आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली
जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक और प्रख्यात धार्मिक विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदुदी की पुस्तकों और लेखों को आपत्तिजनक मानते हुए भारत के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की गई है। इन पुस्तकों में जिहादी विचारधाराओं को प्रस्तुत किया गया है। देश के प्रमुख शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि मौलाना सैयद अबुल आला मौदुदी की जिन किताबों में जिहादी ग्रंथ हैं, उन्हें भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रतिबंधित कर देना चाहिए। इस संबंध में देश के 22 शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द जैसे वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में नामांकित मौलाना मौदुदी की किताबें प्रतिबंधित होनी चाहिए, क्योंकि उनमें घृणित सामग्री है।
‘‘हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और हमदर्द विश्वविद्यालय जैसे राज्य द्वारा वित्त पोषित इस्लामी विश्वविद्यालयों के कुछ विभागों ने अपने पाठ्यक्रम में जिहाद को शामिल कर लिया है। हिंदू समाज, संस्कृति और सभ्यता पर कभी न खत्म होने वाले हिंसक हमले इन्हीं शिक्षाओं का प्रत्यक्ष परिणाम हैं।’’
‘‘यह गहरी चिंता का विषय है कि प्रमुख इस्लामी विश्वविद्यालय ऐसी विचारधाराओं को वैधता और सम्मान का लिबास दे रहे हैं। खासकर जब से भारत के कुछ प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने 2047 तक भारत के विभाजन के बाद के इस्लामीकरण की अपनी योजनाओं की घोषणा की है। इस प्रतिबद्धता की खुले तौर पर घोषणा की गई है।’’
‘‘पत्र के अनुसार चूंकि इन विश्वविद्यालयों को जनता के पैसे से समर्थन मिल रहा है, इसलिए करदाताओं और संबंधित नागरिकों के रूप में हमें ऐसी शिक्षाओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने का अधिकार है। इसलिए हम इस मामले को आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं। इस मुद्दे के राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थों को देखते हुए, यह मामला आपके व्यक्तिगत ध्यान और अनुवर्ती कार्रवाई का पात्र है।’’
‘‘हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द ने इस्लाम विभाग में अपने स्नातक और स्नातकोत्तर अध्ययन कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में एक भारत-विरोधी / राष्ट्र-विरोधी पाठ्यक्रम को प्रभावी ढंग से अपनाया है। ये तीनों संस्थान पूरे भारत में इस्लामी शिक्षण संस्थानों के लिए अग्रणी और आदर्श हैं। इसलिए, वे जिस दिशा में जाते हैं, वह पूरे भारत में इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ हमारे देश में मुस्लिम राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों को निर्धारित करता है।’’
‘‘उपरोक्त संदर्भ को देखते हुए, यह गहरी चिंता का विषय है कि मौलाना सैयद अबुल आला मौदुदी, जिन्हें इस्लाम का आधिकारिक स्रोत कहा जाता है, के लेख ऊपर वर्णित तीन इस्लामी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। क्योंकि मौलाना सैदाबवाला आला मौदुदी खुलेआम दुनिया में हर जगह गैर-मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप चरमपंथी विचारधारा के इस ब्रांड का सबसे बुरा शिकार रहा है। और फिर भी इन तीन संस्थानों ने न केवल उनके लेखन को अपने स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया है, बल्कि अपने छात्रों को उनके विचारों, लेखन और प्रभाव पर पीएचडी करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।’’
‘‘मौदुदी केवल कुर्सी के सिद्धांतकार नहीं थे। भारत के भीतर एक इस्लामी धर्मशास्त्री के रूप में उनके राजनीतिक प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह भारत के पूर्ण इस्लामीकरण के लिए प्रतिबद्ध संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेईआईएच) के संस्थापक थे। जेईआईएच का मुख्यालय दिल्ली में है और गृह मंत्रालय की नाक के नीचे फलता-फूलता है। मौदुदी की हाइड्रा-हेड विचारधारा ने इंडियन मुजाहिदीन, हिंद की विलायत (इस्लामिक स्टेट का भारतीय प्रांत) जैसी कई शाखाओं को जन्म दिया, जिनमें जेकेएलएफ, हुर्रियत, रजा एकेडमी, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं।’’
‘‘इसके अलावा जमात-ए-इस्लामी हिंद ने सिमी की भी स्थापना की। उन सभी को या तो विभिन्न बिंदुओं (समय पर) पर प्रतिबंधित कर दिया गया है या वर्तमान में एनआईए द्वारा बहुत गंभीर आरोपों में जांच की जा रही है। मौलाना मौदुदी के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौदुदी द्वारा रचित इस्लाम के वहाबी ब्रांड ने पहली बार 20वीं सदी में मध्य पूर्व और खाड़ी के देशों को प्रभावित किया और अब पश्चिमी लोकतंत्रों में फैल रहा है।’’
‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नामित आतंकवादी संगठन जैसे अल-कायदा, आईएसआईएस, हमास, हिजबुल्लाह, मुस्लिम ब्रदरहुड, तालिबान आदि। मौलाना मौदुदी की मूल विचारधारा और राजनीतिक इस्लाम के ढांचे से प्रेरित होकर अपना आंदोलन जारी रखा है। इस विचारधारा ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में मुस्लिम अलगाववाद की लपटों को भड़काने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।’’
‘‘मौलाना आजाद की तरह, मौदुदी ने 1947 में भारत के विभाजन का विरोध भारत और भारत की सार्वभौमिक सभ्यता के लिए किसी भी प्रेम के कारण नहीं किया, बल्कि इसलिए कि वह मिशन गजवा हिंद के लिए प्रतिबद्ध थे, जो पूरे भारत को इसका हिस्सा बना देगा। वह दृढ़ थे। मौलाना मौदुदी का लक्ष्य पूरे उपमहाद्वीप में गैर-मुसलमानों और उनकी संस्कृति को पूरी तरह से मिटाकर एक वैश्विक इस्लामी उम्माह बनाना था।’’
‘‘जैसा कि सभी जानते हैं, इस्लाम भारत जैसे क्षेत्रीय राष्ट्र-राज्यों और सभ्यतागत राज्यों की पवित्रता में विश्वास नहीं करता है, लेकिन इस बात पर जोर देता है कि पूरे ग्रह को इस्लाम की छत्रछाया में लाना सभी सच्चे मुसलमानों का कर्तव्य है। हालाँकि, विभाजन के विरोध के बावजूद, औरंगाबाद में जन्मे मौलाना मौदुदी इस्लामिक राज्य बनने के बाद पाकिस्तान चले गए।’’
In a letter to PM Modi, academics and public intellectuals have highlighted a scandal of the highest order that the Indian state is giving political and moral legitimacy to such a hate-soaked ideology.https://t.co/kcPHx0IdSv
— Swarajya (@SwarajyaMag) July 28, 2022