- बचेली में चलती है गौ सेविका गीतांजलि की ‘सरकार’
- पार्षद फिरोज करते हैं गौसेवा
आरती मिश्रा / रायपुर
लोह नगरी बचेली के एक कोने में एक साधारण मकान है, जहां बहती है सांप्रदायिक सद्भाव व गौसेवा की अद्भुत भावना, वह भी बिना स्वार्थ व सरकारी मदद के. यही वह मकान है, जहां नजर आता है गंगा-जमुनी तहजीब से तरबतर इंसानियत. इस घर में इंसान तो रहते ही हैं, पशुओं व पक्षियों की भी परवरिश होती है. साधारण-सी नजर आने वाली इस तस्वीर का सबसे महत्वपूर्ण दो पहलू यह हैं कि अव्वल तो इस पूरे कार्य को अमलीजामा पहनाने वाली संस्था की प्रमुख तो एक महिला हैं और दूसरे यह कि घायल गायों की सेवा में एक मुसलमान युवक तन-मन-धन से लगा हुआ है, जो राजनीतिक अभिरुचि के चलते निर्दलीय पार्षद के रूप में भी सक्रिय है, अपने तमाम सरोकारों को जीते हुए.
एनीमल एनवायरमेंट कंजरवेशन सोसायटी, बचेली की संस्थापक गीतांजलि सरकार लोगों को बेजुबान प्राणियों की सेवा की प्रेरणा देती हैं. गौ सेवा के मामले में यहां उनकी अपनी सरकार चलती है.
तकरीबन 11वर्ष पूर्व गीतांजिल को एक गौमाता सड़क पर तड़पती हुई नजर आई थी. गाय की पीड़ा गीतांजलि से देखी नहीं गई. उन्होंने घायल गाय की सेवा करके उसे दर्द से मुक्ति दिलाई और यहीं से शुरू हो गई गीतांजलि की गौसेवा की पवित्र यात्रा. और तब से बचेली ने उन्हें ‘गाय वाली अम्मा’ की नई पहचान दे दी.
फिर तो वह इस यात्रा में दूसरे प्राणियों की सेवा भी जुड़ती गई. न केवल प्राणियों को, बल्कि संस्था ने अन्य लोगों को भी जोड़ना शुरू कर दिया. मूक प्राणियों व सक्रिय सदस्यों को मिलाकर गीतांजलि ने अपना एक प्यारा संसार अलग बना लिया है. इस परिवार का एक प्रमुख किरदार फिरोज नवाब सब पर एक अलग छाप छोड़ रहा है.
गीतांजलि सरकार के अपने पारिवारिक गुलशन में उनके अपने फूल की तरह दो बच्चे भी हैं. सोसायटी रूपी इस परिवार के सदस्य फिरोज नवाब जैसा नाम वैसा गुण और काम के प्रतीक बन गए हैं. मुसलमान होकर भी गौभक्त, आश्चर्य होता है, अविश्वसनीय भी लगता है, पर यह सच है.
सचमुच में फिरोज गौ सेवा के मामले में बचेली के नवाब हैं. नवाब का कहना है कि मानवता और सेवा की भावना में जाति-धर्म, हिन्दू-मुसलमान कहां से आएगा? क्या कोई बता सकता है कि फलां गाय हिन्दू है, तो फलां गाय मुसलमान है? प्राणियों की जाति नहीं होती है. गाय के दूध का सेवन तो सभी करते हैं. फिर गाय की सेवा से कैसा परहेज? मां व गाय के दूध को तो अमृत माना गया है.
इस संस्था से निःस्वार्थ भाव से प्रदीप गुप्ता, योमेश साहू, संतोष राव, तारक साहा आदि गौ मित्र जुड़े हुए हैं. इस संस्था ने मरणासन्न गायों व अन्य घायल व बीमार पशु-पक्षियों को नया जीवन दिया है.
इस प्रतिनिधि ने देखा कि बचेली स्थित पशु चिकित्सालय में पशु चिकित्सक नहीं होने के कारण संस्था के सदस्य पशुओं का खुद उपचार करते हैं. नासूर की शक्ल तक अख्तियार कर चुके जख्मों की धोकर रोज ड्रेसिंग की जाती है.
एनएमडीसी ने घरों में गाय-भैंस पालने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन संस्था को मजबूरी में घायल व बीमार गायों को घर में रखना पड़ता है. अस्पताल में सुविधा नहीं है. घर में पशुओं की साफ-सफाई, चारा व उपचार का पूरा ख्याल रखा जाता है. दुर्घटना में घायल कई गायों की टूटी हड्डी तक ठीक की गई है.
गीतांजलि कहती हैं कि हम तो माध्यम है. ईश्वर कृपा से ही यह कार्य चल रहा है. फिरोज नवाब ने कहा कि यहां पशु चिकित्सक की पदस्थापना व एम्बुलेंस की सख्त जरूरत है. घायल व बीमार पशुओं को हाथ ठेले पर डालकर ले जाना पड़ता है.
फिरोज नवाब के साथ संस्था के सदस्यों ने राज्य गौसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास से चर्चा की है. संस्था को किसी तरह की सरकारी मदद नहीं मिलती है.
एक ओर बचेली की सरकार (गीतांजलि सरकार) निःस्वार्थ भाव से गायों की सेवा कर रही हैं, वहीं संसाधनों से युक्त राज्य सरकार पशु चिकित्सक तक की नियुक्ति नहीं कर पा रही है. जंगलों, पहाड़ों व नदी-नालों से घिरे बचेली की यह संस्था असहाय पशुओं को अपने ढंग से मुस्कुराने का मौका दे रही है, यह साहसिक और अनुकरणीय है.