बच्चों के हक की आवाज बनकर उभरे हैं मुख्तारुल हक

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
मुख्तारुल हक का अपना अंदाज है.
मुख्तारुल हक का अपना अंदाज है.

 

 

  • नोबल विजेता कैलाश सत्यार्थी के सारथी के रूप में जाने जाते हैं हक
  • बच्चों को बचाने के दौरान एक बार फेंक दिया था शेर के बाड़े में
  • अब तक 1,19,000मासूमों के जीवन को तबाह होने से बचाया

सेराज अनवर / पटना

बचपन बहुत ही प्यारा अहसास है. हर कोई अपने बचपन से प्यार करता है. आदमी पचपन का हो जाए, तो भी अपना बचपन नहीं भूलता है. हालांकि सबके नसीब में खुशहाल बचपन नहीं होता. भारत में करोड़ों बच्चे ऐसे हैं, जिनका बचपन जिंदगी की दौड़ में खो गया है. दुकानों में बर्तन मांजता बचपन, कारखानों के धुएं में झुलसता बचपन, घरों में जूठा खाकर पलता बचपन, सड़कों पर आवारा घूमता बचपन, यह सब उन बच्चों की दर्दभरी दास्तान है, जिनका कोई पुरसाहाल नहीं. लाखों-करोड़ों बदनसीब बच्चों के बचपन को लौटाने, बाल शोषण से मुक्त कराने के लिए ही ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ भारत में एक आंदोलन है, जो बच्चों के हितों और अधिकारों के लिए कार्य करता है. 1980में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत कैलाश सत्यार्थी ने की थी. 2014में सत्यार्थी एवं मलाला यूसुफजई को बाल शिक्षा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए संयुक्त रूप से शांति के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इन्हीं में एक और शख्स भी है, जिसने बच्चों के हितों और उनके अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।

हम बात कर रहे हैं सत्यार्थी के मजबूत सारथी मुख्तारुल हक की। बचपन बचाओ आंदोलन को आयाम देने में बिहार के नवादा निवासी मुख्तारुल हक की महती भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बाल शोषण के शिकार बच्चों को मुक्त कराने में इनके जोखिम भरा योगदान प्रेरित करता है. एक बार सर्कस में कार्यरत बच्चों को छुड़ाने के दौरान उन्हें शेर के बाड़े में फेंक दिया गया था. सत्यार्थी के साथ मिलकर मुख्तारुल हक ने अब तक एक लाख 19हजार मासूमों के जीवन को तबाह होने से बचाया है. बाल मजदूरी कुप्रथा भारत में सैकड़ों साल से चली आ रही है. मुख्तारुल हक ने इन बच्चों को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है.

देश के कोने-कोने में पहुंचा नवादा से शुरू हुआ सफर

बाल शोषण के शिकार ऐसे ही बच्चों की हक की आवाज बन कर उभरे हैं मुख्तारुल हक. बचपन बचाओ आंदोलन के बिहार समन्वयक मुख्तार लगभग तीन दशक से बच्चों का बचपन लौटाने के लिए काम कर रहे हैं. नवादा से शुरू हुआ उनका सफर आज देशभर के कोने-कोने में फैल गया है.

मुख्तारुल ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले 1987में महिलाओं को साक्षर बनाने की दिशा में योगदान देना शुरू कर दिया. इस सिलसिले में जब गांव-गांव घूमे, तो पाया कि बाल और बंधुआ मजदूरी का दंश समाज में कितने गहरे तक धंस चुका है. अधिकतर बच्चे गांवों से पलायन कर चुके थे.

1974के जेपी आंदोलन का हुआ गहरा असर

मुख्तार बताते हैं कि वो छात्र जीवन में एनएसएस और एनसीसी से जुड़े थे. उन पर 1974 के जेपी आंदोलन का भी गहरा असर था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि भी नवादा रही है. जेपी ने 1952 में नवादा के कौआकोल में शेखोदेवरा सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी. जेपी और गांधी की विचारधारा से प्रभावित होकर मुख्तारुल हक सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए रचनात्मक कार्यों में लगे थे.

इसी दौरान 1985 में इनकी मुलाकात कैलाश सत्यार्थी से हुई. सत्यार्थी भी जेपी आंदोलन के उपज हैं और उनकी कर्मभूमि भी बिहार ही है. सत्यार्थी ने संयुक्त बिहार के पलामू अब गढ़वा जिला के नगर उटारी में पहली यात्रा की थी.

