आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली
अमीर शरीयत अमीर शरीयत बिहार, ओडिशा और झारखंड मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी सज्जाद नशीन खानकाह रहमानी, मुंगेर ने हिजाब के मुद्दे पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के हालिया फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि धर्म की व्याख्या करना धर्मशास्त्रियों का दायित्व है. रहमानी के अनुसार, अदालत ने कहा कि इस्लाम में घूंघट अनिवार्य नहीं है, हकीकत के बिल्कुल खिलाफ है. धर्म की व्याख्या करना धर्मशास्त्रियों का काम है, अदालतों का नहीं.
उन्होंने कहा कि अदालत ने अनिवार्य जांच का उपयोग करके हिजाब की आवश्यकता को गलत समझा. हम कोर्ट की अवमानना नहीं कर रहे हैं. लेकिन हम समझते हैं कि धर्म के नियमों की व्याख्या अदालत के दायरे से बाहर है. धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, न्यायालय की जिम्मेदारी है, जबकि धर्म की व्याख्या की प्रक्रिया इसे प्रतिबंधित करती है. दोनों को करने का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि अदालतें धर्म की स्वतंत्रता की पूरी तरह से गारंटी देने में विफल होंगी.
उन्होंने कहा कि धार्मिक निर्णयों में क्या आवश्यक है और क्या नहीं, इस पर न्यायालय का निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के समान है. न्यायालय कानूनी रूप से धर्मनिरपेक्ष हैं. इसलिए उन्हें किसी भी धर्म के कानूनों की व्याख्या नहीं करनी चाहिए. धार्मिक कानूनों की व्याख्या का काम इस धर्म के विशेषज्ञों का काम है. जिस तरह संविधान की व्याख्या के लिए सर्वोच्च न्यायालय जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि हिजाब को धर्म का अभिन्न अंग घोषित न करना स्पष्ट रूप से गलत फैसला है. इससे न्यायपालिका में लोगों का विश्वास कम होगा और किसी देश में न्यायपालिका में जनता के विश्वास की कमी उस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
उन्होंने सरकार से स्कूलों और कॉलेजों में ऐसा ड्रेस कोड लागू करने का आह्वान किया, जो क्षेत्रीय परंपराओं और धार्मिक आदर्श वाक्य पर आधारित हो, ताकि प्रत्येक नागरिक सुरक्षित और संतुष्ट हो और उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जा सके. इसलिए देश के सभी मुसलमानों को इस संबंध में कुरान और हदीस को पढ़ना चाहिए और अधिकारों की स्वतंत्रता के संबंध में देश के संविधान का अध्ययन करना चाहिए और अपने संदेश को अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन और उनकी इस्लामी संस्कृति और रक्षा के बारे में खुलकर बताना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सभी नागरिकों और सभी धर्मों का संवैधानिक और संवैधानिक कर्तव्य है कि वे एक दूसरे की मदद करें और इस देश को एक ऐसा खूबसूरत गुलदस्ता बनाएं, जहां विविधता में एकता के सिद्धांत के तहत सभी रंगों और सुगंधों के फूल खिलें. उन्होंने अपने प्रेस बयान में अपील की कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब की व्यवस्था करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए.
उन्होंने हिजाब पहनने वाले साहसी मुस्लिम छात्रों को बधाई दी और आवाज उठाई और कहा कि उन्हें निराश नहीं होना चाहिए. हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का विचार लोगों के अधिकारों के अनुरूप होगा. हजरत अमीर शरीयत ने भी कहा कि राष्ट्र कामयाब होते हैं और चुनौतियों के बाद ही आगे बढ़ते हैं. जिन राष्ट्रों को चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता है, वे एक ट्रान्स में गिर जाते हैं. अल्लाह ने मुसलमानों को उम्माह बनाया है. इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह अपने साथी देशवासियों के साथ आपसी समझ के काम में लगें, ताकि दिलों की दूरियां कम हों, गलतफहमियां दूर हों और खुशनुमा माहौल बना रहे.