दीनी मदरसों में अन्य धर्मों के बारे में पढ़ाना जरूरी: डॉ सऊद आलम कासमी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 12-11-2021
दीनी मदरसों में अन्य धर्मों के बारे में पढ़ाना जरूरी: डॉ सऊद आलम कासमी
दीनी मदरसों में अन्य धर्मों के बारे में पढ़ाना जरूरी: डॉ सऊद आलम कासमी

 

मंसूरुद्दीन फरीदी/ नई दिल्ली

सांप्रदायिक एकता और सद्भाव के लिए खतरे का एक कारण हमारी परंपराओं का कमजोर होना है. हमें गंगा-जमुनी सभ्यता को संरक्षित करना है. दीनी मदरसों में अन्य धर्मों और आस्थाओं को पढ़ाने के लिए भी पहल करने की आवश्यकता है. यह आपसी सहिष्णुता और प्रेम के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.
 
ये विचार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग के डीन डॉ. मौलाना सऊद आलम कासमी के हैं.वह राजधानी दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में खुसरो फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान डॉ. जफर दारक कासमी की पुस्तक ‘इंडियाज लीगल स्टेटस‘ का विमोचन किया गया. पुस्तक का प्रकाशन खुसरो फाउंडेशन द्वारा किया गया था.
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मौलाना कासमी ने कहा कि वक्त की जरूरत है कि समाज की कमियों और कमजोरियों को समय रहते दूर कर लिया जाए, ताकि यह बीमारी न बने.उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में देशभक्ति के गीत गाना एक महान गुण है, हमें यह समझना होगा कि नफरत टिकती नहीं है. प्यार रहता है.
 
इसलिए अल्लाह ने प्रेम से सृष्टि की रचना की.उन्होंने आगे कहा कि अरब से लेकर फारस तक के इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप की महानता और विशिष्टता के गीत गाए गए हैं. मजहब से लेकर साहित्य तक में भारत का सुंदर उल्लेख किया गया है.
मौलाना कासमी ने आगे कहा कि हम जिस जमीन पर हैं, उसके बारे में इस्लाम के पैगंबर ने कहा था कि मुझे भारत से ठंडी हवा मिलती है.
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उन्होंने कहा कि मैंने इस्लामाबाद विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में कहा था कि खुद को इस्लाम का विद्वान कहना आपत्तिजनक नहीं है, लेकिन भारत को दारुल हर्ब कहना गलत है. हम दुश्मन नहीं हैं. ज्यादा नहीं लेकिन दुनिया में सब कुछ बदल गया है. अब एक नई सभ्यता और व्यवस्था है जिसके तहत दुनिया संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी हुई है.
 
अब हमें एक नए वातावरण और नई परिस्थितियों में रहने के लिए एक नई दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है.यह पाकिस्तान में एक बड़े वर्ग को बहुत पसंद आया और मेरी विचारधारा का समर्थन किया.उन्होंने कहा कि खुसरो फाउंडेशन द्वारा की गई इस पहल का असर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में होगा.
 
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि ऑल इंडिया जमीयत अहले हदीस हिंद के अध्यक्ष मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलाफी ने कहा किजिस तरह अपनी मां की धार्मिक, शरीयत और नैतिक स्थिति की मांग नहीं की जाती है, उसी तरह किसी की मातृभूमि की धार्मिक या शरिया स्थिति की तलाश करने की कोई आवश्यकता नहीं है.क्योंकि देश प्रेम स्वाभाविक है.
 
मातृभूमि सबके गले में ताबीज की तरह है, लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि अब हमें नई पीढ़ी को बताना होगा कि इसकी क्या हैसियत है.मौलाना असगर अली इमाम सलाफी ने कहा कि भारत की कानूनी स्थिति क्या है? कहने और बताने की जरूरत क्यों पड़ी? यह भी महत्वपूर्ण है.
 
 दरअसल, आज के हालात को देखते हुए नई पीढ़ी को प्यारी मातृभूमि की स्थिति से अवगत कराना जरूरी हो गया है. यही दूरदर्शिता है कि यह कदम उठाया गया है, जिसके लिए मैं खुसरो फाउंडेशन को बधाई देता हूं. यह एक सकारात्मक कदम है.
उन्होंने कहा, ‘‘मजहब की बुनियादी शिक्षा देश प्रेम है. यह हमारी आस्था का हिस्सा है.‘‘ मातृभूमि आलिंगन का प्रतीक है.गंगा-जमुनी सभ्यता हमारी विरासत है.
 
 
हम इसके रक्षक हैं.‘‘ आज आप जिधर भी देखें, संरक्षणवादी भावना की धारा बह रही है.कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रख्यात बुद्धिजीवी एवं पद्मश्री प्रोफेसर अख्तर-उल-वासे ने खुसरो फाउंडेशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका मकसद नफरत और दूरियों की आग को बुझाना है. मैं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. अभी शुरुआत है. हम सेमिनार और सिम्पोजियम भी करेंगे.
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उन्होंने आगे कहा कि खुसरो फाउंडेशन के तत्वावधान में यह पहली पुस्तक है जिसमें भारत पर सभी फतवे शामिल है.प्रतिभागियों, लोकतंत्र में यह संभव है.उन्होंने कहा कि अमीर खुसरो के नाम पर इस मिशन का नाम रखने का कारण यह है कि वह न केवल हजरत निजामुद्दीन औलिया के एक समर्पित अनुयायी थे, बल्कि एक कवि, संगीतकार, सैनिक, रहस्यवादी, दरबारी और पीर भी थे. भजन गाते थे.
 
कार्यक्रम के अंत में खुसरो फाउंडेशन के एक अन्य निदेशक सिराज कुरैशी ने मिशन को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि पुस्तक का उद्देश्य केवल प्रकाशन तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. इसे पढ़ा भी जाना चाहिए. कार्यक्रम में खुसरो फाउंडेशन के निदेशक डाॅ रंजन मुर्खीजी, रोहित खेरा भी मौजूद थे.