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ आज भारत के 15 प्रदेशों के 200 से अधिक जिलों में सक्रिय है. इसमें लगभग 70,000 स्वयंसेवक हैं, जो लगातार मासूमों के जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए कार्यरत हैं.

आंदोलन को लेकर पूरा जीवन किया समर्पित

समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर मुख्तारुल हक ने इस आंदोलन में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है. 1997बाल श्रम उन्मूलन को लेकर ग्लोबल मार्च का आयोजन किया गया. दिल्ली से जेनेवा तक 103देशों की यात्रा में संयुक्त बिहार का नेतृत्व मुख्तारुल हक ने किया. बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने इस यात्रा का स्वागत किया था.

mukhtarul haq

अपने साथियों के संग मुख्तारुल हक.


हक ने एक और अनूठा प्रयास कर दुनिया को चकित कर दिया. मुख्तारुल ने 2002 में हिसुआ को 100 दिनों के अंदर बाल मजदूर मुक्त प्रखंड बनाकर नया इतिहास रचा, जिसमें 150 गांव एवं दस पंचायतें शामिल थीं.

नवादा जिले की तत्कालीन जिलाधिकारी एन. विजयलक्ष्मी के पूर्ण सहयोग से 17 दिसंबर, 2002 को ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी की मौजूदगी में हिसुआ को दुनिया का दूसरा और भारत का पहला बाल श्रम मुक्त प्रखंड की घोषणा की गई. इस अभियान की पूरी कमान मुख्तारुल हक के हाथ में थी.

एक बार जान पर बन आई थी बात

2001 में केरल के अर्नाकुलम से दिल्ली तक शिक्षा यात्रा का नेतृत्व भी मुख्तारुल ने ही किया, जिसके नतीजे में 2009 में राइट टू एजुकेशन एक्ट बना. बचपन बचाओ आंदोलन के तहत मानव व्यापार के विरुद्ध 2007 में इंडो-नेपाल-बांग्लादेश यात्रा का आयोजन किया गया. कोलकाता से बांग्लादेश, नेपाल होते हुए दिल्ली की इस यात्रा के पश्चिम बंगाल, बिहार कोऑर्डिनेटर थे मुख्तारुल हक.

बच्चों को छुड़ाने में मुख्तारुल की जान तब बच गई, जब मलमास मेला में मुख्तारुल निहत्थे घुस गए. 13 अगस्त, 2004 को राजगीर मलमास मेला में मुख्तारुल ने अचानक छापामारी कर दी. मेला में लगे सर्कस के कर्मियों ने मुख्तारुल को पकड़ कर शेर के बाड़े में डाल दिया. तभी उनके साथी वहां पहुंच गए थे. मुख्तारूल की जान तो बची ही, 13 बच्चियों को भी आंदोलनकारियों ने मुक्त करा लिया. बिहार विधान परिषद के तत्कालीन स्पीकर प्रो. जाबिर हुसैन ने इस मिशन को मोनिटर किया था.

बच्चियों के शारीरिक शोषण के खिलाफ 11 सितंबर से 16 अक्टूबर 2017 को बंगाल, उड़ीसा, यूपी, बिहार, झारखंड सहित सात केंद्र शासित राज्यों में ‘सुरक्षित बचपन-सुरक्षित भारत’ के नाम से भारत यात्रा निकाली गई. इसका नेतृत्व भी मुख्तारुल हक ने किया. यह यात्रा गांधी जयंती के दिन 2अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान पहुंची. उसी दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाल विवाह और दहेज उन्मूलन अभियान का आगाज किया.

दो बार रहे राज्य बाल श्रमिक आयोग के सदस्य

मुख्तारुल के प्रयासों को देखते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के राज्य समन्वयक से उन्हें राज्य बाल श्रमिक आयोग का सदस्य मनोनीत किया गया. इस आयोग के वह दो बार सदस्य रहे. उनका कहना है कि जब तक हर गरीब का बच्चा शिक्षित नहीं होगा, तब तक बाल मजदूरी को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है. इस दिशा में हमारा प्रयास जारी है. उन्हें समाज से भी इसको लेकर सहयोग की प्रत्याशा है. बच्चों के लिए काम करने वाली इस संस्था का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है, जहां बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और समाज में उनकी भागीदारी बढ़े, ताकि वो एक बेहतर भविष्य के निर्माण के सहभागी हों.