राष्ट्रपति चुनावः कैसे तय होता है राष्ट्रपति चुनाव में सांसद और विधायक के वोटों का मूल्य

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 18-06-2022
संसद भवन
संसद भवन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

राष्ट्रपति चुनाव में सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल हस्तांतरणीय मतदान का इस्तेमाल किया जाता है. यानी निर्वाचक मंडल प्रत्याशियों के पसंद आधार पर पहली, दूसरी या तीसरी प्राथमिकता देता है.

अगर प्रत्याशी सर्वानुमति वाला न हो और चुनाव में एक से अधिक उम्मीदवार हो और कड़े मुकाबले में पहली पसंद वाले मतों से विजेता का फैसला नहीं हो सके, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह गिना जाता है. इसलिए इस पद्धति को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है.

अभी भारत के निर्वाचक मंडल में 4,809 वोटर हैं, जिनमें 776 सांसद हैं और 4,033 विधायक हैं. इन मतों का कुल मूल्य 10,86,431 है. और इस व्यवस्था में किसी भी प्रत्याशी को कम से कम 5,43,216 वोट लाने होंगे.

मिसाल के तौर पर पिछली बार यानी 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में एनडीएन के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने विपक्ष की साझा उम्मीदवार मीरा कुमार को हराया था. तब उन्हें कुल 10,69,358 मतों में से 7,02,000 वोट मिले थे जबकि मीरा कुमार को 3,67,000 वोट मिले थे.

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि आखिर किसी सांसद या विधायक के वोट का मूल्य कैसे तय किया जाता है. सामान्य तौर पर यह कहा जाता है कि सांसदों और विधायकों के वोटों का मूल्य उनके राज्यों की आबादी के आधार पर तय किया जाता है, लेकिन इससे तो अधिक आबादी वाले राज्यों का दबदबा हो जाएगा.

इस में एकरूपता लाने के वास्ते संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं. संविधान के अनुच्छेद 55 में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व का पैमाना तय किया गया है. इसमें राज्यों के विधायकों और सांसदों के वोट का मूल्य तय करने का समीकरण दिया गया है.

संविधान में किया गया 84वां संशोधन यानी संविधान संशोधन अधिनियम 2001 में कहा गया है कि 2026 तक, निर्वाचक मंडल के वोटों का मूल्य तय करने के लिए 1971 के जनगणना के आंकड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता रहेगा.

मिसाल के तौर पर, आंध्र प्रदेश की आबादी 1971 की जनगणना के आधार पर 2,78,00,586है और राज्य की विधानसभा में कुल सीटें 175 हैं. तो इस आबादी की संख्या को 1000x175 के गुणनफल से विभाजित करेंगे. परिणाम आएगा 158.8605, जिसको नजदीकी संख्या तक राउंड ऑफ करके 159माना जाएगा.

किसी राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों की मतों का कुल मूल्य निर्वाचित सीटों की संख्या को हरेक सदस्य के मतों के मूल्य से गुणा करके हासिल किया जाता है. मिसाल के तौर पर, आंध्र प्रदेश के लिए, यह 175x159=27,825 होगा.

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हरेक राज्य के कुल मतों के मूल्य को एकसाथ जोड़कर संसद के कुल निर्वाचित सदस्यों (लोकसभा 543 और राज्यसभा के 233 यानी 776) से विभाजित की जाती है. इससे हरेक सांसद के मत का मूल्य निर्धारित होता है.

बहरहाल, 2017 में जारी चुनाव आयोग के राष्ट्रपति चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के विधायक के मत का मूल्य सर्वाधिक 208 था, जबकि सिक्किम के विधायक के मत का मूल्य महज 7 है. इस गणना के मुताबिक, हरेक सांसद के मत का मूल्य 708 निर्धारित किया गया है. यानी राज्यसभा और लोकसभा के कुल 776 सांसदों की संख्या को सभी राज्यों के मतों के कुल मूल्य यानी 5,49,495 में विभाजित करके यह संख्या हासिल की गई है.

यानी, दोनों सदनों के सभी सांसदों के मतों का कुल मूल्य 5,49,408 है. जबकि विधायकों के मतों का कुल मूल्य 10,98,903 है.