देश की गंगा-जमुनी तहजीब समझनी है तो अहले सुबह चांदनी चौक हो आइए

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 30-11-2022
देश की गंगा-जमुनी तहजीब समझनी है तो अहले सुबह चांदनी चौक हो आइए
देश की गंगा-जमुनी तहजीब समझनी है तो अहले सुबह चांदनी चौक हो आइए

 

आवाज द वॉयस /नई दिल्ली

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं देश के चर्चित पत्रकार एम जे अकबर ने कहा है कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द को समझना है तो अहले सुबह दिल्ली के चांदनी चौक से समझा जा सकता है. 

अबकर ने इसकी खूबसूरती से व्याख्या करते हुए कहा, फजर की अजान जैसे ही खत्म होती है, उसके थोड़ी देर बाद हनुमान मंदिर के घंटे बज उठते हैं. यह जब शांत होता है तो जैन मंदिर से आवाजें आने लगती हैं. इसके तुरंत बाद गुरूद्वारे से गुरूवाणी सुनाई पड़ती है और इसके खत्म होते ही चर्चा का घड़ियाल बज उठता है.
 
एम जे अबकर ने पूरे दावे से कहा कि मुझे इस बात पर गर्व है. ऐसा दुनिया के किसी भी देश में नहीं होता. उन्हांेने कहा कि इस तरह के आयोजन के पीछ कोई सरकारी मशीनरी काम नहीं करती. उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल ‘आर्गेनिक’ है. उन्हांेने कहा-दिस इज पॉवर ऑफ इंडिया.
 
अकबर मंगलवार शाम नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित ‘द रोल ऑफ उलेमा इन फास्टेरिंग एक कल्चर ऑफ इंटरफेथ पीस एवं सोशल हार्मोनी इन इंडिया एवं इंडोनेशिया ‘ विषयक संगोष्ठी में बोल रहे थे.
 
उन्होंने कहा, कोई इसे बदल नहीं सकता. उन्होंने कहा यह इंडियन इस्लाम और इंडियन मुस्लिम है. उन्हांेने पूरे दावे से कहा कि इसे किसी पोलिटिकल एजेंडे के तहत नहीं लाया जा सकता.
 
उन्होंने  कुरान का हवाला देते हुए कहा कि अल्लाह की रहमत केवल मुसलमानों के लिए नहीं है पूरी इंसानियत के लिए है. उन्होंने कहा, अल्लाह रहमतुल्ल आलमीन है. रहमतुल्ल मोमेनीन नहीं कहा गया है.
 
एम जे अकबर ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उल्लेखनीय काम करने के लिए बिहार के बुजुर्ग ए दीन यहिया मनेरी का भी उल्लेख किया. उन्हांेने दाराशिकोह का नाम लेते हुए कहा कि इससे पहले भी भारत में अनेक सांप्रदायिक सौहार्द की मिलसालें मिलती हैं.
 
अकबर ने एक मुस्लिम राजा का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ मुसलमानों ने उससे शिकायत की कि हिंदू समुदाय के लोग सुबह-सुबह झुंड बनाकर, जयकारे लगाते हुए नदी में स्नान करने जाते हैं.इससे उनकी नींद में खलल पड़ता है. मगर इस शिकायत पर मुस्लिम राजा ने कोई कार्रवाई नहीं. अकबर ने भी कुरान और इस्लाम की मौजूदा नजरिए से व्याख्या करने के लिए उलेमा से अपील की.
 
उन्होंने कहा कि विद्वानों ने निस्संदेह हर युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, ऐसा हर युग में हुआ है. उन्होंने मौलाना अब्दुल बारी फरंगी महली का जिक्र किया, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिहाद का फतवा जारी किया था. वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों और शिक्षकों में से एक थे.

याद रहे कि फिरंगी महल के मौलाना अब्दुल बारी भी शुरुआत में हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे, उन्होंने 1920 में गांधी को हिंदुओं और मुसलमानों का संयुक्त नेता घोषित किया था.

बंदूक की शक्ति से बदलाव संभव नहीं: ले. ज. अता हसनैन

लेफ्टिनेंट जनरल अता हसनैन ने कहा कि बंदूक की ताकत से आतंकवाद को नहीं रोका जा सकता. इसे रोकना है तो दिल, दिमाग और उलेमा की मदद लेनी होगी.उन्होंने कहा कि उलेमा और सिविल सोसाइटी ही बदलाव ला सकते हैं. बगैर इनके परिवर्तन नहीं लाया जा सकता. उन्होंने कहा कि एक सैनिक होने के नाते मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बंदूक की शक्ति की मदद से बदलाव लाना संभव नहीं है.
 
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित ‘द रोल ऑफ उलेमा इन फास्टेरिंग एक कल्चर ऑफ इंटरफेथ पीस एवं सोशल हार्मोनी इन इंडिया एवं इंडोनेशिया ‘ विषयक संगोष्ठी में बोल रहे थे. इस दौरान इंडोनेशिया के इस्लामिक विद्वानों ने भी अपने विचार रखे.