इस्लाम महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण का हामी हैः सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 28-05-2022
इस्लाम महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण का हामी हैः सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती
इस्लाम महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण का हामी हैः सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती

 

आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली

अखिल भारतीय सूफी सज्जादा नशीन परिषद (एआईएसएससी) के चेयरमैन और अजमेर शरीफ के सज्जादानषीं सैयद नसीरुद्दीन चिष्ती ने कहा कि जब हमारे पितृसत्तात्मक समाज में निर्णय लेने वाले केवल पुरुष हैं, तो हम दुनिया के बढ़ने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. और वे महिलाओं को बिना समझे, यहां तक कि एक महिला के जीवन के संघर्षों को समझे बिना निर्णय ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब समग्र रूप से एक समाज को सुधारना है, तो महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी है. इस्लाम ने महिलाओं के लिए उत्कृष्ट अधिकार निर्धारित किए हैं, जो अंततः उनके सशक्तिकरण की ओर ले जाते हैं.

आईटीओ स्थित गालिब इंस्टीट्यूट में (एआईएसएससी) की महिला विंग द्वारा ‘इस्लाम, सूफीवाद और महिला सशक्तिकरण’ नामक महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया है. सज्जादानशीन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती इस सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. इस आयोजन का मकसद सूफीवाद के संदर्भ में सामाजिक समरसता के संदेश को फैलाने के लिए संवाद करना और महिला सशक्तिकरण के बारे में बात करना था और इसके अलावा कि हम महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते हैं?

सज्जादानशीन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने महिलाओं को समाज में आगे लाने पर जोर दिया और इस परिषद के माध्यम से जमीनी स्तर पर मुस्लिम महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने का आह्वान किया. उन्होंने सूफी शिक्षा के बारे में भी बताया, जो हमें शांति, भाईचारे और प्रेम का संदेश देती है, जिसकी इस युग में कमी देखी जा रही है और इस पर जमीनी स्तर पर प्रयास शुरू करने की जरूरत है. इसमें महिलाओं का योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए कि बच्चों की पहली गुरू एक महिला ही होती है. मां के तौर पर वह बच्चों को शिक्षा और समाज में सुधार ला सकती है.

उन्होंने कहा कि इस्लाम में जनता के लिए बनाई गई पहली संस्था एक स्कूल और बाद में एक मस्जिद थी. इस्लाम शिक्षा के अधिकार को मान्यता देता है. यह ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करने में पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर नहीं करता है. वास्तव में, यह सभी को जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने का आदेश देता है.

उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महिला सशक्तिकरण की कुंजी है. धीरे-धीरे साक्षरता के स्तर और जागरूकता में वृद्धि के साथ, समाज ने शिक्षा को महत्व देना शुरू कर दिया है. आज कई माता-पिता अपनी बेटियों को अपने बेटे के समान शिक्षित करना चाहते हैं. आज कई महिलाएं वैज्ञानिक और व्याख्याता आदि हैं.

उन्होंने कहा कि इस्लाम महिलाओं को अपना वैवाहिक साथी चुनने की स्वतंत्रता और अधिकार देता है. जब तक वह खुले तौर पर गवाहों के सामने अपनी स्वीकृति व्यक्त नहीं करती है, तब तक निकाह नहीं किया जा सकता है. वह निकाह के समय, मेहर राशि, निकाह के बाद पालन की जाने वाली शर्तों को ठीक कर सकती हैं. यह इस्लाम में महिला शक्तिकरण का एक उत्कृष्ट मामला है.

उन्होंने कहा कि इस्लाम राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है. यह व्यक्ति को उस देष के प्रति वफादार रहना सिखाता है, जहां वह रहता है और उसके कानूनों का पालन करता है. इस्लाम ‘जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार’ को मान्यता देता है. महिलाओं को एक अच्छा जीवन जीने का अधिकार है और उन्हें कई चीजों में अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है.

उन्होंने कहा कि हम सभी जानते हैं कि दुनिया में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है. इतनी तीव समझ और ज्ञान के साथ, दुख वास्तविकता प्रबल होती है. जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, वहां महिलाओं को अक्सर कई मामलों में निर्णय लेने वाली भूमिका निभाने के लिए कोई भूमिका नहीं दी जाती है. उन्होंने कहा कि सूफीवाद का मूल उद्देष्य मनुष्यों के बीच शांति, प्रेम और सद्भाव को बढ़ावा देना है. यह अपनी शिक्षाओं में लिंग और जाति के बीच अंतर नहीं करता है. यह मिषन तब तक हासिल नहीं किया जा सकता है, जबकि महिलाओं को उनका उचित सम्मान और अधिकार नहीं दिया जाता.

सम्मेलन में दिल्ली की दरगाह निजामुद्दीन औलिया के नायब सज्जादानशीन फरीद अहमद निजामी, एआईएसएससी के समन्वयक वाहिद पाशा साहब, मुख्य अतिथि एवं मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र तेलंगाना राज्य वक्फ न्यायाधिकरण हैदराबाद की सदस्य मोहसिना परवीन साहिबा, कार्यक्रम अध्यक्ष एवं जामिया मिलिया इस्लामिया के सरोजिनी नायडू सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज के निदेशक प्रो. सबिहा हुसैन, प्रख्यात लेखक डॉ नईमा जाफरी पाशा, लेखक, संपादक और शिक्षाविद बुशरा अल्वी रज्जाक साहिबा,  उर्दू जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शाहिना तबस्सुम, इतिहासकार और लेखक प्रो. सीनियर बबली परवीन, अभिज्ञान आईएएस अकादमी की निदेशक फातिमा अफरोज साहिबा आदि मौजूद रहीं.