गौस सिवानी / नई दिल्ली
भारत एक विविध समाज वाला देश है और यही इसकी खूबसूरती है. इस विविधता की सुंदरता तब और बढ़ गई जब मौलाना उमैर इलियासी ने धार्मिक स्कूलों और गुरुकुल के छात्रों को मिलने और एक-दूसरे को जानने और समझने में मदद की.
बैठक ऋषिकेश में हुई, जहां मदरसों और गुरुकुल के छात्र तीन दिनों से मिल रहे थे. इस दौरान उनके साथ मस्जिदों के इमाम, इस्लामिक विद्वान और गुरुकुल के शिक्षक भी थे.
गंगा तट पर एक आश्रम में सफेदपोश, पायजामा और टोपी पहने मदरसा के छात्र और भगवाधारी गुरुकुल के छात्र एक-दूसरे को गले लगाते हुए एक सुंदर दृश्य देखा गया.
यह मुलाकात भारत के लिए एक खूबसूरत संदेश थी. किसी भी समस्या का समाधान लड़ाई-झगड़े से नहीं, बातचीत से मिलता है, इस छोटी सी बात को बहुत से लोग नहीं समझते हैं. इसलिए दंगे होते हैं. धर्म के नाम पर आपस में लड़ना समाज और देश को अस्थिर करने का प्रयास है.
ऐसे में ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन और मस्जिदों के इमामों के संगठन ने अंतर्धार्मिक संवाद का रास्ता दिखाया है, जिससे पूरे देश में धार्मिक सौहार्द की एक नई लहर दौड़ सकती है.
इस अनूठी और अभिनव पहल में धार्मिक शिक्षण संस्थान, मदरसे और गुरुकोल एक साथ आए हैं. जो पढ़ते और पढ़ाते हैं उन्होंने एक-दूसरे को समझने की कोशिश में एक साथ समय बिताया है.
हालांकि यह कुछ साल पहले की बात है, लेकिन अब इस मुद्दे को और आगे ले जाने के लिए नए सिरे से प्रयास किया जा रहा है.
गुरुकुल के छात्रों को भी मदरसों में लाकर मदरसों का माहौल दिखाना चाहिए.
मौलाना उमैर अहमद इलियासी ने कहा कि परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरु स्वामी चदानंद के साथ अंतर्धार्मिक संवाद को बढ़ाने के प्रयासों पर लंबे समय से बातचीत चल रही थी. यह प्रयास मई 2018 के महीने में साकार हुआ, जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में देवबंद के विभिन्न मदरसों में पढ़ने वाले 100 छात्रों को परमार्थ निकेतन के प्रशासन के तहत एक गुरुकुल में तीन दिनों के लिए रखा गया था.
वे आश्रम में पढ़ने वाले छात्रों के साथ रहे. उनके बीच बातचीत हुई और उन्होंने साथ रहकर एक-दूसरे को समझने की कोशिश की. नजारा अद्भुत और सुंदर था.
अगर शाम की आरती में मुस्लिम छात्र शामिल होते, तो गुरुकल के छात्र पूजा के लिए गंगा किनारे की जगह को साफ कर होते. मदरसे के छात्र सब्जी आधारित खाना ही खाते थे.
तीन दिन में ही दोनों पक्ष इतने करीब आ गए कि जब मदरसे के छात्र जाने लगे, तो दोनों पक्षों के छात्रों की आंखों से आंसू छलक पड़े.
मौलाना ने कहा कि कोरोना के चलते गुरुकुल के बच्चों को मदरसे में रखने की कोशिशों में देरी हुई है. अब जबकि संक्रमण के मामलों में कमी आई है, परमार्थ निकेतन के 100 छात्र जून महीने में तीन दिन देवबंद मदरसे में रहने की तैयारी कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि यह प्रयास यहीं नहीं रुकेगा, बल्कि मंदिर के पुजारियों और मस्जिदों के इमामों को भी इसी तरह एक साथ लाने की तैयारी की जा रही है.
मौलाना इलियासी का कहना है कि उन्होंने स्वामी चंदानंद के जन्मदिन पर इस कार्यक्रम की व्यवस्था की थी. इसका उद्देश्य गुरुकुल और मदरसों के छात्रों के लिए एक दूसरे को समझना और एक दूसरे के धर्मों को समझना भी था.
आवाज-द वॉयस के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मौलाना आमिर इलियासी ने कहा कि धर्म का काम तोड़ना नहीं है, एकजुट करना है और यह मैंने अल्लाह की खुशी के लिए किया है.
जब उनसे पूछा गया कि इसके पीछे क्या मकसद है, तो उन्होंने कहा कि मदरसों के छात्र भविष्य में मस्जिदों के इमाम बनेंगे, जबकि गुरुकुल के छात्र मंदिरों के पुजारी बनेंगे. ऐसे में उन्हें एक-दूसरे को जानना चाहिए और सद्भाव का संदेश देना चाहिए, ताकि भविष्य में वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में शांति और सुलह का संदेश भेज सकें.
आवाज-द वॉयस ने पूछा कि वे आने वाले दिनों में कार्यक्रम को कैसे आगे बढ़ाएंगे, रखा जाएगा, ताकि वे मदरसे के जीवन को करीब से देख सकें और समझ सकें.
उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के प्रयास जिला स्तर पर किए जाएंगे और धार्मिक स्कूलों और स्कूलों के छात्रों को आपस में मिलवाया जाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि उनकी पहल की सभी वर्गों ने सराहना की है और हिंदुओं और मुसलमानों ने इसका स्वागत किया है.
जाहिर है कि मौलाना भी ऐसे अन्य कार्यक्रमों का हिस्सा हैं, जो समाज में सद्भाव का संदेश देते हैं. वह अक्सर अन्य धर्मों के नेताओं के साथ अंतर्धार्मिक संवाद में संलग्न रहता है.