16 वर्षीय मुस्लिम लड़की की शादी: हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट करेगा 'विचार'

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
16 वर्षीय मुस्लिम लड़की की शादी: हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट करेगा 'विचार'
16 वर्षीय मुस्लिम लड़की की शादी: हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट करेगा 'विचार'

 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें अदालत ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की को विवाह करने की अनुमति दी थी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी ओर से न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया. मेहता ने कहा, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, और वह दी गई सुरक्षा के खिलाफ नहीं है. लेकिन क्या अदालत दंडात्मक प्रावधानों के खिलाफ आदेश पारित कर सकती है?


पीठ ने कहा कि इस मामले पर विचार करना होगा. शीर्ष अदालत ने मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को न्याय मित्र नियुक्त किया. शीर्ष अदालत को कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले का बाल विवाह पर प्रतिबंध और पॉक्सो अधिनियम पर भी असर पड़ेगा. पीठ ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा है तो क्या किसी अदालत को इस पर फैसला सुनाना चाहिए. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा, हम कह रहे हैं कि हम इस मुद्दे की जांच करेंगे, तो ऐसे में हाईकोर्ट इसपर कैसे फैसला कर सकती है. पहले हम देखेंगे कि न्यायमित्र इस पर क्या कहते है. बता दें, हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम दंपत्ति को सुरक्षा प्रदान की थी.

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है. जसजीत सिंह बेदी की पीठ द्वारा दिए गए 13 जून के आदेश को चुनौती देते हुए एनसीपीसीआर ने शीर्ष अदालत का रुख किया. दलील में तर्क दिया गया कि आदेश अनिवार्य रूप से बाल विवाह की अनुमति दे रहा है और यह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम लड़की की शादी मुसलमानों के पर्सनल लॉ के तहत होती है. उच्च न्यायालय ने कहास, सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला की पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के अनुच्छेद 195 के अनुसार, पन्द्रह साल की उम्र पूरी होने पर स्वस्थ दिमाग का हर मुसलमान विवाह कर सकता है.