तालिबान को देवबंद से जोड़ना गलतः मदनी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 23-08-2021
तालिबान को देवबंद से जोड़ना गलतः मदनी
तालिबान को देवबंद से जोड़ना गलतः मदनी

 

आवाज- द वॉयस/ देवबंद

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि भविष्य तय करेगा कि अफगानिस्तान में तालिबान सही रास्ते पर हैं या नहीं.

मदनी ने कहा, "अगर अफगानिस्तान में सरकार बनाने के बाद तालिबान सभी लोगों के साथ उचित और समान व्यवहार करता है, तो पूरी दुनिया उनकी सराहना करेगी और फिर हम उनके साथ खड़े होंगे." उन्होंने कहा कि अगर तालिबान अन्याय करेंगे तो भविष्य में कोई उनका समर्थन नहीं करेगा.

मौलाना अरशद मदनी ने जोर दिया कि देशों को एक ऐसी सरकार के साथ चलाया जाता है जो सुलह और प्रेम पर आधारित होती है. "किसी भी देश में सफलता का मार्ग केवल देश में रहने वाले बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के साथ समान व्यवहार और आपसी समझ और शांति स्थापित करके ही प्रशस्त किया जा सकता है."उन्होंने कहा, "किसी भी सरकार में, अगर लोगों की गरिमा, जीवन और संपत्ति सुरक्षित है, तो सरकार की सराहना दुनिया करती है."

उन्होंने अपने तालिबान समर्थक होने की खबरों का खंडन किया. उन्होंने कहा, "तालिबान के बारे में मेरी कोई राय नहीं है. भविष्य तय करेगा कि दुनिया उनके बारे में क्या सोचती है. उनके बारे में राय उनके देश में सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं के अधिकारों के प्रबंधन पर बनाई जाएगी."

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि तालिबान को देवबंद से जोड़ना भी गलत है क्योंकि तालिबान वास्तव में हजरत शेखुल-हिंद मौलाना महमूदुल हसन देवबंदी के आंदोलन से प्रभावित हैं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए रेशमी रुमाल (लाल रूमाल) आंदोलन शुरू किया था. भारत की स्वतंत्रता के लिए हज़रत शेख-उल-हिंद का आंदोलन अफगानिस्तान तक पहुंच गया था जहां एक बड़ा वर्ग इसमें शामिल हो गया और इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए काम किया. मौलाना अरशद मदनी ने कहा, अपने देश में किसी और की ताकत को बर्दाश्त नहीं किया और इसके लिए वे लड़ रहे थे.

गौरतलब है कि हाल ही में ओवैसी ने कहा कि ये (तालिबान) लोग शेख-उल-हिंद और उनके आंदोलन से प्रभावित हैं. शेख-उल-हिंद मूल रूप से देवबंद के रहने वाले थे और उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी थी.

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हालांकि शेख-उल-हिंद के आंदोलन को चलाने वाले असली लोग अब अफगानिस्तान में मौजूद नहीं हैं, जिन्होंने उन्हें शिक्षित किया और पुनर्जीवित किया. उनका आंदोलन उनमें (तालिबान) है. एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि किसी भी मुद्दे को दारुल उलूम देवबंद से जोड़ना सही नहीं है क्योंकि यह एक खुली किताब है जो दुनिया भर में शांति और भाईचारे का संदेश देती है. दारुल उलूम देवबंद में हम जो पढ़ाते हैं, वह सब जानते हैं और सरकार के लोग आकर देखते हैं."

उन्होंने कहा, "हर कोई जानता है कि हमारा सबक क्या है. हम केवल शांति और भाईचारे का संदेश देते हैं, उसके बाद भी, कोई भी कभी भी आ सकता है अगर वह क्रॉस चेक करना चाहता है. दारुल उलूम देवबंद के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं."