर के भोजन पर उनका स्वागत किया. लद्दाख में मुस्लिम समुदाय ने 1980 में ईदगाह लेह में दलाई लामा के लिए अपना पहला स्वागत समारोह आयोजित किया था और तब से उनकी लद्दाख यात्रा के दौरान उनके स्वागत की मेजबानी करने की प्रथा रही है. इस अवसर पर विभिन्न मठों के रिनपोचे, एलएएचडीसी लेह के अध्यक्ष ताशी ग्यालत्सान, कार्यकारी पार्षद, सांसद लद्दाख जमयांग त्सेरिंग नामग्याल, एलबीए अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग, राजनीतिक नेता और अन्य धार्मिक नेता उपस्थित थे.
दलाई लामा ने अपने भाषण में कहा कि वह इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि तिब्बत के ल्हासा में भी मुस्लिम समुदाय के लोग उनसे बहुत बार मिलते हैं. उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत मामला है और अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग धर्मों का पालन करते हैं, लेकिन आंतरिक शांति, सौहार्दता और करुणा का अभ्यास सभी को करना चाहिए. उन्होंने कहा कि उनका मुख्य कर्तव्य है कि कैसे आंतरिक शांति लाया जाए और सात अरब मनुष्यों को खुश रखा जाए.
दलाई लामा ने यह भी बताया कि वह कुछ महान प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चर्चा करेंगे कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों और आधुनिक शिक्षा को कैसे जोड़ा जाए, ताकि प्रत्येक व्यक्ति में दया और आंतरिक शांति आ सके.
अंजुमन-मोइन-इस्लाम लेह के अध्यक्ष डॉ अब्दुल कय्यूम और अंजुमन इमामिया के अध्यक्ष अशरफ अली ने भी इस अवसर पर बात कहा कि दलाई लामा की लद्दाख यात्रा क्षेत्र में सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करने में मदद करती है.
इस अवसर पर, लद्दाख मुस्लिम समन्वय समिति ने दृष्टिबाधित डॉ सईदा बानो को सम्मानित किया और उन्हें दलाई लामा के माध्यम से शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया. डॉ सईदा ने हाल ही में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय हैदराबाद से उर्दू में पीएचडी की डिग्री पूरी की थी. इस बीच, दलाई लामा ने कथित तौर पर अगस्त तक लद्दाख में रहने का फैसला किया है, हालांकि इस संबंध में आधिकारिक पुष्टि अभी जारी नहीं की गई थी.