मौलाना आजाद ने मजबूत बुनियाद पर रखी देश की शिक्षा नीतिः जमाअत इस्लामी हिंद

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 11-11-2021
मौलाना आजाद ने मजबूत बुनियाद पर रखी देश की शिक्षा नीति
मौलाना आजाद ने मजबूत बुनियाद पर रखी देश की शिक्षा नीति

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
 
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्मदिन  11 नवंबर है. भारत में शिक्षा दिवस को इसी तिथि के साथ जोड़ा गया है, लेकिन हम देख रहे हैं कि ‘शिक्षा दिवस‘ आयोजित करने को लेकर  अब वह उत्साह नहीं है. इसके विपरीत पक्षपाती मानसिकता उनके अपमान को देश भक्ति मानने लगी है.
 
ऐसी मानसिकता रखने वालों का कहना है कि एक मौलवी जो न तो शिक्षा में परिपक्व था, न ही आधुनिकता से परिचित था. उसे स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा मंत्री बनाया गया. यह देश का दुर्भाग्य है कि जो नेता देश की अखंडता के स्तंभ हैं,  उन्हें बस उनके वर्ग का प्रतिनिधि बना दिया गया.
 
भारत के संविधान के निर्माता डॉ. अम्बेडकर को दलितों का नेता बनाया गया है और अखंड भारत के आकांक्षी मौलाना आजाद को भारत के स्वतंत्र मुसलमानों का प्रतिनिधि बना दिया गया.  ये बातें जमाअत इस्लामी हिंद के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष  मुज्तबा फारूक  ने एक बयान में कहीं .
 
उन्होंने  कहा कि मौलाना आजाद ने 1900 में 12 साल की उम्र में ‘अल-मिस्बाह‘ का संपादन किया और 1903 में मासिक ‘लिसान-ए-सिद्क‘ प्रकाशित किया. 20 साल की उम्र में अल-हिलाल अखबार लॉन्च किया. जैसे ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसकी लोकप्रियता बढ़ी, ब्रिटिश सरकार ने अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया. स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.
 
ऐसे वयक्तित्व  पर आपत्ति को अज्ञानता और संकीर्णता नहीं है तो और क्या कहा जा सकता है?” मुजतबा फारूक ने आगे कहा कि आज देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा का मुद्दा है. 
 
आजादी के 75 साल बाद भी हम शिक्षा के क्षेत्र में न्याय और समानता स्थापित करने में असमर्थ हैं. इस अवसर पर मौलाना अबुल कलाम आजाद की शैक्षिक सेवाओं को श्रद्धांजलि देते पेश करते हुए कहा कि सरकार को चाहिए था कि इस दिन को एक महत्वपूर्ण दिवस के तौर पर मनाए और एक शैक्षिक मिशन आरम्भ करे. मौलाना ने स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्रालय को अपनी अमूल्य कार्य क्षमता से मजबूत नींव प्रदान की थी.
 
मौलाना की शैक्षिक सेवाओं और दृष्टिकोणों पर हमारे विश्वविद्यालयों में शोध कार्य की आवश्यकता है. उन्होंने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज शिक्षा का इस्तेमाल सांप्रदायिक नफरत पैदा करने के लिए भी किया जा रहा है. यह देश के सामने एक बड़ी चुनौती है.
 
आज शिक्षा तेजी से व्यवसाय में तब्दील होती जा रही है. यह देश में गरीब एवं बुद्धिमान छात्रों को अवसर नहीं दे रहा है. सरकार गरीब और ग्रामीण छात्रों को भी शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए नीतियां और योजनाएं बनाए. मौलाना कलाम आजाद की सेवाओं को शिक्षा दिवस के अवसर पर समाज के सामने व्यापक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
 
शिक्षा दिवस के अवसर पर राष्ट्र को इस बात का जायजा लेने की जरूरत है कि वे शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से किस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं. उसके लिए भी जवाबदेह बनें. देश में प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति जो उच्च पदों पर आसीन है, व्यवसायों से जुड़े हैं, उसे एक या दो गरीब छात्रों की शिक्षा का खर्च वहन करना चाहिए.