अजीत डोभाल को पीएफआई पर बैन लगाने की जिम्मेदारी ! क्या है रूकावटें ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-09-2022
भारत के ‘जेम्स बॉड’ को अब पीएफआई पर बैन लगाने की जिम्मेदारी ! कहां आ रही रूकावटें ?
भारत के ‘जेम्स बॉड’ को अब पीएफआई पर बैन लगाने की जिम्मेदारी ! कहां आ रही रूकावटें ?

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

एक ही रात में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडियान के 107 नेताओं और प्रमुख कार्यकर्ताओं को ‘निपटाने’ के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अब भारत केजेम्स बॉड कहे जाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को इसपर कथित तौर पर तरीके से सफल प्रतिबंध लगाने की जिम्मेदारी सौंपी है.

सूत्रों की मानें तो  सफलतापूवर्क  ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ को अंजाम देने के तुरंत बाद गृहमंत्री शाह और एनएसए अजीत डोभाल के बीच लंबी मंत्रणा हुई. इसके बाद डोभाल को अपनी निगरानी में पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की कार्यवाही अंजाम देने का आदेश दिया गया.प्रतिबंध लगाने से पहले कई मंत्रालयों एवं विभागांे से समन्वय स्थापित किया जाएगा.
 
 
कहते हैं कि इस दौरान इनके बीच प्रतिबंध लगाने से पहले कानूनी सलाह लेने पर सहमति बनी ताकि सिमी की तरह इसके नेता और कार्यकर्ता फिर कोई और संगठन बनाकर न सक्रिय हो जाएं. 
 
बताते हैं कि ऑपरेशन को अंजाम देने से पहले और अंजाम देने के बाद अजीत डोला मुस्लिम रहनुमाओं से पीएफआई को प्रतिबंधित किए जाने के संबंध में टोह ले चुके हैं.
 
ऑपरेशन के बाद जिस तरह से मुस्लिम संगठनों ने इसके प्रति बेरूखी दिखाई है, इससे शाह-डोभाल के हौंसले बुलंद हैं और जल्द ही ऐसा कोई ऐलान हो सकता है.
 
इस मामले में अब तक जमात-ए-इस्लामी हिंद के छुट बयान आए हैं. चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने देश की अंदरूनी और बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी एनएसए डोभाल को सौंप रखी है, इसलिए ऑपरेशन ऑक्टोपस को अंजाम देने से पहले हर संभव सावधानी बरती गई.
 
यहां तक कि ऑपरेशन की जिम्मेदारी संभालने वाले ईडी और एनआईए के 200 अधिकारियों को भी समय से पहले भनक नहीं लग सकी. नोटबंदी और अनुच्छेद 370 हटाने जैसी गोपनीयता बरती गई.
 
बता दें कि 22 सितंबर को एनआईए और ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के देश भर में मौजूद ठिकानों पर छापेमारी की थी. इस दौरान  जांच एजेंसियों द्वारा जो सबूत इकट्ठा किए गए हैं, उनके आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय पीएफआई पर बैन लगाने की तैयारी में है.
 
हालांकि बैन लगाने के पहले गृह मंत्रालय के अधिकारी पूरी तैयारी कर लेना चाहते हैं, छापेमारी के तुरंत बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और एनआईए चीफ से मीटिंग भी की थी.
 
इसमें पीएफआई के खिलाफ जुटाए गए तथ्यों की समीक्षा और आगे की कार्यवाही के लिए निर्देश जारी किए गए हैं.
 
सूत्रों के मुताबिक, पीएफआई को बैन करने से पहले गृह मंत्रालय कानूनी सलाह इसलिए भी लेना चाहती है, क्योंकि 2008 में सिमी पर लगे प्रतिबंध को केंद्र सरकार को हटाना पड़ा था. 
 
दरअसल, जब भी पीएफआई का नाम किसी मामले में आता है, तो इस बात पर चर्चा जरूरी होती है कि अगर इस पर कई आरोप हैं, तो फिर इस पर बैन लगाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है ? आखिर वो कौन सी रुकावटें हैं, जो अभी तक केंद्र सरकार को बैन की कार्यवाही करने से रोक रही है.
 
