जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-धार्मिक विभाजन की खाई चैड़ी होगी, न करे पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 07-06-2022
जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-धार्मिक विभाजन की खाई चैड़ी होगी, न करे पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई
जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-धार्मिक विभाजन की खाई चैड़ी होगी, न करे पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
 
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें उसने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार नहीं करने का आग्रह किया है.

संगठन ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में पक्ष लेने की मांग की है.इसने कहा कि अधिनियम के खिलाफ याचिका पर विचार करने से पूरे भारत में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.
 
संगठन ने अपने आवेदन में कहा है, “कई मस्जिदों की एक सूची है जो सोशल मीडिया पर चक्कर लगा रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मस्जिदों को कथित तौर पर हिंदू मंदिरों को नष्ट करके बनाया गया है. कहने की जरूरत नहीं है कि यदि वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है, तो यह देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी के द्वार खोल देगा और अयोध्या विवाद के बाद देश जिस धार्मिक विभाजन से उबर रहा है, वह और चैड़ा होगा. ”
 
इसने कहा कि अधिनियम आंतरिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के दायित्वों से संबंधित था.सभी धर्मों की समानता के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.आवेदन में आगे कहा गया है, ‘‘
 
इस अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कानून को समय पर वापस पहुंचने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और हर उस व्यक्ति को कानूनी उपाय प्रदान नहीं किया जा सकता है जो इतिहास के पाठ्यक्रम से असहमत है और आज की अदालतें ऐसा नहीं कर सकती हैं.
 
ऐतिहासिक अधिकारों और गलतियों का संज्ञान तब तक लें जब तक यह न दिखाया जाए कि उनके कानूनी परिणाम वर्तमान में लागू करने योग्य हैं.‘‘शीर्ष अदालत ने मार्च 2021 में केंद्र से 1991 के अधिनियम के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली उपाध्याय की याचिका पर जवाब देने के लिए कहा था, जिसमें पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए मुकदमा दायर करने या अगस्त को प्रचलित से इसके चरित्र में बदलाव की मांग की गई थी.
 
हाल ही में, अधिनियम की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें कहा गया है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है.
 
उन्होंने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा 2, 3, 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
 
शीर्ष अदालत के समक्ष दलीलों में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार छीन लिया है और इस तरह न्यायिक उपचार का अधिकार बंद कर दिया गया है.
 
अधिनियम की धारा 3 पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाती है. इसमें कहा गया है, ‘‘कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग या एक अलग धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा.‘‘