कश्मीरी मुसलमानों ने निभाई पंडित खातून की अंतिम रस्म

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 23-12-2021
कश्मीरी मुसलमानों ने निभाई पंडित खातून की अंतिम रस्म
कश्मीरी मुसलमानों ने निभाई पंडित खातून की अंतिम रस्म

 

श्रीनगर. कश्मीर घाटी कुछ दिनों पहले हिंसा को लेकर चर्चा में थी और अन्य राज्यों के साथ-साथ गैर-मुस्लिम परिवारों के लोग भी घाटी से भाग रहे थे. घाटी फिर से चर्चा में है, लेकिन इस बार कोई नकारात्मक कारण नहीं, बल्कि सकारात्मक है.

कभी अलगाववादियों की पनाहगाह और आतंकियों की नर्सरी रहा दक्षिण कश्मीर का त्राल इलाका आज अपने परोपकार के लिए सुर्खियों में है. स्थानीय मुसलमानों ने दिखाया है कि वे मानवीय सांप्रदायिक सद्भाव में विश्वास करते हैं. हाल ही में एक ऐसी घटना घटी, जो राष्ट्रीय एकता की मिसाल बनी.

बात यह है कि कल एक बुजुर्ग कश्मीरी पंडित महिला की मौत हो गई. जाहिर है कि पड़ोसियों में मुसलमानों की संख्या अधिक थी. इसलिए बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग मृतक महिला के अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

उन्होंने कश्मीरी महिला को न केवल अपने कंधे दिए, बल्कि अंतिम संस्कार की भी व्यवस्था की. त्राल निवासी मोहिउद्दीन ने बताया कि पंडित नाथ रैना ने कस्बे से पलायन नहीं किया था. वह त्राल में अपने घर में ही थे.

उनकी पत्नी 71वर्षीय शशि रैना कई दिनों से बीमार थीं और उनकी मृत्यु हो गई. आखिरी वक्त में उनके साथ उनके परिवार के कुछ ही सदस्य थे. उनके रिश्तेदार घाटी के बाहर कहीं और रहते हैं. शशि रैना के निधन की खबर मिलते ही उनके सभी पड़ोसी उनके घर पर जमा हो गए.

स्थानीय मुस्लिम महिलाओं ने मृतक के घर की महिलाओं को ढाढस बंधाया. इसके साथ ही अन्य पड़ोसियों ने मृतक के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की.

एक अन्य स्थानीय अब्दुल गनी ने कहा, ‘हमें कभी नहीं लगा कि वह किसी दूसरे धर्म के हैं. हम सब यहां पूर्ण भाईचारे में रहते हैं. हमारा धर्म अलग है, लेकिन हम सब कश्मीरी हैं. यह हमारी भावना है.’

शशि रैना और उनके परिवार ने कभी कश्मीर नहीं छोड़ा. यहां सभी उसे जानते थे. उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई. जिसने सुना, वह अपना दुख व्यक्त करने उसके घर गया. उनके अंतिम संस्कार में भी सभी शामिल हुए.

त्राल के रहने वाले अकबर लोन ने कहा कि कश्मीर पंडित के अंतिम संस्कार में मुस्लिम समुदाय का शामिल होना कोई नई बात नहीं है. ऐसे कई उदाहरण आपको कश्मीर में मिल जाएंगे. कश्मीरी पंडित कश्मीर का हिस्सा हैं, वे हमारे भाई हैं. हम सब एक दूसरे के सुख-दुख बांटते हैं.

देशद्रोही तत्व कुछ भी कहें, लेकिन सच तो यह है कि कश्मीरी पंडित हमसे अलग नहीं हैं. ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा लें.