पांच साल में 19.5 फीसद मुस्लिम सिविल सर्विसेज में चुने गए

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 17-01-2022
स्कूल परीक्षा परिणाम के बाद जश्न मनाते मुस्लिम युवा (फाइल तस्वीर)
स्कूल परीक्षा परिणाम के बाद जश्न मनाते मुस्लिम युवा (फाइल तस्वीर)

 

दौलत रहमान / गुवाहाटी

कुल 68 मुस्लिम उम्मीदवारों ने 2013, 2014, 2015, 2016 और 2018 में आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (सीसीई) में सफलता प्राप्त की है. सीसीई का आयोजन असम लोक सेवा आयोग (एपीएससी) द्वारा असम सिविल सेवा (एसीएस) और संबद्ध सेवाओं के उम्मीदवारों का चयन करने के लिए किया जाता है.

एपीएससी व एसीएस और संबद्ध सेवाओं के 348 पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए 2013, 2014, 2015, 2016 और 2018 में सीसीई आयोजित की गई थी. पदों के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले मुसलमानों का प्रतिशत 19.54 पाया गया. 

2013 में एसीएस के लिए चुने गए मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 7 थी. जबकि असम पुलिस सेवा (एपीएस) के लिए 4 उम्मीदवारों का चयन किया गया था, 4 को आबकारी निरीक्षक के लिए, 2 को सहायक रोजगार अधिकारी के लिए और एक कर निरीक्षक पदों के लिए चुना गया था.

2014 में एपीएससी द्वारा आयोजित सीसीई में पंद्रह मुस्लिम उम्मीदवारों ने उड़ान भरी थी. जबकि एसीएस के लिए 6 उम्मीदवारों का चयन किया गया था, एपीएस के लिए 4, कर निरीक्षक के लिए 3 और जिला परिवहन अधिकारी और कर अधीक्षक के लिए एक-एक उम्मीदवार का चयन किया गया था.

अगले साल केवल सात मुस्लिम उम्मीदवार ही परीक्षा पास कर सके. एसीएस के लिए जहां पांच उम्मीदवारों का चयन हुआ, वहीं दो कर निरीक्षक बने.

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असम के एक मुस्लिम स्कूल के छात्र


कुल मिलाकर 14 मुस्लिम उम्मीदवारों ने सीसीई-2016 को पास किया, जिनमें से चार एसीएस के लिए, 6 असम भूमि और राजस्व सेवा के लिए, एक-एक सहकारी समितियों के सहायक रजिस्ट्रार और कर निरीक्षक के लिए, और 2 उत्पाद निरीक्षक के लिए चुने गए.

2018 में कुल 14 मुस्लिम उम्मीदवारों ने परीक्षा पास की थी. सफल उम्मीदवारों में से दो एसीएस के लिए, 3 असम भूमि और राजस्व सेवा (जूनियर ग्रेड), 1 कर अधीक्षक के लिए, 4 प्रत्येक श्रम निरीक्षक और कर निरीक्षक के लिए योग्य हैं.

प्रख्यात शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता शेख हेदायतुल्ला ने आवाज-द वॉयस को बताया कि भविष्य में एसीएस और संबद्ध सेवाओं के लिए चुने गए मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या अधिक होगी, बशर्ते उनके बीच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा फैले. उन्होंने कहा कि परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अधिकांश उम्मीदवार ऊपरी असम के मूल निवासी मुस्लिम थे, जिन्होंने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त की.

शेख हेदायतुल्लाह कहते हैं, .“एक और बिंदु मैं उजागर करना चाहता हूं, वह यह है कि एपीएससी को सीसीई आयोजित करने और परिणाम घोषित करने में पूर्ण पारदर्शिता बनाए रखनी है. अतीत में, सीसीई रखने में एपीएससी की विश्वसनीयता दांव पर थी. यह मानने के कारण हैं कि 2016 से पहले एपीएससी में प्रचलित अनुचित प्रथाओं के कारण अधिक मेधावी मुस्लिम उम्मीदवार परीक्षा पास नहीं कर सके.” 

पूर्व सिविल सेवक, पूर्व एसीएस अधिकारी एके अबसार हजारिका ने कहा कि मुसलमानों के बीच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही सिविल सेवाओं में समुदाय के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का एकमात्र तरीका है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को अपने पिछड़ेपन के लिए दूसरों को दोष देने की मानसिकता बदलनी होगी. हजारिका ने कहा कि मुसलमान प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने के योग्य हैं. हजारिका ने कहा, ‘पवित्र कुरान का पहला शब्द इकरा है जिसका अर्थ है पढ़ना या पढ़ाना. पैगंबर मोहम्मद ने शिक्षा पर जोर दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए चीन जाने के लिए भी कहा.

दूसरी ओर 1951 के बाद के सात दशकों में कुल 411 (11,569 भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों में से) मुसलमान थे. हरियाणा में एक स्वतंत्र शोध केंद्र द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इससे सिविल सेवाओं में मुसलमानों की हिस्सेदारी 3.55 प्रतिशत हो पाई है.

आईआईटी रुड़की, उत्तराखंड के एक शोध छात्र नूरुद्दीन ने इन आंकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए अनुसंधान केंद्र की रिपोर्ट का विश्लेषण किया. उनके विश्लेषण के मुताबिक ज्यादातर मुस्लिम आईएएस अधिकारी जम्मू-कश्मीर से हैं. भारत में अब तक 119 आईएएस मुस्लिम अधिकारी जम्मू-कश्मीर से हैं.

अन्य राज्यों में, बिहार में 58, यूपी में 48, केरल में 31, कर्नाटक में 20, मध्य प्रदेश में 16, महाराष्ट्र में 12, तमिलनाडु में 10, आंध्र प्रदेश में 10 और तेलंगाना में 8 मुस्लिम आईएएस अधिकारी थे.