नई दिल्ली. पद्म विभूषण प्रसिद्ध इस्लामि स्कॉलर और शांति एक्टिविस्ट मौलाना वहीदुद्दीन खान को कोरोना संक्रमण हो गया है. कोविड-19 टैस्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें सोमवार की देर रात दिल्ली के अपोलो अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवाया गया है.
वहीदुद्दीन खान के पुत्र जफरुल इस्लाम ने एक ट्वीट के माध्यम से यह जानकरी दी है.
अपोलो अस्पताल में 96 वर्षीय विद्वान खान को आईसीयू में भर्ती किया गया है, हालांकि उन्हें बुखार नहीं है और उनका रक्त संचार और ऑक्सीजन स्तर भी स्थिर है.
डॉक्टरों ने कहा, “किसी को भी कमरे में प्रवेश करने या उनसे बात करने की अनुमति नहीं है.” डॉक्टरों ने बताया है कि उनकी स्थिति अभी स्थिर है.
खान पिछले एक सप्ताह से अस्वस्थ थे. डॉक्टरों ने पहले कहा कि उन्हें निमोनिया है, लेकिन कल रात उनकी हालत खराब हो गई थी और उसे सांस लेने में तकलीफ हुई, तो उन्हें अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया.
उनके पुत्र एवं दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल-इस्लाम खान ने ट्विटर पर मौलाना खान के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना के लिए अपील की है.
The great scholar Maulana Wahiduddin Khan is admitted in serious condition in Apollo Hospital Sarita Vihar late last night. Tested Covid+. In ICU. Please pray for his quick recovery.
— Zafarul-Islam Khan (@khan_zafarul) April 13, 2021
Seen here at home yesterday: pic.twitter.com/e2lxCKKZKG
1925 में आजमगढ़ में जन्मे मौलाना वहीदुद्दीन खान रूढ़िवादी परिवार से आते हैं, जिन्होंने 1857 में आजादी के लिए अहम भूमिका निभाई थी.
वे प्रसिद्ध कार्यकर्ता है और उन्होंने पवित्र कुरआन पर दो-खंड टिप्पणी भी लिखी है. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, सामाजिक सौहार्द और पारस्परिक संवाद के विचारों को मंच देने के लिए, खान ने 1970 में दिल्ली में इस्लामिक केंद्र की स्थापना की थी.
छह साल बाद, उन्होंने अल-रिसाला नाम से एक मासिक पत्रिका शुरू की, जिसमें मुख्य रूप से उनके स्वयं के लेख शामिल थे, जो मुस्लिम समुदाय को उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताते थे. अल-रिसाला को क्रमशः फरवरी 1984 और दिसंबर 1990 में अंग्रेजी और हिंदी दोनों में लॉन्च किया गया था.
उन्होंने 200 से अधिक किताबें लिखी हैं और अपने भाषणों के एक बड़े हिस्से में धर्मनिरपेक्षता, अंतर-विश्वास संवाद, सामाजिक सद्भाव और बोलने की स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित किया है.
खान 15-दिवसीय शांति यात्रा के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं, जो उन्होंने 1992 में आचार्य मुनि सुशील कुमार और स्वामी चिदानंद के साथ की थी, जब महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव व्याप्त था. उन्होंने बंबई से नागपुर के रास्ते में 35 अलग-अलग स्थानों पर लोगों को संबोधित किया.
वह बाबरी मस्जिद पर दावों को त्यागने के लिए मुसलमानों से पूछने वाले पहले इस्लामी नेताओं में भी थे.
खान को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म विभूषण’ और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था.
2015 में, जब उन्हें अबू धाबी में सैय्यदीना इमाम अल हसन इब्न अली शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्विटर के माध्यम से बधाई दी थी.
“मौलाना वहीदुद्दीन खान के ज्ञान और शांति के प्रयासों ने उन्हें सबसे सम्मानित विद्वानों में से एक बना दिया, जो सभी की प्रशंसा करते हैं.” प्रधान मंत्री ने ट्वीट किया था.
उसी वर्ष वह 21 अन्य भारतीय मुसलमानों के साथ, विश्व सूची में 500 सबसे प्रभावशाली मुसलमानों में भी शामिल हुए थे. यह सूची रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर द्वारा जॉर्डन में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्थान ने जारी की थी.