भारत स्वदेशी हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण के काफी निकट

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 28-07-2022
भारत स्वदेशी हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण के काफी निकट
भारत स्वदेशी हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण के काफी निकट

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल एक ऐसी तकनीक है, जो अभी सिर्फ रूस और चीन के पास और इस तकनीक पर अमेरिका अभी रिसर्च ही कर रहा है. इस किस्म के मिसाइल के बारे में यूक्रेन युद्ध के समय रूस ने दावा किया था उसने यूक्रेन में एक भूमिगत हथियार भंडार को नष्ट करने के लिए किंजल नाम का हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल दागा था.

बहरहाल, भारत में, सैन्य योजनाकारों को देश की अपनी हाइपरसोनिक मिसाइल के आने का बेसब्री से इंतजार है. गौरतलब है कि भारत-रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस से जुड़े मिसाइल वैज्ञानिक हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक पर काम कर रहे हैं.

हाइपरसोनिक मिसाइल क्या होती है?

पहला और सबसे बड़ा अंतर रफ्तार का होता है. एक हाइपरसोनिक मिसाइल का वेग कम से कम 5मैक की होती है. एक बैलिस्टिक मिसाइल एक डिफाइन्ड ट्रेजेक्टरी के मुताबिक जाती है, लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइल में पैंतरेबाजी की अधिक संभावना (मीनोवर) होती है.

देश काब्रह्मोस-2 मिसाइलइस सीरीज का हाइपरसोनिक संस्करण होगा और संभवत: इसकी मारक क्षमता 1,500किमी होगी. परीक्षणों में इसकी गति लगभग 8मैक तक हासिल की गई है और इस तरह यह दुनिया में सबसे तेज मिसाइल होगी.

इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि, “अगले तीन वर्षों में इसके प्रोटोटाइप चरण में प्रवेश करने की संभावना है.” गौरतलब है किमिसाइल के परीक्षणों की एक श्रृंखला मैक 6.5की गति से की गई थी.

2020 में, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ)ने प्रणोदन के लिए हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट सिस्टम का परीक्षण किया था, जिसे हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेशन व्हीकल या एचएसटीडीवी कहा जाता है.

खबर के मुताबिक, भारत अमेरिका, रूस और चीन सहित देशों के एक चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक है जो एचएसटीडीवी को एक अप्रत्याशित प्रक्षेपवक्र लेने और इंटरसेप्टर का पता लगाने में सक्षम है."

उम्मीद जताई जा रही है कि ब्रह्मोस -2हाइपरसोनिक मिसाइल रूस की जिरकोन हाइपरसोनिक मिसाइल पर आधारित हो सकती है.

ब्रह्मोस भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली एकमात्र क्रूज मिसाइल है. फिलीपींस इसका पहला विदेशी खरीदार होगा जबकि इंडोनेशिया जैसे देशों ने इसमें गहरी दिलचस्पी दिखाई है. ब्रह्मोस के वर्तमान संस्करणों में लगभग 500 किमी की सीमा है, इसे एमटीसीआर (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था) 300 किमी के प्रतिबंधों के तहत रखने के लिए निर्यात संस्करण में 290 किमी की सीमा है.

ब्रह्मोस की अगली पीढ़ी

इसके अलावा ब्रह्मोस एनजी (अगली पीढ़ी) पर काम चल रहा है, जो मूल ब्रह्मोस की तुलना में आकार में छोटा (6 मीटर लंबा) है और इसका वजन 1.6 टन है. मूल ब्रह्मोस का वजन तीन टन है और यह नौ मीटर लंबा है. ब्रह्मोस एनजी की रेंज 290 किमी है और इसकी गति 3.5 मैकतक की गति प्राप्त कर सकता है.

पहले वाले ब्रह्मोस पीजे-10 को केवल सुखोई एसयू-30 एमकेआइ द्वारा ही ले जाया जा सकता था. ब्रह्मोस एनजी भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट पी75आइ पनडुब्बियों के लिए भी उपयुक्त है. ब्रह्मोस एनजी में भारतीय सेना के लिए भूमि आधारित संस्करण, भारतीय वायु सेना के लिए एक संस्करण और नौसेना के लिए एक जहाज और पनडुब्बी-संगत संस्करण होगा.

सुखोई एसयू-30 एमकेआई केवल एक ब्रह्मोस के बजाय एक बार में पांच ब्रह्मोस एनजी ले जाने में सक्षम होगा. मिग-29 और स्वदेशी एलसीए तेजस भी ब्रह्मोस एनजी से लाभान्वित होंगे. कहा जा रहा है कि इस में राफेल भी होंगे.