हिजाब विवादः पत्रकार के वीडियो पर पुलिस ने ट्विटर को भेजा नोटिस

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-03-2022
हिजाब विवादः पत्रकार के वीडियो पर पुलिस ने ट्विटर को भेजा नोटिस
हिजाब विवादः पत्रकार के वीडियो पर पुलिस ने ट्विटर को भेजा नोटिस

 

आवाज द वाॅयस /हैदराबाद
 
ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक, पत्रकार, मोहम्मद जुबैर को बुधवार को ट्विटर से एक ईमेल प्राप्त हुआ, जिसमें उन्हें साइबर अपराध रचकोंडा के एक ट्वीट को हटाने के अनुरोध के बारे में सूचित किया गया. इसे ‘‘संवेदनशील‘ बताया गया.

जुबैर ने अपने ट्वीट पर ट्विटर की अधिसूचना का एक स्क्रीनशॉट साझा किया और हिजाब-पहने लड़की मुस्कान का वीडियो भी जोड़ा, जिसमें भगवा-पहने युवा के खिलाफ अल्लाहु अकबर के नारों के साथ जवाबी कार्रवाई की गई. लड़कों ने ‘जय श्री राम‘ के नारे लगाए.
 
इस बारे में सहायक पुलिस आयुक्त साइबर अपराध राचकोंडा एस. हरिनाथ ने कहा कि पुलिस ने आईटी सेल को मिली शिकायत के आधार पर कार्रवाई की है.शिकायत व्हाट्सएप पर प्राप्त हुई थी. हम पत्रकार के खिलाफ कुछ नहीं करने जा रहे हैं, लेकिन हमें वीडियो की संवेदनशील सामग्री के बारे में शिकायत मिली है.
 
यह चारमीनार (कर्नाटक में हिजाब विवाद के खिलाफ) में यूनानी मेडिकल कॉलेज के छात्रों के विरोध के बाद था, जहां छात्रों ने ‘हिजाब मेरा अधिकार है‘ की तख्तियां ली हुई थीं, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं.
 
उन्होंने कहा, ‘‘विरोध करना लोगों का अधिकार है.मैं सहमत हूं.लेकिन इस तरह के संवेदनशील शहर में शांति और सद्भाव की गड़बड़ी से घटनाओं की बारिश होगी.‘‘
 
शहर के माहौल के बारे में बोलते हुए, उन्होंने आगे कहा, “हैदराबाद एक संवेदनशील शहर है जो कानून और व्यवस्था का सख्ती से पालन करता है. सांप्रदायिक अशांति को रोकने के लिए, हमने ट्विटर पर एक अधिसूचना भेजकर वीडियो को हटाने के लिए कहा, जिससे सार्वजनिक अशांति फैल सकती है. ‘‘
 
हिजाब विवाद 

कर्नाटक उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 25 फरवरी को कक्षाओं में भाग लेने के दौरान हिजाब पहनने के अधिकार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है. सभी वकीलों को लिखित प्रस्तुतियां प्रस्तुत करने को कहा क्योंकि इसने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
 
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित और न्यायमूर्ति जे.एम. खाजी ने मामले की तात्कालिकता और संवेदनशीलता को देखते हुए  11 दिनों तक दलीलें और जवाबी दलीलें सुनीं.
 
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि इस संबंध में जारी सरकारी आदेश का कोई कानूनी आधार नहीं है. इसने धर्म का पालन करने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया और इस तरह शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जो सर्वोपरि है. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कॉलेज विकास समिति (सीडीसी), और स्कूल विकास और प्रबंधन समिति (एसडीएमसी) के गठन में कानूनी वैधता नहीं है.
 
 बता दें कि पिछले साल के अंत में उडुपी गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज के मुस्लिम छात्रों को हिजाब पहनकर कक्षाओं में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था.
 
बाद में, छात्रों ने बिना हिजाब के कक्षाओं में भाग लेने से इनकार करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. यह मुद्दा विवाद बन गया और अन्य जिलों में फैल गया, जिससे राज्य के कुछ हिस्सों में तनाव और यहां तक ​​कि हिंसा भी हो गई.