'जापान नेताजी की अस्थियां उनकी बेटी को सौंपे'

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 24-01-2022
'जापान नेताजी की अस्थियां उनकी बेटी को सौंपे'
'जापान नेताजी की अस्थियां उनकी बेटी को सौंपे'

 

नई दिल्ली. सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती का जश्न एक खोखला होलोग्राम स्मारक है. यह एक दिखावा है, 76 वर्षो तक जापान से उनके पार्थिव अवशेष को न लाकर उनकी स्मृति और आत्मा का अपमान किया गया है और भारतीय परंपराओं के तहत अंतिम निपटान करके उनका सम्मान किया जा रहा है.-यह कहना है आशीष रे का.

आशीष रे सेंट एंटनी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में एकेडमिक विजिटर हैं. उन्होंने एक लेख में कहा कि जर्मनी में रहने वाली सुभाष चंद्र बोस की बेटी प्रोफेसर अनीता फाफ, असाधारण रूप से - कुछ लोग अनावश्यक रूप से कहेंगे - भारत में अपने विस्तारित परिवार और भारत सरकार के प्रति विनम्रतापूर्वक आशान्वित रही हैं कि उनके पिता के पार्थिव अवशेष को भारत लाया जाएगा.

सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया जाएगा. रे ने कहा, चूंकि बोस की पत्नी और अनीता फाफ की मां एमिली शेंकल अब नहीं रहीं, इसलिए उनके बाद इकलौती संतान के रूप में अनीता ही पिता के अवशेषों के संबंध में पूर्ण कानूनी और नैतिक रूप से एकमात्र उत्तराधिकारीहैं.

उन्होंने कहा कि भारत, बोस का परिवार और उनके अनुयायी टोक्यो के बौद्ध रेनकोजी मंदिर के प्रति जो आभारी हैं, उसका कारण है कि वहां 18 सितंबर 1945 को एक स्मारक सेवा के बाद से पुजारियों के उत्तराधिकारियों ने नेताजी के अवशेषों को पवित्र रूप से संरक्षित किया है.

18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक विमान दुर्घटना के परिणामस्वरूप बोस की मृत्यु हो गई. रे ने कहा कि नई दिल्ली कानूनी रूप से जापानी सरकार द्वारा अनीता फाफ को नेताजी के पार्थिव अवशेष सौंपे जाने को अपवाद रूप में नहीं ले सकती.

रे ने बताया कि भारत सरकार 1951 के आसपास से रेनकोजी मंदिर में प्रार्थना करने और अवशेषों के रख-रखाव की लागत को कम कर रही है, जिससे यह सच्चाई बरकरार है कि वे अवशेष बोस के हैं.

देश की आजादी के बाद से लगभग हर भारत सरकार ने विमान दुर्घटना के बाद उनकी मृत्यु को सच माना है. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी व्यक्तिगत रूप से रेनकोजी मंदिर गए हैं.

साल 2006 में, एकमात्र आधिकारिक भारतीय जांच ने बोस की मृत्यु और अवशेषों पर एक अनिर्णायक निर्णय दिया, जिसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने खारिज कर दिया.

बाद की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस दृष्टिकोण का पालन किया है. रे ने कहा कि 2016 में मोदी ने नेताजी से संबंधित भारत सरकार की सभी फाइलों को सार्वजनिक कर दिया.

उन्होंने आधिकारिक तौर पर इसे सार्वजनिक किया और पारदर्शी बनाया. यह बात सभी तर्कसंगत लोग जानते हैं, लेकिन वह भी जापान सरकार से नेताजी के अवशेषों को भारत भेजने का अनुरोध करने का अगला तार्किक कदम उठाने में विफल रहे.

31 मई 2017 को, भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने भारत के सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक उत्तर में कहा, शाह नवाज समिति, न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग और न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की रिपोर्टों पर विचार करने के बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि नेताजी की मृत्यु 1945 में एक विमान दुर्घटना में हुई थी.

1950 के दशक में प्रधानमंत्री नेहरू और 1990 के दशक में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने नेताजी के अवशेषों को भारत लाने के लिए गंभीर प्रयास किए, लेकिन बोस के विस्तृत परिवार के कुछ सदस्यों और राजनेताओं व नौकरशाहों के एक वर्ग के विरोध के कारण प्रयास विफल हो गए.

रे ने कहा कि न तो भारत और न ही जापानी सरकार को कानून की नजर में राख के भाग्य का निर्धारण करना चाहिए, जैसा कि वे अनुमान लगाते रहे हैं. रे ने कहा, द्वितीय विश्वयुद्ध में गठबंधन के बाद से जापान ने बोस को उच्च सम्मान दिया है.

वास्तव में, पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे जब भारत की अपनी यात्रा पर आए, तो कोलकाता जाकर उस घर का दौरा किया, जहां बोस रहते थे और काम करते थे - जिसे अब नेताजी भवन के नाम से जाना जाता है.

लेकिन निप्पॉन सरकार नेताजी के अवशेषों के प्रति अपनी नीति में लगातार गलती कर रही है. बोस को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि अपनी गलती को सुधारकर दी जा सकती है.

मतलब, प्रोफेसर अनीता फाफ को उनकी इच्छा के अनुसार बोस के अवशेषों को अपने कब्जे में लेने के लिए आमंत्रित करना चाहिए.