आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली
देश भर में मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा की बार-बार हो रही घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद एक मुस्लिम सामाजिक और धार्मिक संगठन और मौलाना सैयद महमूद असद मदनी धार्मिक विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. याचिका इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों के विभिन्न उदाहरणों का हवाला देती है और 2018 से देश भर में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा का आह्वान करती है.
याचिका में डासना मंदिर के पुजारी यति नरसंघानंद सरस्वती के भड़काऊ भाषणों, इस साल अगस्त में जंतर-मंतर रैली में मुस्लिम विरोधी नारे लगाने, गुरुग्राम में जुमे की नमाज के खिलाफ अभियान और निर्धारित भूखंडों पर प्रदर्शनकारी एकत्र होने के विरोध का हवाला दिया गया. त्रिपुरा में गोबर बिखेरना और धमकी भरे नारे लगाना, रैलियों का आयोजन किया गया, जिसमें इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए गए.
याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा यति नरसंघानंद सरस्वती की टिप्पणी के विरोध में 100 से अधिक मुसलमानों को गिरफ्तार करने की रिपोर्ट का भी हवाला दिया.
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के 76 अधिवक्ताओं ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हरिद्वार सम्मेलन के खिलाफ सुमोटो कार्रवाई की मांग की थी, जहां मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार हुआ था. यह कहते हुए कि पुलिस अधिकारियों ने मुस्लिम विरोधी अभद्र भाषा की घटनाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, याचिकाकर्ता ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के ‘गैर-राज्य तत्वों के सामने झुकने’ और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफलता के बारे में शिकायत की.
ये तथ्य केवल यही दिखाते हैं कि भारतीय नागरिकों के भड़काऊ और हास्यास्पद भाषणों के माध्यम से एक धार्मिक वर्ग पर हमला किया जा रहा है, ताकि उन्हें जवाबदेह ठहराए बिना उनके धार्मिक संस्कारों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके. वर्तमान स्थिति को देखते हुए, संवैधानिक न्यायालय द्वारा एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप. लोक कानून के प्रावधानों के तहत आवश्यक है.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी और अपमानजनक टिप्पणी के परिणामस्वरूप हिंसा हुई है और यहां तक कि मौत भी हुई है. यह तर्क दिया जाता है कि मुस्लिम विरोधी अभद्र भाषा के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के कारण पुलिस अधिकारी अपने ‘देखभाल के कर्तव्य’ में विफल रहे हैं. अधिवक्ता एमआर शमशाद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि अभद्र भाषा राजनीतिक और सामाजिक भेदभाव पैदा करती है और इसका एक समूह / समुदाय और उसके सदस्यों की गरिमा पर समग्र प्रभाव पड़ता है.
एडवोकेट एमआर शमशाद द्वारा तैयार और दायर की गई याचिका, तहसीन पूनावाला बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर आधारित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ अपराधों और लिंचिंग से निपटने के लिए व्यापक निर्देश जारी किए हैं. याचिका में ललिता कुमारी मामले में फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि पहचान योग्य अपराध होने पर प्राथमिकी दर्ज करना पुलिस का कर्तव्य है. कुछ मामलों में, जनता के दबाव के बाद में, पुलिस ने कथित तौर पर ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. हालांकि नफरत भरे भाषण देने वालों की पहचान सोशल मीडिया पर साझा की गई कई तस्वीरें और वीडियो के माध्यम से सार्वजनिक की गई थीं.
याचिकाकर्ता ये राहत चाहते हैं कि एक, तहसीन पूनावाला मामले में पारित अनिवार्य निर्देशों के आलोक में भारत संघ से विभिन्न राज्य तंत्रों द्वारा अभद्र भाषा, विशेष रूप से इस्लाम के पैगंबर के व्यक्तित्व को लक्षित करने के लिए की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट मांगी गई थी. दो, देश में घृणा अपराधों से संबंधित सभी शिकायतों को तैयार करने के लिए एक स्वतंत्र समिति की स्थापना करना. तीन, न्यायालय की निगरानी में घृणा अपराधों की जांच और अभियोजन के लिए निर्देश.