जानकारी के मुताबिक अलग अलग एजेंसियां कई सालों से पीएफआई के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में लगी थीं. गृह मंत्रालय की तरफ से निर्देश दिए गए थे, कि पीएफआई संगठन की कोई भी कड़ी को ना छोड़ा जाए.
 
एनआईए की जांच आपराधिक संगठन की गैरकानूनी गतिविधियों पर केंद्रित थी, तो वहीं ईडी उनके वित्त के स्रोत का पता लगाने में अब पूरी तरह सफल रहा है.
 
ईडी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि जांच में पीएफआई के बैंक खातों में करीब 60 करोड़ के संदिग्ध लेन-देन का पता चला है. पीएफआई को हवाला के जरिए भी रकम पहुंचाई जा रही थी. इसके लिए भारत में पैसे भेजने के लिए खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों के बैंक खातों का इस्तेमाल किया जाता था.
 
गौरतलब है कि 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी.
 
कई और राज्य समय समय पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं. ऐसे में अब तक देरी क्यों हो रही है, इस बारे में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कई बातें विस्तार से बताईं.
 
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि पीएफआई को 5 साल पहले ही बैन होना था. राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होना, विस्फोटक तैयार करना, निर्वाचित प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना और करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग कर देशविरोधी गतिविधियों में पैसा लगाना -- ये वो आधार हैं, जिसके हिसाब से पीएफआई पर अब बैन लगाया जा सकता है. इन सब मामलों में पुख्ता सबूत जुटाने में लंबा वक्त लगा.
 
विक्रम सिंह ने बताया कि पीएफआई पर अब तक बैन ना लगने के पीछे की एक वजह इन्हें मिलने वाला राजनीतिक सपोर्ट भी है. कुछ पार्टियों के नेता यहां तक कि सांसद भी पीएफआई को समाजसेवा करने वाला संगठन बता चुके हैं. इसके समर्थक कई राज्यों में मौजूद हैं.
 
यही नहीं पीएफआई की सहयोगी एसडीपीआई कई राज्यों में चुनाव भी लड़ चुकी है. यही वजह है कि पीएफआई के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए इतनी तैयारी करनी पड़ रही है.
 
विक्रम सिंह ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार पीएफआई का टर्की की एजेंसी और पाकिस्तान की आईएसआई से फंडिंग का भी लिंक मिला है. लड़कों को बरगलाकर आईएसआईएस में भी भेजा गया. इन्ही लिंक की कड़ियां जोड़ने के लिए ईडी और एनआईए ने पूरी तैयारी की, ताकि कड़ी कार्यवाही की जा सके.
 
फिलहाल पीएफआई पर झारखंड सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है, वहीं गृह मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रीवेंशन) एक्ट 1967 के सेक्शन 35 के तहत करीब 39 संगठनों पर सरकार ने बैन लगाया हुआ है.
 
39 संगठनों पर  बैन

अभी देश के तकरीबन 39 संगठनों पर प्रतिबंध लगा हुआ है.इनमें बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांड फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, लश्कर-ए-तैयबाध्पासबन-ए-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद - तहरीक-ए-फुरकान, हरकत-उल-मुजाहिदीनध् हरकत-उल-अंसार, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, अल-उमर अल-मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कंगलीपाक, कंगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कंगलेई याओल कानबा लुप, मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (एमपीएलएफ), ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, दीनदर अंजुमन,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनिस्ट) पीपुल्स वॉर, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी), अल बद्र, जमीयत-उल-मुजाहिदीन, अल-कायदा, दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम), तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी, तमिल नेशनल र्रिटीवल ट्रूप्स, अखिल भारत नेपाली एकता समाज, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(माओइस्ट), इंडियन मुजाहिदीन,गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, इस्लामिक स्टेटध्आईएसआईएस, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (के), इसके अलावा यूएन में लिस्टेड आतंकी संगठन भी शामिल हैं.
 
इनपुट: आईएएनएस