कश्मीरी पंडितों का नरसंहार: पीड़ितों ने जांच के लिए खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
कश्मीरी पंडितों का नरसंहार: पीड़ितों ने जांच के लिए खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
कश्मीरी पंडितों का नरसंहार: पीड़ितों ने जांच के लिए खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

 

नई दिल्ली. कश्मीरी पंडितों के एक संगठन ने वर्ष 1989-1990 के दौरान कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की है. कश्मीरी पंडितों के संगठन 'रूट्स इन कश्मीर' ने वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में पहले दायर याचिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती देते हुए क्यूरेटिव याचिका दायर की है.

 

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में याचिका खारिज करते हुए कहा था कि याचिका में जिन घटनाओं का जिक्र है, वे साल 1989-90 की हैं और तब से 27 साल से अधिक समय बीत गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा क्योंकि इतने साल बाद किसी भी सबूत के उपलब्ध रहने की संभावना बहुत कम है.

 

कश्मीरी पंडितों के संगठन का कहना है कि क्यूरेटिव याचिका के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने सर्टिफिकेट जारी किया है.

 

क्यूरेटिव पिटीशन में वर्ष 2018 के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र है, जिसमें दिल्ली के सिख विरोधी दंगों के मामले में सज्जन कुमार के खिलाफ दायर अपील को मंजूरी दी गयी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि यह महत्वपूर्ण है कि उन अनगिनत पीड़ितों को आश्वस्त किया जाये, जो चुनौतियों के बावजूद धर्य से प्रतीक्षा कर रहें हैं कि सच्चाई की जीत होगी और न्याय होगा.

 

याचिका में मांग की है कि कश्मीरी पंडितों के खिलाफ साल 1989-90, 1997 और 1998 में किये गये हत्या और अन्य अपराधों के मामलों/प्राथमिकी की जांच सीबीआई, एनआईए या अदालत द्वारा नियुक्त किसी स्वतंत्र एजेंसी से करायी जाये क्योंकि अब तक जम्मू कश्मीर पुलिस ने सैकड़ों लंबित प्राथमिकियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है.

 

याचिका में कहा गया है कि यासीन मलिक, फारुख अहमद डार, बिट्टा कराटे, जावेद नलका और अन्य को सजा दी जाये, जिन्होंने साल 1989-90, 1997 और 1998 में सैकड़ों कश्मीरी पंडितों की हत्या की और जिन मामलों में दर्ज प्राथमिकी बिना जांच के जम्मू कश्मीर पुलिस के पास 26 साल बाद भी लंबित पड़ी है.

 

सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह यासीन मलिक के खिलाफ मामले की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दे ताकि उसे 25 जनवरी 1990 की सुबह भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की बर्बर हत्या के आरोप में सजा मिल सके. अभी यह मामला सीबीआई की अदालत में लंबित है.

 

संगठन ने अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कश्मीरी पंडितों की हत्या से संबंधित एफआईआर या मामले जम्मू कश्मीर से किसी अन्य राज्य में खासकर दिल्ली में स्थानान्तरित कर दे ताकि जो गवाह सुरक्षा की चिंता से पुलिस या अदालत के पास जाने से झिझक रहे हैं, वे भयमुक्त होकर जांच एजेंसी या अदालत में अपना बयान करा पायें.

 

 

सुप्रीमकोर्ट से साथ ही यह भी अपील की गयी है कि किसी स्वतंत्र जांच समिति या आयोग का गठन किया जाये, जो साल 1989-90, 1997 और 1998 में हुये कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के मामले की जांच करे और वह यह जांच भी करे कि कश्मीरी पंडितों की हत्या के मामले में दर्ज प्राथमिकियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गयी.